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आप भी लिखिए

29 मई 2016

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फेसबुक या कम्प्यूटर पर कीबोर्ड की सहायता से लिखना अलग बात है औरअसल जिंदगी में कागज पर कलम चलना अलग । आज तकनीकी तौर पे हम जितना दक्ष होते जा रहे उतना ही पीछे हम व्यवहारिक तौर पे होते जा रहे । आज बरसों बाद जब ख़त लिखने को कागज़ और कलम ले कर बैठा तब एहसास हुआ कि असल जिंदगी में मैंने आख़री ख़त लखनऊ से लिखा था । ज़मानों पहले । तब पच्चीस पैसे का पोस्टकार्ड मिलता था और उसी पर अपनी उबड़ खाबड़ हैंडराइटिंग मन का हाल लिख दिया करता था । शुरुआत होती थी 'आदरणीय माँ एवम् पिता जी, चरण स्पर्श' ..... ' लखनऊ छूटने के बाद फिर सिर्फ वही चिट्ठियाँ लिखीं जिनके बारे में परीक्षा में पूछा गया । असल जिंदगी में तो नई तकनीक ने नए तरीके ईजाद कर दिए थे । आज ईमेल और चैट के समय जब आदरणीय जैसे शब्द कहीं खो गए हैं तब किसी को इसका मतलब पता न होना वाजिब है । सच में बड़ी मुश्किल हो रही है फिर से नई शुरुआत करने में । एक बार तो मन में आया की कोरा कागज ही भेज देता हूँ । दस्तख़त करके । "तुम्हारा अभिजीत" फिर ख्याल आया कि ये तो किसी के इंतजार की तौहीन होगी । चलो एक बार फिर से कोशिश करता हूँ । नए सिरे से लिखने की । आप भी लिखिए किसी को , महीने में एक बार ही ,क्योकि जरूरी है ख़तों का मौसम और माहौल जिन्दा रहे । #अभिजीत 
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कुछ तुम्हारे लिए से

27 मई 2016
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यूँ तो बताने को कुछ भी नहीं क्योंकि जो भी है तुम्हें पता है और जो तुम्हें पता नहीं उन्हें तुम्हारी गैर मौजूदगी में ढूंढ़ने की कोशिश भर की है। कभी अपने भीतर, कभी तुम्हारे नाम के मायनों में तो कभी उन बातों में पाता हूँ खुद को जो हम दोनों में से किसी ने न कहे लेकिन जिन्हें दोनों ने समझा जरूर । कुल मिला

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नया पता है नोट कर लो

27 मई 2016
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एक समय था कि चारों और ब्लॉग का हल्ला था । हर कोई नए - नए ब्लॉग बना रहा था और जब ये खबर फैली की आप ब्लॉग से पैसे (माफ़ी चाहूँगा हल्ला डॉलर का हुआ था, छोटा आदमी हूँ न नजर चिल्लर पर ही रहती है) भी कमा सकते हैं तब मेरे जैसे कामचोर भी माँ- बाप के सपनों का तेल ब्लॉग पर निकालने लगे । कमाई कितनी हुई ये मत पू

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आप भी लिखिए

29 मई 2016
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फेसबुक या कम्प्यूटर पर कीबोर्ड की सहायता से लिखना अलग बात है औरअसल जिंदगी में कागज पर कलम चलना अलग । आज तकनीकी तौर पे हम जितना दक्ष होते जा रहे उतना ही पीछे हम व्यवहारिक तौर पे होते जा रहे । आज बरसों बाद जब ख़त लिखने को कागज़ और कलम ले कर बैठा तब एहसास हुआ कि असल जिंदगी में मैंने आख़री ख़त लखनऊ से लिखा

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एक चिट्ठी तुम्हारे नाम

7 जुलाई 2016
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माय डियर मोटी (मेरे जान की दुश्मन)हफ़्तों बाद आज सोचता हूँ तुम्हें ख़त भेज ही दूँ पर उसके लिए जरूरी है पहले उसे लिख डालूँ । जानता हूँ नाराज़ हो । होना भी चाहिए पर अब अगर हर ख़त का जवाब ख़त मिलते ही लिख दूँ तो फिर वो बात नहीं होगी जो अभी है । हमारे लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में जरूरी है कि तुम लगातार लिखती

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क्योकि आदत बनी रहे

7 जुलाई 2016
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फेसबुक या कम्प्यूटर पर कीबोर्ड की सहायता से लिखना अलग बात है औरअसल जिंदगी में कागज पर कलम चलना अलग । आज तकनीकी तौर पे हम जितना दक्ष होते जा रहे उतना ही पीछे हम व्यवहारिक तौर पे होते जा रहे । आज बरसों बाद जब ख़त लिखने को कागज़ और कलम ले कर बैठा तब एहसास हुआ कि असल जिंदगी में मैंने आख़री ख़त लखनऊ से लिखा

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तुम्हारे बिना मैं कुछ भी नहीं

13 जुलाई 2016
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आज फ्रेंडशिप डे नहीं पर ना जाने क्यों तुम्हे याद करने का बड़ा मन हो रहा । शायद मैं एक बुरा दोस्त हूँ या फिर स्वार्थी या दोनों जो तुम्हारी खबर नहीं लेता । पर यार तुम किस मिट्टी के बने हो जो मेरी आवाज पर दौड़ पड़ते हो । मुझसे जुड़ा हर दिन , समय और जगह तुम्हे आज भी बखूबी याद है और मैं फेसबुक के भरोसे रहता

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कुछ तुम्हारे लिए : प्रेम रंग में डूबी हुई कविताएँ । जयेन्द्र कुमार वर्मा की समीक्षा

26 जुलाई 2016
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प्रेम जीवन का आधार है। प्रेम के अभाव में जीवन की कल्पना ही व्यर्थ है। प्रेम ही व्यक्ति में जीवन के प्रति मोह उत्पन्न करता है। प्रेम ही व्यक्ति में सपने जगाता है। रंग-विरंगे सपने। और उन सपनों में डूबकर मन अनायास ही गाने लगता है, गुनगुनाने लगता है, मचलने लगता है, चहचहाने लगता है, फुदकने लगता है। और यह

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बेस्ट ऑफ़ लक फॉर सीसैट 2016

6 अगस्त 2016
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इम्तहान/परीक्षा शब्द अपने आपने आप में एक भारी भरकम शब्द है । आमतौर पर इसका इस्तेमाल डराने के लिए किया जाता है पर यह अपना भयावह रूप तब अख्तियार करता है जब इसके पहले प्रतियोगिता शब्द जुड़ता है । इस शब्द के लगते ही एकदम से जीने और मरने का सवाल पैदा हो जाता है और जब बात सिविल सेवा की हो तो सिर्फ मरने की

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तुम हर हाल में विजेता हो शायद अब तस्वीर बदले

19 अगस्त 2016
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