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क्या हो गया

8 जनवरी 2016

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न जाने क्यों 
ये इंशा बदल रहा है

रहता था जो हंसमुख सदा 
एक अलग सी खामोशी में 
बंधता ही जा रहा है

रहता था तरोताजा हरदम 
अच्छे अच्छे विचारों से 
आज उसी ताजगी को 
वो खोता ही जा रहा है

हँसता भी है गर वो 
तो दिखावा सा ही होता है 
न हिलते है होंठ 
न चमक आती है आँखों में

सैर पर जाता है तो भी 
पैरों में ही होती है हलचल 
खुद तो फोन पर न जाने किस
तनाव में खोया रहता है

खा लेता है खाना कभी कभी 
परिवार संग बैठकर,
पर तब भी के तन ही होता है 
मौजूद खाने की मेज पर

आता है काम से लौटकर 
तब भी टूटा सा ही होता है 
मुश्किल से पकड़ पाता है घर 
आता है दुनियाँ से हारकर

नही आती है नींद 
बचपन के खर्राटों वाली अब 
गुजर जाती है रात भी 
यूँ ही करवटें बदल बदलकर

समझ नही आया "संजू " कि 
किसने बाँध रखा है उसकी हँसी को,
उसके पुराने जोश को

कहने को तो वो 
कामयाब ही कामयाब होता जा रहा है 
पर अपने चंचल मन की मस्ती 
और अपनी खुद की हस्ती 
सबको खोता ही जा रहा है

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

बहुत सुन्दर एवं सार्थक कविता !

8 जनवरी 2016

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रचनाएँ
sanjaykirmara
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मेरे विचार मेरा अधिकार
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बुला रहा है मेरा घर

28 नवम्बर 2015
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आने लगी है इक जानी पहचानी खूशबू  अपने  गाँव  की  और से             चल रहा है  पता  इस  बात  का             हिलोरें खाती हुई हवा के शोर से उमड़ने लगा है भूचाल  अंजाना हर कोने में दिल के  चहुंओर  से             मानो आ रहा है  याद  हमें  मेरा               गाँव और मेरा घर  बड़े जोर  से होगी  खुशीहाली अब

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बाल दिवस

28 नवम्बर 2015
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बाल दिवस के दो चेहरे पहला दृश्य  :-आई एस बी टी  से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की और जाते हुए मैंने कुछ बच्चे देखे जो शायद किसी झुग्गी से सम्बन्ध रखते थे ! एक चौराहे पे बेचारे खेल रहे थे ! शायद  उनके मम्मी पापा काम पर निकल चुके थे और वो बेचारे बाल दिवस से अंजान अपनी ही मस्ती में खोये हुए थे ! पंद्रह - बी

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फिर से खिलेगी चेन्नई

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चारों   और  पानी  ही पानी चारों  और  हानि   ही हानि चारों और अँधेरा ही अँधेरा हो जाये  अब जल्दी सवेरा चारों और  फैला  हाहाकार राहत  उपायों   का इंतजार मदद को  हर  कोई   तैयार पर बाधा है मौसम की मारआशा है  दिल   के कोने में गंवाना नही हैं आँसु रोने में कुछ  ही पल बाकी हैं  अब ये मुशीबतो    कम  होने म

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ए मेरी धरती .........

7 जनवरी 2016
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ए मेरी  धरती , ए मेरे घर अब  मुझको  तू  बुला ले थक  चूका  हूँ बहुत अब अपने आँचल में सुला लेआता  है  याद  बहुत  तू पूरा   ही  दिन  खलता है मन  तेरे  विरह  में   अब ये  सारा  दिन  जलता है थी  जितनी  भी  खताये सबको  तू  अब भुला ले थक चुका ..............नही   लगता अब  सफर ये अब  पहले सा सुहाना नही  दिखत

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क्या हो गया

8 जनवरी 2016
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न जाने क्यों ये इंशा बदल रहा हैरहता था जो हंसमुख सदा एक अलग सी खामोशी में बंधता ही जा रहा हैरहता था तरोताजा हरदम अच्छे अच्छे विचारों से आज उसी ताजगी को वो खोता ही जा रहा हैहँसता भी है गर वो तो दिखावा सा ही होता है न हिलते है होंठ न चमक आती है आँखों मेंसैर पर जाता है तो भी पैरों में ही होती है हलचल ख

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