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ए मेरी धरती .........

7 जनवरी 2016

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ए मेरी  धरती , ए मेरे घर 
अब  मुझको  तू  बुला ले 
थक  चूका  हूँ बहुत अब 
अपने आँचल में सुला ले

आता  है  याद  बहुत  तू 
पूरा   ही  दिन  खलता है 
मन  तेरे  विरह  में   अब 
ये  सारा  दिन  जलता है 
थी  जितनी  भी  खताये 
सबको  तू  अब भुला ले 
थक चुका ..............

नही   लगता अब  सफर 
ये अब  पहले सा सुहाना 
नही  दिखता  अपनापन 
क्यूँ  लगता  सब बेगाना 
देदो सजा चाहे कोई तुम 
चाहे  पास बैठा रूला ले 
थक चुका ...............

दूरियों  का  गड्डा अब तो 
होता ही जा रहा है गहरा 
चेहरे की इस मुस्कान पर 
लग  चुका  है  एक पहरा 
तोड़  दो  अब  पहरे सारे 
बंधन  सारे  ये  धुला   ले 
थक चुका ...............

ढूंढ़ता  ही रहता हूँ हरदम 
घर आने का  कोई बहाना 
चाहता  रहता   हूँ अब तो 
हरपल  तेरे ही पास आना 
भेजो  बुलावा कोई जल्दी 
कहीं  "संजू "तुझे भुला ले 
थक चुका ....................

ए   मेरी  धरती , ए मेरे घर 
अब   मुझको   तू  बुला ले 
थक   चूका   हूँ बहुत अब 
अपने   आँचल में सुला ले

7 जनवरी 2016

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रचनाएँ
sanjaykirmara
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मेरे विचार मेरा अधिकार
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बुला रहा है मेरा घर

28 नवम्बर 2015
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बाल दिवस

28 नवम्बर 2015
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बाल दिवस के दो चेहरे पहला दृश्य  :-आई एस बी टी  से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की और जाते हुए मैंने कुछ बच्चे देखे जो शायद किसी झुग्गी से सम्बन्ध रखते थे ! एक चौराहे पे बेचारे खेल रहे थे ! शायद  उनके मम्मी पापा काम पर निकल चुके थे और वो बेचारे बाल दिवस से अंजान अपनी ही मस्ती में खोये हुए थे ! पंद्रह - बी

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सदा चेहरे पर लाली

2 दिसम्बर 2015
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फिर से खिलेगी चेन्नई

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चारों   और  पानी  ही पानी चारों  और  हानि   ही हानि चारों और अँधेरा ही अँधेरा हो जाये  अब जल्दी सवेरा चारों और  फैला  हाहाकार राहत  उपायों   का इंतजार मदद को  हर  कोई   तैयार पर बाधा है मौसम की मारआशा है  दिल   के कोने में गंवाना नही हैं आँसु रोने में कुछ  ही पल बाकी हैं  अब ये मुशीबतो    कम  होने म

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ए मेरी धरती .........

7 जनवरी 2016
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ए मेरी  धरती , ए मेरे घर अब  मुझको  तू  बुला ले थक  चूका  हूँ बहुत अब अपने आँचल में सुला लेआता  है  याद  बहुत  तू पूरा   ही  दिन  खलता है मन  तेरे  विरह  में   अब ये  सारा  दिन  जलता है थी  जितनी  भी  खताये सबको  तू  अब भुला ले थक चुका ..............नही   लगता अब  सफर ये अब  पहले सा सुहाना नही  दिखत

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क्या हो गया

8 जनवरी 2016
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न जाने क्यों ये इंशा बदल रहा हैरहता था जो हंसमुख सदा एक अलग सी खामोशी में बंधता ही जा रहा हैरहता था तरोताजा हरदम अच्छे अच्छे विचारों से आज उसी ताजगी को वो खोता ही जा रहा हैहँसता भी है गर वो तो दिखावा सा ही होता है न हिलते है होंठ न चमक आती है आँखों मेंसैर पर जाता है तो भी पैरों में ही होती है हलचल ख

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