बाल दिवस के दो चेहरे
पहला दृश्य :-
आई एस बी टी से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की और जाते हुए मैंने कुछ बच्चे देखे जो शायद किसी झुग्गी से सम्बन्ध रखते थे ! एक चौराहे पे बेचारे खेल रहे थे ! शायद उनके मम्मी पापा काम पर निकल चुके थे और वो बेचारे बाल दिवस से अंजान अपनी ही मस्ती में खोये हुए थे ! पंद्रह - बीस बच्चों में शायद ही कोई ऐसा बच्चा होगा जिसने आधे कपड़े पहने हो अन्यथा सभी लगभग नंगे बदन ही सुबह की ठंड का मजा ले रहे थे !उनके लिये आज का दिन सिर्फ एक छुट्टी था और पूरा दिन खेलने के लिये था !
दूसरा दृश्य :-
जैसे ही ऑटो रेलवे स्टेशन की और मुड़ने वाला था कुछ बच्चे भागे - भागे अपने हाथ फैलायें आये ! उनके माँगने का अंदाज़ तो लगभग सबको पता ही होता है ? आगे फ़िर कुछ बच्चे बाल दिवस मना रहे थे ! कोई अखबार बेच रहा था , कोई भीख माँग रहा था , कोई चाय के बर्तन साफ कर रहा था तो कोई जूतों को पालिश कर रहा था ! क्या यहीं है इनका बाल दिवस ???
अब देखना कोई गुलाब लगाकर चाचा बन जयेगा ,, कोई कैलाश सत्यवर्ती बनकर इनके साथ फोटो खिंचवाकर नोबल पुरस्कार ले जायेगा तो कोई स्लमडॉग मिलेनियर फिल्म बनाकर करोड़ों कमाएगा और इन बच्चों का जीवन स्तर इसी तरह गिरता जायेगा ! वास्तव में धिक्कार है ऐसी व्यवस्था पर !
मरना होगा पल पल ऐसे ही इनको
बचाने कोई मसीहा नही आयेगा
ज्यों ज्यों बढ़ती जायेगी उम्र इनकी
जीवन में अँधेरा यूँ ही बढ़ता जायेगा
होश सम्भालते ही अपना इनको
इसी तरह रोज़ी - रोटी कमाना होगा
कभी मिल जायेगा खाना शायद
कभी कभी ऐसे भूखे सो जाना होगा
पूरा दिन करते रहे ये मज़दूरी चाहे
कमाई इनकी कोई और खा जायेगा
मरना होगा पल - पल ..........
अधनंगा रहे सदा तन - बदन इनका
शायद ही पहने ये कभी कपड़े मिले
खाते रहे फटकार लोगो की दिनभर
घर आते इन्हे माँ बाप के झगडे मिले
दुश्मन बन जायेगा बाप ही इनका
हर दिन इनको वो यूँ ही सतायेगा
मरना होगा पल - पल .............
खिंचवाकर दो चार फोटो संग इनके
शायद कोई नोबल पुरस्कार ले जाये
बनाकर स्लमडॉग मिलेनियर इन पर
ऑस्कर अवार्ड तक कोई जीत लाये
तड़फ़ते रहेंगे क्या उम्र भर ये ऐसे ही
या फ़िर कोई मदद को हाथ बढायेगा
मरना होगा पल पल .................
सुनो ए नेताओ,सुनो ए समाजसेवियों
कुछ इन गरीबों का भी ख्याल करो
है ये भी हिस्सा अपने ही समाज का
रुका हुआ इनका भविष्य बहाल करो
नही छीनो बचपन इनका तुम " संजू "
होकर जवां ये अपना गौरव बढाएगा