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सदा चेहरे पर लाली

2 दिसम्बर 2015

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कभी  न  घबराने  वाली 
दिखती नही चिंता कभी 
रहे  सदा चेहरे पर लाली

था   अनजान   उससे  मैं 
न  जाने कहाँ से वो आयी 
नही था नाता कोई पुराना 
पर दिलों दिमाग पर  छाई 
भर  दिया  मन खुशियों से 
जो था कब से  मेरा खाली 
दिखता नही ..................

लिये  सात  फेरे  संग  मेरे 
सब कुछ संग मिला लिया 
जो थी चाहते,सपने अपने 
सबको  उसने  भुला दिया 
नही  छोड़ा सूखापन कहीं 
कर दी चहुंओर  हरियाली 
दिखती नही ................

सजती  है  वो  मेरे  लिये  ही 
माँग  में सिंदूर भी सजाती है
नही  थकती   कभी  भी  वो 
कुछ न कुछ करती  जाती है
खिलाती है भरपेट  सभी को 
चाहेखाली रहे खुद की थाली 
दिखती नही ...................

कैसे  बना  ये रिश्ता हमारा 
कैसे ये हमारी हुई  पहचान 
अनजाने  पंछी  दो ये ,कैसे 
बन गये एक दूजे  की जान
चहुंओर   जीवन में प्रकाश 
संजू बीत गयी  रात  काली 
दिखती  नही  चिंता   कहीं 
रहे  सदा  चेहरे   पर  लाली

हरपल  मुस्कराने  वाली 
कभी  न  घबराने  वाली 
दिखती  नही चिंता कहीं 
रहे सदा चेहरे पर  लाली

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रचनाएँ
sanjaykirmara
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मेरे विचार मेरा अधिकार
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बुला रहा है मेरा घर

28 नवम्बर 2015
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आने लगी है इक जानी पहचानी खूशबू  अपने  गाँव  की  और से             चल रहा है  पता  इस  बात  का             हिलोरें खाती हुई हवा के शोर से उमड़ने लगा है भूचाल  अंजाना हर कोने में दिल के  चहुंओर  से             मानो आ रहा है  याद  हमें  मेरा               गाँव और मेरा घर  बड़े जोर  से होगी  खुशीहाली अब

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बाल दिवस

28 नवम्बर 2015
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बाल दिवस के दो चेहरे पहला दृश्य  :-आई एस बी टी  से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की और जाते हुए मैंने कुछ बच्चे देखे जो शायद किसी झुग्गी से सम्बन्ध रखते थे ! एक चौराहे पे बेचारे खेल रहे थे ! शायद  उनके मम्मी पापा काम पर निकल चुके थे और वो बेचारे बाल दिवस से अंजान अपनी ही मस्ती में खोये हुए थे ! पंद्रह - बी

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सदा चेहरे पर लाली

2 दिसम्बर 2015
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कभी  न  घबराने  वाली दिखती नही चिंता कभी रहे  सदा चेहरे पर लालीथा   अनजान   उससे  मैं न  जाने कहाँ से वो आयी नही था नाता कोई पुराना पर दिलों दिमाग पर  छाई भर  दिया  मन खुशियों से जो था कब से  मेरा खाली दिखता नही ..................लिये  सात  फेरे  संग  मेरे सब कुछ संग मिला लिया जो थी चाहते,सपने अपने 

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फिर से खिलेगी चेन्नई

5 दिसम्बर 2015
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चारों   और  पानी  ही पानी चारों  और  हानि   ही हानि चारों और अँधेरा ही अँधेरा हो जाये  अब जल्दी सवेरा चारों और  फैला  हाहाकार राहत  उपायों   का इंतजार मदद को  हर  कोई   तैयार पर बाधा है मौसम की मारआशा है  दिल   के कोने में गंवाना नही हैं आँसु रोने में कुछ  ही पल बाकी हैं  अब ये मुशीबतो    कम  होने म

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ए मेरी धरती .........

7 जनवरी 2016
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ए मेरी  धरती , ए मेरे घर अब  मुझको  तू  बुला ले थक  चूका  हूँ बहुत अब अपने आँचल में सुला लेआता  है  याद  बहुत  तू पूरा   ही  दिन  खलता है मन  तेरे  विरह  में   अब ये  सारा  दिन  जलता है थी  जितनी  भी  खताये सबको  तू  अब भुला ले थक चुका ..............नही   लगता अब  सफर ये अब  पहले सा सुहाना नही  दिखत

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क्या हो गया

8 जनवरी 2016
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न जाने क्यों ये इंशा बदल रहा हैरहता था जो हंसमुख सदा एक अलग सी खामोशी में बंधता ही जा रहा हैरहता था तरोताजा हरदम अच्छे अच्छे विचारों से आज उसी ताजगी को वो खोता ही जा रहा हैहँसता भी है गर वो तो दिखावा सा ही होता है न हिलते है होंठ न चमक आती है आँखों मेंसैर पर जाता है तो भी पैरों में ही होती है हलचल ख

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