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क्या बताएँ तुम को  कि

11 जून 2016

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क्या बताएँ तुम को  कि

तुम हमको हो पसंद क्यों

क्या बताएँ तुम को कि

लगती है तुम्हारी हर बात प्यारी क्यों

क्या बताएँ तुम को कि

लगती है तुम्हारी मुस्कान लुभानी क्यों

क्या बताएँ तुम को कि

तुम्हारी मासूमियत पर मर जाने का जी करता है क्यों

क्या बताएँ तुम को कि

मिलती है तुम्हारे साथ ही ख़ुशी क्यों

क्या बताएँ तुम को कि

तुम से ही है ज़िंदगी जुड़ी क्यों


१ अप्रेल २०१६

जिनेवा


Karan Singh Sagar ( डा. करन सिंह सागर) की अन्य किताबें

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मिलते थे कभी रोज़ जो

11 जून 2016
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आज मिलने का सबब पूँछते हैंखाते थे जो क़समें, साथ रहने की मरने तकआज वो दो क़दम साथ देने से कतराते हैंकहते थे कभी कि घर है उनका, नज़रों में हमारीआज वो नज़रें मिलाने से भी घबराते हैंभीड़ में थाम कर हाथ, हो जाते थे महफ़ूज़आज वो अकेले में मिलने पर भी पहचानते नहींदेख कर आँसुओं को हमारे, देते थे जो ख़ुद रो

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उम्मीद

11 जून 2016
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लगा रखी थी तुम से उम्मीदकि समझ जाओगे दिल की बातक्या मालूम था हमें कितुमने भी यही उम्मीद लगा रखी थीलगा रखी थी तुम से उम्मीद किपढ़ लोगे हमारी नज़रों कोक्या मालूम था हमें कितुमने भी यही उम्मीद लगा रखी थीलगा रखी थी उम्मीद के दोगे तुम जीवन भर साथक्या मालूम था हमें कितुमने भी यही उम्मीद लगा रखी थी१ अप्रेल

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इस मुस्कराहट के पीछे

11 जून 2016
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कभी मुस्कराहट के पीछे छुपाया अपना गमतो कभी छुपाए अपने आँसूंकभी मुस्कराहट के पीछे छुपाया अपना दर्दतो कभी छुपाया अपना डरकभी मुस्कराहट के पीछे छुपाए ख़्यालाततो कभी छुपाए अपने जस्बादकभी मुस्कराहट के पीछे छुपाया गुरुरतो कभी छुपाई अपनी शर्मकभी मुस्कराहट के पीछे छुपाई अपनी जलनतो कभी छुपाया अपना प्यारकभी मुस

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क्या बताएँ तुम को  कि

11 जून 2016
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क्या बताएँ तुम को  कितुम हमको हो पसंद क्योंक्या बताएँ तुम को किलगती है तुम्हारी हर बात प्यारी क्योंक्या बताएँ तुम को किलगती है तुम्हारी मुस्कान लुभानी क्योंक्या बताएँ तुम को कितुम्हारी मासूमियत पर मर जाने का जी करता है क्योंक्या बताएँ तुम को किमिलती है तुम्हारे साथ ही ख़ुशी क्योंक्या बताएँ तुम को कि

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मेरे प्यार की जीत

11 जून 2016
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आँसू बनकर छलक जाऊँ तुम्हारी आँखों सेमुस्कान बनकर झलक जाऊँ तुम्हारे चेहरे परधड़कन बनकर धड़कने लगूँ तुम्हारे दिल मेंएहसास बनकर बस जाऊँ तुम्हारे मन मेंरोशनी बनकर चमकने लगूँ तुम्हारे नैनों मेंउम्मीद बनकर सहारा दूँ तुम्हें हर पलमेरे जाने के बाद बस यही होगी,मेरे प्यार की जीत२८ मार्च २०१६जिनेवा

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तेरी दुआओं का ही असर है यह 

11 जून 2016
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तेरी दुआओं का ही असर है यह कि जी रहे हैं तुझ से जुदा हो कर भी हमतेरे सज़दों का ही असर है यहकि चल रही हैं यह साँसे तुझ से बिछड़ कर भी तेरी इबादत का ही असर है यहकि धड़क रहा यह दिल तुझ से दूर हो कर भीतेरी प्रार्थनाओं का ही असर है यहकि हुई नहीं बंद यह आँखें तेरे जाने के बाद भीयह तेरी दुआओं का ही असर है 

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हमें तो नहीं, शायद तुम्हें ही इल्म हो 

11 जून 2016
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हमें तो नहीं, शायद तुम्हें ही इल्म होहमारे मर्जे इश्क़ का इलाज क्या हैहमारी इस तन्हाई को मिटाने करने का तरीक़ा क्या हैआँखों में बसे इंतज़ार को ख़त्म करने का तरीक़ा क्या हैदिल में बसी यादों का मिटाने का तरीक़ा क्या है ज़िन्दगी के ख़ालीपन से निजात पाने का तरीक़ा क्या है इस अस्तित्व के अधूरेपन को दूर क

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जब तुम साथ होते हो 

11 जून 2016
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जब तुम साथ होते हो मुरझाए फूल भी खिल उठते हैं फीके रंगों में जान आ जाती हैशोर में भी संगीत सुनाई देता हैअमावस की रात भी पूर्णिमा सी लगती हैउदास चेहरों पर भी ख़ुशी झलक जाती हैआँखों में आँसू भी ख़ुशी के आँसू बन जाते हैं ग़ुस्से में भी प्यार छलकता है जब तुम साथ होते होज़िन्दगी को नए मायने मिल जाते हैंब

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जब तुम दूर होते हो 

11 जून 2016
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जब तुम दूर होते हो खिले फूल भी मुरझाए लगते हैंसुनहरे रंग भी फीके लगते हैं मधुर गीत भी शोर से लगते हैं खिलखिलाते चेहरे भी उदास लगते हैं सर्दी की धूप भी तपिश लगती हैचाँद की चाँदनी भी अमावस लगती हैजब तुम दूर होते हो तेरे बिना ज़िन्दगी बेज़ार लगती है२९ फ़रवरी २०१६जिनेवा

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बस इसमें ही ज़िन्दगी कट गयी

11 जून 2016
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अगर मगर में ज़िन्दगी कट गयीयह करें या वो करें, बस इसमें ही ज़िन्दगी कट गयीयह क्या कहेगा वो क्या कहेगा, बस इसमें ही ज़िन्दगी कट गयीयह मेरा है, यह तेरा है, बस इसमें ही ज़िन्दगी कट गयीइस से मिलो उस से न मिलो, बस इसमें ही ज़िन्दगी कट गयीइसे दोस्त बनाओ, उसे नहीं, बस इसमें ही ज़िन्दगी कट गयीयह खाओ, वो मत

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साथ हैं तेरे पर तेरे साथ नहीं हैं, क्यों पता ही नहीं

23 अक्टूबर 2016
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पास हैं तेरे पर तेरे पास नहीं हैं, क्यों पता ही नहीं बात करते हैं तुझ से पर वो बात नहीं हैं, क्यों पता ही नहीं रहते हैं ख़यालों में तेरे पर तेरा ख़याल नहीं हैं, क्यों पता ही नहीं अच्छाइयाँ, कमियों में बदल गयी, क्यों पता ही नहीं उम्मीदें, लाचारी में बदल गयीं, क्यों पता ही नहीं चेहरे का नूर, शिकन

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