आज के इस दौर में
जहाँ एक या दो ही बच्चे होते है
फिर भी क्यूँ लोग
लिंग भेद का बीज बोते है
सबको बेटा चाहिए तो
बेटी कहाँ से लाओगे
अपने बेटे का वंश
कैसे बढाओगे
बेटी न होगी तो
माँ की कोख कहाँ से आयेगी
अगली पीढ़ी की पौध
कहाँ से आएगी
जब जब कुदरत के
नियम से हुआ खिलवाड़ है
तब तब सबका हुआ
बंटाधार है
आज की बेटियां बेटों से
आगे चल रही है
बेटे चाँद की सैर कर रहे
तो बेटियां अंतरिक्ष में उड़ रही है
अब भी वक़्त है सचेत होने का
समाज में चल रही बुराई रोकने का
नहीं तो फिर कुदरत का इंसाफ होगा
सोचो बिना बेटी के कैसा संसार होगा
$पुरुषोत्तम जाजु$