🙏🙏🙏मैं हिन्दी हूँ 🙏🙏🙏
मैं एक समपुर्ण राष्ट्र की अभिव्यक्ति हूँ,
मैं संक्रीर्ण नहीं,विराट परमातमा की द्रष्टि हूँ,
मैं तो सत्य सदाचार का प्रतिनिधि करती हूँ,
मैं हिन्दी हूँ, संस्कृत की पुत्री हूँ।
मैं सौभाग्यशाली हूँ,राम भूमि पर जन्मी हूँ,
जीवन भर माँ भारती की आराधना करती हूँ,
मुझे संत कबीर , विवेकानंद ने आपनाय था,
धरती सा धैर्य, वायू सा वेग, विरासत में पया था।
मेरा चैन हुआ विराटता फैलाने को,
ध्यान उपासना द्वारा, संस्कृति बचाने को,
मत हटाओं मुझे, अभी तो मैं जीवित हूँ,
मैं आप के देश की, एक लाचार अभिवक्ति हूँ,
मिझे मेरा हक पुश्तैनी अधिकार लौटा दो,
नहीं आती तो सिखकर, सब मुझे बचा लो,
मेरे दादा-परदादा ने, मान दुलरो से पाला हैं,
कलित कलपाना ने से ही मुझे विश्व में उतारा हैं।
जो इतना ना कर पाओ ती, मेरा तर्पण कर देना,
बैठ कही गंगा सागर पर, मेरे नाम का जल देना,
श्रध्द कर देना हिन्दी दिन, और तुम इतना कर देना,
पढ़-पढ़ कर हिन्दी पुस्तक को,कुछ तो वेदना कम कर देना।
मंजू शर्मा
सूरत गुजरात