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मैं कृष्ण बना

14 अक्टूबर 2015

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आप सभी कविगण व लेखकों से क्षमा चाहूँगा अत्यधिक व्यस्तता के कारण आप लोगों के बीच नहीं आ सका.. आज अपनी पहली हास्य कविता जो 3 वर्ष पहले लिखी थी ,के साथ उपस्तिथ हूँ.... इक रोज मैंने सोचा मैं कान्हा बन के जाऊँ दिल का तार छेड़े ऐसी धुन मैं छेड़ जाऊँ दृढ़ निश्चय पे अडिग हो है मन में मैंने ठानी कि गोपियों के साथ मैं रास फिर रचाऊं फिर पहना मैंने लहंगा और गले में थी माला थाम के मुरली बन गया मैं कृष्ण ग्वाला केशुओं में मोरपंख मस्तक तिलक लगाया और काँधे पे ओढ़ा मैंने पीत सा दुशाला फिर बीच धूप में मैं इक पांव पर खड़ा था सब समझा रहे थे मुझको,जिद पे मैं अड़ा था मुझे लोग देखकर यूँ फब्तियां कस रहे थे बच्चों ने मारी ताली और बूढ़े भी हंस रहे थे उनमें से कुछ दयालु आगे बढ़ कर आये किसी ने दीं रोटियां किसी ने रूपये चढ़ाये बनने आया कान्हा मैं भिखारी बन गया था बन्दर की तरह नाचा जग मदारी बन गया था हवा के एक झौंके ने मेरा मोर पंख उड़ाया मुझे याद आया लहंगे में नारा नहीं लगाया तभी एक बालक माँ कह कर दौड़ा आया लटका मेरे लहंगे से बचा सम्मान भी गंवाया फिर सोचने लगे हम सही राह अब चुनेंगे मन्दिर में जायेंगे तो गोपियों से फिर मिलेंगे मंदिर में जा के देखीं कन्याएं बहुत सारी कोई घाघरा चोली कोई पहना था साड़ी सब देख कर मुझे खिलखिला के हंस रही थीं और मैंने सोचा शायद मेरी दाल पक रही थी इक कन्या से मैं बोला मैं कृष्ण तुम हो राधा आओ रास रचाएं अब कोई नहीं है बाधा सुन के मेरी बात वो एक अदा से मुस्कुराई धन्य हो गया मैं कोई कृष्ण तो समझ पाई फिर बोली वो हसीना तुम कृष्ण मैं हूँ राधा पर और गोपियों से भी तुमने किया है वादा और ऐसा कह के उसने आवाज है लगाई हाथों में ले के डंडे बहुत सारी गोपी आईं किसी ने मारी सैंडिल किसी ने डंडे से पीटा बीच रोड पे मुझे बहुत दूर तक घसीटा गिरा इस पार था लहंगा उस पार था दुशाला और बीच में पड़ा मैं इक नेकर ने था सम्हाला मैंने कहा बहन जी न मैं कृष्ण न तू राधा कर लिया था मैंने बेकार इक इरादा भटक गया था जो मैं इस राह आ गया था कभी लौट के न आऊंगा करता हूँ तुमसे वादा वैभव दुबे'विशेष'
वैभव दुबे

वैभव दुबे

प्रियंका जी पुष्पा जी हृदयतल से आभार

25 दिसम्बर 2015

पुष्पा पी. परजिया

पुष्पा पी. परजिया

बहुत सुन्दर व्यंग रचना .. बधाइयाँ

31 अक्टूबर 2015

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

वैभव जी , आप लिखते रहा करे । बहुत उम्दा

31 अक्टूबर 2015

वैभव दुबे

वैभव दुबे

ओम प्रकाश जी ,योगिता जी हृदयतल से आभार

16 अक्टूबर 2015

15 अक्टूबर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

वैभव जी, बहुत-बहुत स्वागत है आपका ! कहीं भी रहे, लिखते रहा करिये । सुन्दर रचना, बधाई !

15 अक्टूबर 2015

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शिक्षा का महत्व

6 अगस्त 2015
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शिक्षा सागर मीठे जल काशिक्षा अम्बर बाहुबल काशिक्षा ज्ञान की प्यास बुझाएशिक्षा का अमृत जब छलकाशिक्षा बांधे प्रेम की डोरी मेंशिक्षा मिले माँ की लोरी मेंशिक्षा जीवन की प्रसन्नताशिक्षा स्नेह है आँचल काशिक्षा बेटियों का दर्पण हैशिक्षा बेटों का समर्पण हैशिक्षा का दीप आज जलेशिक्षा उजाला है कल काशिक्षा अप

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मैं कृष्ण बना

14 अक्टूबर 2015
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आप सभी कविगण व लेखकों से क्षमा चाहूँगाअत्यधिक व्यस्तता के कारण आप लोगों केबीच नहीं आ सका..आज अपनी पहली हास्य कविता जो 3 वर्ष पहले लिखी थी ,के साथ उपस्तिथ हूँ....इक रोज मैंने सोचा मैं कान्हा बन के जाऊँदिल का तार छेड़े ऐसी धुन मैं छेड़ जाऊँदृढ़ निश्चय पे अडिग हो है मन में मैंने ठानीकि गोपियों के साथ मैं

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गजल

4 अक्टूबर 2016
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कोख का कष्ट

6 दिसम्बर 2016
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सुनो मम्मी सुनो पापा तुम्हारी गुड़िया रानी हूँजो भैया की कलाई पर बंधे राखी सुहानी हूँमैं नन्हें दिल के सपनों से इसी आँगन में खेलूंगीनहीं मारो मुझे तुम कोख में दुनिया मैं देखूंगीतुम्हारे प्यार के लम्हों की मैं भी इक निशानी हूँसुनो मम्मी सुनो पापा तुम्हारी गुड़िया रानी हूँजो भैया की कलाई पर बंधे राखी सु

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एक ध्वज हो गया

7 अगस्त 2019
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बिना रक्तपात वीर शिवा की तलवार काराणा जी के भाले का भी सम्मान हो गयारामबाण औषधि प्रयोग में ले आये जबअसाध्य रोग का संभव निदान हो गयाकई वर्षों पुराने एक विकट प्रसंग कादेश के दुलारे द्वारा समाधान हो गयाएक नागरिकता हुई एक ध्वज के तलेएक ही विधान एक संविधान हो गया

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