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इक मां का दर्द

20 जून 2016

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स्वप्न आता है इक रात सोयी हुई मां को
पुत्री, स्वयं मां आदिशक्ति तेरे घर आयेगी
एक चिरकाल से स्वर्ग में विचरित अप्सरा
जल्द ही तेरी पावन कोख में स्थान पायेगी


अचानक चौंककर घबरा उठती है वो अबला
अश्रु नींदों में भी, गालों पर ढलक आते हैं
हाथ जोङ, मांगती है पूत्रजन्म की भिक्षा
कहती है मां, दया करो ये मार डाली जायेगी


रोते रोते वो चली जाती है, कहीं दूर अतीत में
जब पहली बार हूई थी, उसके गर्भ में हलचल
हर जगह बताते नहीं थकती थी वो ये बात
कि हमारे घर आने वाली है, खुशियों की बारात


पति ने तो सुनते ही, बाहुपाश पूरा कस दिया था
सास भी तो थकती ना थी, सौ सौ लेते बलैईयां
ससुर जी ने परम्परा तोङ सूना दिया था फरमान
बहु का ख्याल हम ही रखेंगे, ये पीहर ना जायेगी


तीन महिने मैंने जाना कि सास, मां से बङी क्यों है
हर काम पर झिङकी, कि सो जा, तूं खङी क्यों है
ननद का रोज फोन कर तबियत पूछना क्या कहूं
जिंदगी की वो खुशियाँ, कभी भूलाई ना जायेंगी


हंसते खेलते, तीसरे महिने, जाँच का समय आया
घर आयेगी लक्ष्मी, डाक्टर ने देखभाल कर बताया
न जाने क्यूंकर खुशियों का आइना, कांच बन गया
पहली बार मैंने किसी को, लक्ष्मी सून मुरझाते पाया


वापसी में पूरे रास्ते, वो एक भी शब्द ना बोले थे
बनों चाहे मासूम, पर वो कभी भी इतने ना भोले थे
पहली बार अनजाने में, मेरी धङकनें बढ चली थी
मेरे दिल के तराजू ने, कुछ अनिष्ट से पल तोले थे


घर पर तो जैसे पूरा कौतुक, मेरे ही इंतजार में था
समझ आ गया कितना जहर, सास के प्यार में था
जिस सास को, ननद लगती थी जान से भी प्यारी
उसका फैसला मेरी अजन्मी बेटी की चितकार में था


ससुर जी को हर मिनट, बहत्तर अटैक आ रहे थे
खूद थे जिंदा, पर पोती के नाम को मिटा रहे थे
जो कहते थे कि, मेरी देखभाल पीहर ना कर पायेगा
अब ससुराल की चौखट से भी, धक्के मरवा रहे थे


कैकयी मंथरा की परिकल्पना, नहीं है केवल कहानी
शब्द बा शब्द जिया ननद नें, मेरा जरा कहा ना मानी
कितने भी मंदिरों में माथा रगङ लेना तूं मेरी बहन
तुझे माफ ना करेगा, मेरी आंखों का सूखा हुआ पानी


इन सब के बीच मुझे मेरे पति पर, अब भी अास था
मरती हुई उम्मीदों के बीच भी, कहीं इक विश्वास था
पर उस आलिंगन की कसमसाहट में बिखर गयी मैं
जब पता चला कि मेरा भगवान भी जिंदा लाश था


ऐसे समय में भाई सदृश्य, देवर ने जब सम्भाला था
तो राम ने मेरे लक्ष्मण का चरित्र तक खंगाला था
मां सीता की अग्निपरीक्षा का दुख जाना था मैनें
रोने भी ना दिया मूझे, लक्ष्मण को दिया निकाला था


मेरे स्वप्न में आने वाली, तुझे दया जरा ना आयी
जब उस कसाई ने मेरी जिंदगी पर आरी थी चलाई
मानती हूँ कि प्रेम से सूनना, बंद कर दिया है तूने
पर क्या मेरी बच्ची की चीखें भी तूझ तक ना आई


मातारानी तूने भी लजाया है मेरे आंसुओं का नाम
तूझ पर भी है, मेरी बच्ची की मौत का इल्जाम
मेरे ससुराल के दुख, उन से पहले मूझ पर टूटें
पर फिर भी तूं, इन्हें देना जरूर इस पाप का परिणाम..........



"दोस्तों, कथानक के इस तरह के विषादपूर्ण समापन पर क्षमाप्रार्थी हूं। परन्तु ये एक ऐसा कटु सत्य है, जिस जहर को पीकर हजारों स्त्रियाँ झूठी हंसी के साथ विवशता से जी रही हैं। बस उस दर्द को उजागर करने का प्रयास किया है और इन चंद अनकहे शब्दों के साथ कलम को विश्राम दूंगा कि............


"हैं गुङिया ये कांच की, ना खेलो यूं इनसे
इक बदनिगाह से ही बिखर जायेंगी
शक्ल ही नहीं, अक्स भी दिखा सकती हैं ये
जो हमने ना सम्भाला, तो कहां जायेंगी....."


अनकहे शब्द. 322 likes · 5 talking about this. दोस्तों, जिन्दगी की भागदौड़ ने बंजारा बना दिया है। वक्त किसी के साथ ज्यादा समय रूकने नहीं देता और दिल किसी... अनकहे शब्द

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