खुदा के घर आई खुशियां
हुआ प्रादुर्भाव, प्यारी सी कन्या का
नाम रखा, "जिंदगी"
जहां भी जाती,
अपने दोस्त
उमंग, तरंग, आशा, विश्वास
सदा साथ ले जाती
वक्त प्रवाह में
हंसती मुस्काती चिङती झुंझलाती
जा पहुंची यौवन को
घर वालों ने ढूंढा रिश्ता
हर दिल की ख्वाहिश, मन्नतों का बेटा
उल्लास...... हां, पक्का सा तो याद नहीं
पर शायद उल्लास नाम था उसका
लेकिन
जिंदगी तो अपना दिल
कहीं और हार चूकी थी
उसकी विदाई तो मौत के साथ लिखी थी
और फिर इक दिन
सब का हाथ छुङा, बिन बताये
जिंदगी, हो गई रूखसत
मौत के साथ
उमंग, तरंग, आशा, विश्वास
सब रह गये देखते
उल्लास भी हो गया गुमसुम
उस दिन से अबतक
कभी पहले सा ना मुस्काया
खुदा भी,
कर उठा चित्कार
दिया दोनों को श्राप
कि रहोगे अब तुम,
सदा म्रत्युलोक में ही
लेकिन इक दूजे से परे परे
और जब भी मिलोगे
कोई भी ना होगा खुश,
ये जहान केवल रोयेगा
तब से
जिंदगी मौत की तलाश में रहती है जिंदा
तो मौत करती है हर कोशिश, ले जाने को जिंदगी
लेकिन पिता तो फिर पिता है
दिया दोनों को
इक वरदान भी
कि,
तूम रहोगे
चर अचर जगत के,
दुनियावी प्रभावों के बाहर,
अटल सत्य की भांति, चिर दीप्तिमान,
सदैव इक दूजे से दूर
परन्तु
हर बार, हर जन्म
इक दूजे से मिलोगे अवश्य......