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मरता कुआँ

13 सितम्बर 2017

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स्रोत था जीवन का मै

अमृत था मेरा जल

तृप्त होते थे मुझसे तुम रोज

सिंचित करता था हर पल

करते थे पूजा सुबह शाम मेरी

था वर्चश्व तुम्हारे जीवन पर

सोते जागते थे तुम मेरे साथ

सुनता था तुम्हारे दुःख सुख की बात

जब से हुई है नल और कल से दोस्ती

तुम्हारी लुप्त हो रही है मेरी पहचान

है मेरे भी रिश्तेदार शहर के हर मुहल्लों में

अब वो भी हो गये विलुप्त

अब है मेरी बारी

मै ले रहा हूँ अन्तिम साँसे

रो रही है आत्मा अब मेरी

कर रहे हो दफ़न मुझे

तड़पा तड़पा के हर रोज

मनाओगे ख़ुशी बना के मेरा कब्र

कोई नहीं चाहता जीर्णोद्धार मेरा

रोओगे तुम एक दिन जब टूट जाएगी दोस्ती नल और कल की

देर हो जायेगी तब तक खोदोगे

मेरा क़ब्र मिलेगा अवशेष

नही मिलेगा जीवन का वह स्रोत

चाहते हो खुशहाली कर दो

मेरा जीर्णोद्धार करूँगा सिंचित

सबको यही है अंतिम इच्छा हमारी

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आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुत अच्छी रचना है | लिखते रहिये |

14 सितम्बर 2017

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