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मेरा अपना कोना

6 मार्च 2016

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अविरल हो गए नैनों के नीर।

अति दुखद है मन के पीर ।।

प्रेम बिना है जीवन सूना ।

इसके बिना क्या जीना मरना ।।

मन हो उठा अति अधीर ।

कटेगी कब पीड़ा की जंजीर ।।

विस्तृत नभ में मेरा कोई कोना होगा ।।

कभी मेरा भी कोई बिल्कुल अपना होगा

स्पर्श

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मेरी रचना को पसंद करने के लिए बहुत धन्यवाद

8 मार्च 2016

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