लौट के आता बचपन मेरा
मित्रों के संग में आँख मिचौनी
रेल भी चलती कोलकाता बरौनी
पिताजी के संग बाजार घूमते
आकाश के नीचे हम झूमते
तितली के पीछे बागों का फेरा, लौट के आता बचपन मेरा
बरसात के पानी में चलती
कागज की अपनी नाव पुरानी
तब माताजी डांट पिलाती
दादी सुनाती बड़ी कहानी
चारों ओर हम नन्हो का घेरा, लौट के आता बचपन मेरा
पढ़ने जाते ऱोज सबेरे
खेल के वक्त मैदान में डेरे
शिक्षक के गुस्से से डरते
सबक रोज़ याद हम करते
वो अरमानों का नया सवेरा, लौट के आता बचपन मेरा
स्मृति पटल पर उभरे चित्र
धूमिल करते समय चक्र
छलक आए नैनो के मोती
काश वो बेला अब भी होती
साथ में होता बचपन मेरा, लौट के आता बचपन मेरा ।