क्या तुम्हें रोना आता है ?
निस दिन एक एक जमा कर
अतीत के स्वप्न फिर सजाकर
जीवन से सब कुछ पाकर
हृदय को कठोर बना का
सभी एक पल में खोना आता है, क्या तुम्हें रोना आता है..
जग के बदलते रंग देखकर
तन्हाई को संग देखकर
अरमानों की लाश बिचवा कर
उस पर स्वप्न का सारांश लिखवा कर
नैतिकता से धोना आता है, क्या तुम्हें रोना आता है..
मजबूरी में होंठ को सीकर
क्या करेंगे ऐसे में जी कर
ठीक है अब बस भी कर
क्रोध को आंसू संग पीकर
चुपचाप सोना आता है, क्या तुम्हें रोना आता है ?