है ये स्वाभिमान की, जगमगाती सी मेरी जन्मभूमि..
स्वतंत्र है अब ये आत्मा, आजाद है मेरा वतन,
ना ही कोई जोर है, न बेवशी का कहीं पे चलन,
मन में इक आश है,आँखों में बस पलते सपन,
भले टाट के हों पैबंद, झूमता है आज मेरा मन।
सींचता हूँ मैं जतन से, स्वाभिमान की ये जन्मभूमि..
हमने जो बोए फसल, खिल आएंगे वो एक दिन,
कर्म की तप्त साध से, लहलहाएंगे वो एक दिन,
न भूख की हमें फिक्र होगी, न ज्ञान की ही कमी,
विश्व के हम शीष होंगे, अग्रणी होगी ये सरजमीं।
प्रखर लौ की प्रकाश से, जगमगाएगी मेरी जन्मभूमि...
विलक्षण ज्ञान की प्रभा, लेकर उगेगी हर प्रभात,
विश्व के इस मंच पर,अपने देश की होगी विसात,
चलेगा विकाश का ये रथ, या हो दिन या हो रात,
वतन की हर जुबाॅ पर, होगी स्वाभिमान की बात।
स्वतंत्र इस विचार से, गुनगुनाएगी ये मेरी जन्मभूमि...