अंजानी सी रात
जरा सा चूमकर, उनींदी सी पलकों को,कुछ देर तक, ठहर गई थी वो रात,कह न सका था कुछ अपनी, गैरों से हुए हालात,ठिठक कर हौले से कदम लिए फिर,लाचार सी, गुजरती रही वो रात रुक-रुककर।अंजान थी वो, उनींदी स्वप्निल सी आँखें,,मूँदी रही वो पलकें, ख्वाबों में डूबकर,न तनिक भी थी उसको, बिलखते रात की खबर,गुजरती रही वो रात