बात लगभग मेरे बचपन से शुरू होती है मेरी उम्र लगभग 8 या 9 साल रही होगी उस समय गांव के ही एक स्कूल में पांचवी कक्षा में पढ़ती थी तुम मेरी माताजी को पैर में थोड़ी बहुत दिक्कत महसूस हुई उन्होंने सोचा दर्द है तो दवाई ले लिया से किसी गांव के डॉक्टर से लेकिन वो दर्द कम नहीं हुआ और बढ़ता ही गया उसके बाद कुछ और बाहर डॉक्टरों को शहर के अंदर दिखाया गया उनके चेकअप तो पता चला कि मेरी मां को बोन कैंसर है बात 2011 की है जिस दिन यह पता चला मैंने पहली बार अपने पापा को रोते हुए देखा क्योंकि उनके तीन बच्चे थे जिनमें सबसे बड़ी मैं ही थी मेरे दो बहन भाई मुझसे छोटे थे अब अपने आप भी संभलना ओर अपने परिवार को भी संभलना था अब शुरू हुआ मेरी माँ का रोज अस्पताल का चक्कर ओर अपनी बीमारी से जूझना और दर्द को सहना कुछ समय हमारे यहां कैंसर के बारे में कोई इतनी का जानकारी भी नहीं थी हमारी नजर में कैंसर एक लाइलाज बीमारी ही थी क्योंकि हमारे आसपास आज तक जिन लोगों को भी कैंसर हुआ इनमें से किसी की भी जान नहीं बच पाई यह डर अब हमें भी सताने लगा मैं कुछ बड़ी थी तो मुझे थोड़ी समझ थी आर्थिक रूप से भी हमारी स्थिति उतनी अच्छी नही थी हाँ ये था कि मेरे मम्मी पापा मिलकर जो काम करते थे उसे हमारे घर का खर्च चल जाता था ठीक-ठाक से लेकिन अचानक ऐसी लाइलाज बीमारी गाना हमारे लिए एक सदमे की तरह था मेरे मम्मी और पापा गाय भैंस पालते थे और उनके दूध को बेचकर हमारे घर का खर्च चलता था मम्मी की बीमारी के आने से अब हालत यह थी कि अकेले पापा से काम संभल नहीं रहा था और मम्मी की बीमारी में भी पैसे काफी खर्च हो रहे थे तब हमें आर्थिक रूप से भी दिक्कत होने लगी थी ओर मम्मी की बीमारी से कुछ थोड़े ही दिन पहले हमने परचून की दुकान खोली थी जो सोने लगभग गांव में ठीक ही चल रही थी लेकिन अब वह भी बंद हो गई थी मेरे पापा मम्मी को लेकर गांव से बाहर चले गए थे उसके लिए उनको एक शहर में रखा गया था जहां उनका इलाज चल रहा था लेकिन डॉक्टरों ने उनके ठीक होने की कोई भी गुंजाइश ना होने की बात कही थी और उनके पैर का ऑपरेशन होना था जिससे उनका पैर जाँघ से काटने की बात कही गई थी और उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं दी थी वह ठीक हो ही जाएंगी और उस ऑपरेशन का खर्च भी बहुत महंगा था तब मेरी मम्मी ने अपना ऑपरेशन कराने से मना कर दिया और उनको कहीं और हॉस्पिटल्स में भी दिखाया गया उस समय मेरी मम्मी के साथ मेरे चाचा मामा नाना और मेरे पापा होते थे लेकिन मेरी मां के अंदर एक अजीब सा जज्बा था वह दिमाग से बहुत ही पावरफुल महिला है उनका माइंड बहुत स्ट्रांग है उनको यह पता था कि तुम्हें कैंसर है लेकिन फिर भी वह डरती नहीं थी उनके साथ में जो होते थे उनको भी समझाती थी कि कुछ नहीं होगा सब ठीक हो जाएगा मेरे पापा या नाना में से अगर कोई ज्यादा घबरा जाता तो उनको डांट भी देती थी कहती कि बीमार मैं हूं मुझे घबराना चाहिए और घबरा तुम रहे हो अब बात हुई थी कि ऑपरेशन के ना तो हमारे पास पैसे थे और ना ही मेरी मां ऑपरेशन कराना चाहती थी अब बात यह थी उन्हें जो दिक्कत थी वो बनी हुई थी किसी ने बोला कि तुम ना राजस्थान मैं एक जगह है कुआ धाम तुम वहां चले जाओ और वहां कैंसर ठीक हो जाता है अब यही सब सुनकर हम राजस्थान चले
मेरी माँ एक योद्धा माता का जो मंदिर है मंदिर के चारों तरफ के चक्कर लगाने पड़ते हैं तुम हां जाकर मेरी मां अचानक खड़ी होकर चक्कर लगाने लगी और कुछ ही दिन में वह बहुत ठीक हो गई और अब मेरी मां हर महीने वहाँ जाती थी और माता की पूजा करती और पूजा में अपना ध्यान लगाती भगवान पर उन्हें पूरा विश्वास हो गया था कि ठीक हो जाएगी अगर कोई उन्हें यह भी बोलता कि तुम्हें कैंसर है तुम कहती कोई नहीं ठीक हो जाएगा कैंसर ही तो है और मुझे ऐसा लगता है कि मेरी मां का दिमागी रूप से इतना मजबूत होना और यह विश्वास करना कि तू ठीक हो जाएगी और अपनी आसक्ति को भगवान से जोड़ना सबसे बड़ा कारण था कि मेरी मां का कैंसर ठीक हो गया और मेडिकल साइंस यहां गलत पूर्व हो गई क्योंकि डॉक्टर ने यह बात बोल दी थी कि यह ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहे और इस घटना को लगभग आज 12 साल हो चुके हैं और मेरी मां अब ठीक है भगवान से दुआ है कि वह हमेशा स्वस्थ रहे और आप सबके मां-बाप भी हमेशा स्वस्थ रहें जो इस कहानी को पढ़ रहा है कमेंट जरूर करें कि मेरी मां की साहसी
कहानी आपको कैसी लगी धन्यवाद