shabd-logo

मिलेगी मंजिल मुझे

6 अगस्त 2016

282 बार देखा गया 282

मखमूर देहलवी ने खूब कहा है.....


एक न एक दिन अपनी मंजिल पर पहुँच लेंगे जरूर

जो कदम उठाते हैं आसानी से मुश्किल की तरफ


कदम तो मंजिल की तरफ सभी उठा लेते हैं लेकिन मंजिल तक पहुंचने का सब में माद्दा नहीं होता.मंजिल तक पहुंचने में कई बाधाएं आती हैं लेकिन जो डटे रहते हैं वे जरूर पहुँचते हैं.सफलता आसानी से नहीं मिलती.


असफलता के नाम से हम सभी डरते हैं.सफलता,समृद्धि तभी मिलती है,जब उसके बारे में सोचते हैं.जो व्यक्ति सिर्फ असफलता की बात सोचता है,सफलता उसके बस का रोग नहीं.सफल चिंतन को ही सफलता का वरदान प्राप्त है.बुरी घटनाओं,बुरी बातों से हमेशा ग्रस्त रहना अज्ञानता  है.हमारा मन बहुत जल्दी भयभीत हो जाता है.इसे मन से दूर फेंकने का एक ही रास्ता है कि हम सकारात्मक सोचें.हम चिंतन करें,चिंता नहीं.


जीवन के सफ़र में बहुत से साथी मिलते हैं.कुछ मिलते हैं,जिन्हें दो पल याद रखते हैं.कुछ साथी कुछ दिन याद रहते हैं.फिर 

उनकी छवि धूमिल पड़ने लगती है.यादों की धुरी में आदर्श या प्रेरणा को संयोग से व्यक्ति बहुत कम अनुभव कर पाते हैं.

कभी-कभी एक साधारण सा व्यक्ति अपनी बातों,अपने काम,और अपने व्यक्तित्व से दूसरों को इस हद तक प्रभावित कर देता है कि अनजाने में ही वह प्ररणा बन जाता है.व्यक्तित्व केवल शारीर का उपरी,उसका बोलना,चलना,उठना,बैठना इन सबके साथ-साथ व्यक्ति के व्यक्तित्व के लिए जरूरी है उसका सम्बन्ध,उसके विचारों,उसके मन और उसके भीतर छिपी शक्तियों से है.कई बार हममें आत्मविश्वास की कमी के कारण अपने सामर्थ्य पर ही भरोसा नहीं हो पाता.


अपने भीतर जब झांकते हैं तो सबसे पहले चिंता और भय की आवाज सुनाई देती है.पूरा शरीर इसी से त्रस्त दीखता है.असफलता के नाम से हम डरते हैं.आज के प्रतियोगी युग ने मनुष्य को उपहार ने निराशा दी है.मन के भीतर किसी कोने में दुबकी ये निराशा मन पर बार-बार चोट करती है.सजे सुन्दर कमरों में बैठा निराशा से ग्रस्त थका-हारा मानव बहुत जल्दी टूटने लगा है.हम अपने ही विचारों से डर गए हैं.आशा एक सशक्त चुंबक है और वह अभ्यास से प्राप्त होती है.यह हमारी सबसे बड़ी पूंजी है.


आशा का दीपक पथ प्रशस्त करता है.आशा बनी रहे,इसलिए स्वामी विवेकानंद के विचार बहुत सुंदर हैं,”वह बात मन में ही न लाओ,जो तुम व्यक्त नहीं करना चाहते.”


सुख-सुविधाओं से पूर्ण आराम का जीवन सभी को प्यारा होता है.अपने लक्ष्य को पाने के लिए जब प्रयत्न करते हैं,तब अच्छे-बुरे दोनों तरह के लोग संपर्क में आते हैं,जो लोग हमारी बुराई करते हैं,उनसे हम दूर रहना चाहते हैं.यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है.यदि हमें अपने आपको तराशना है,तो अपनी गलतियों को सुनिए,समझिए और चिंतन करिए ताकि आप मुक्ति पा सकें.

आज के मशीनी युग ने मनुष्य को यंत्रवत जीवन जीना सिखा दिया है.करुणा,दया,प्रेम,क्षमा ये सब नाम मात्र के लिए रह गई हैं.आज का चतुर मनुष्य समय के महत्त्व को पहचान चतुरता से धन कमाने की बात सोचने लगा है.सुख-दु:ख आपके अपने भीतर हैं.


हमारे मन की जो स्थिति होती है,हम हर एक चीज को उसी के रंग में रंग लेते हैं.हमारे मन के भाव सुंदर हैं तो चीज भी सुंदर है और हमारी मनस्थिति असुंदर तो चीज भी असुंदर जान पड़ती है.हमें अपने लक्ष्य की और बढ़ना है,पर यंत्रवत नहीं बल्कि अपने भीतर छोटी-छोटी खुशियों को समेटकर आगे बढ़ें.


व्यक्तित्व को उभरने के लिए आत्मविश्वास साहस का पर्याय है.मनुष्य की महानता साहस से मापी जाती है.शेक्सपियर ने कहा है कि,’साहस अवसर पहचानता है.’ हर रात सोने से पहले यह सोचें कि ‘मैं कर सकता हूँ और करूंगा.’ आत्मविश्वास से साहस की भावना पढ़ती है.लड़खड़ाते क़दमों से मंजिल तय नहीं की जा सकती है.कार्लाइल का कहना है कि ‘अपने काम को समझो और फिर दानव की तरह उस पर पिल पड़ो.’अपने आप जब अपने मन से बातें करते हैं तो शरीर के सेलों घृणा,झूठ की बात न करके श्रेष्ठ भावना की बात करें.


मकड़ी के जालों की तरह विचार हमारे चारों ओर मंडराते हैं.अपने आपको प्रधानता देने के लिए बार-बार हमारी सोच अपने आप पर केंद्रित हो जाती है.दिन भर में ढेर सारे सही-गलत कार्यों को करने के बाद आत्मचिंतन जरूरी है.आदर्शों के विरुद्ध कोई भी काम करने पर मन में अंतर्द्वंद चलता रहता है.इससे बाहर निकलने के लिए जरूरी है कि अपनी गलती को स्वीकार कर आगे बढ़ने का प्रयास किया जाय.


अपने भीतर जो भी सृजन का अंकुर फूटा है,उसे दबाएं नहीं.कला,चित्रकारी, लेखन ,कविता  जिस भी रूप में धारा प्रवाहित हो उसे बहने देना ही उचित है.हम स्वयं ही पहचान सकते हैं कि कला का कौन सा कोना अपने मन को छूता है.जीवन अमूल्य है,समय की गति के साथ अपनी रचनात्मक क्षमता को पहचानना चाहिए.

राजीव कुमार झा की अन्य किताबें

3
रचनाएँ
rkjha
0.0
मन के भावों को शब्दों में ढालने की छोटी सी कोशिश
1

इंसां मगर दिखता नहीं

3 अगस्त 2016
0
0
0

शहर में चेहरे तो लाखोंहैं, इंसां मगर दिखता नहीं शीशे का मकां न है, पत्थरहाथ में कोई रखता नहीं  आदमी आदमी का में जबसे भेदहोने लगा है  हाथ मिलता है दिल मगर मिलतानहीं  दोस्त कौन है और कौन हैदुश्मन जानते सब हैं कोई मगर कहतानहीं  जुनूने इश्क के रंग भी अजीबहैं दर्द तो देता है दवा मगरदेता नहीं  खरीदने बिकन

2

तनहा सफ़र

5 अगस्त 2016
0
2
0

तनहा कटगया जिंदगी का सफ़र कई साल काचंद अल्फाज कह भी डालिए अजी मेरे हाल पर<!--[if !supportLineBreakNewLine]--><!--[endif]-->मौसम हैबादलों की बरसात हो ही जाएगीहंस पड़ी धूप तभी इस ख्याल पर फिरकहाँ मिलेंगे मरने के बाद हमसोचतेही रहे सब इस सवाल पर<!--[if !supportLineBreakNewLine]--><!--[endif]--> शायद इनर

3

मिलेगी मंजिल मुझे

6 अगस्त 2016
0
0
0

मखमूर देहलवी ने खूबकहा है.....एक न एक दिन अपनीमंजिल पर पहुँच लेंगे जरूर जो कदम उठाते हैंआसानी से मुश्किल की तरफ कदम तो मंजिल की तरफ सभीउठा लेते हैं लेकिन मंजिल तक पहुंचने का सब में माद्दा नहीं होता.मंजिल तक पहुंचनेमें कई बाधाएं आती हैं लेकिन जो डटे रहते हैं वे जरूर पहुँचते हैं.सफलता आसानी सेनहीं मिल

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए