shabd-logo

इंसां मगर दिखता नहीं

3 अगस्त 2016

142 बार देखा गया 142

शहर में चेहरे तो लाखों हैं, इंसां मगर दिखता नहीं

शीशे का मकां न है, पत्थर हाथ में कोई रखता नहीं

 

आदमी आदमी का में जबसे भेद होने लगा है 

हाथ मिलता है दिल मगर मिलता नहीं

 

दोस्त कौन है और कौन है दुश्मन

जानते सब हैं कोई मगर कहता नहीं

 

जुनूने इश्क के रंग भी अजीब हैं

दर्द तो देता है दवा मगर देता नहीं

 

खरीदने बिकने की बात क्यों करता है

ईमान तो मगर बिकता नहीं

 

दरिया किस तरह पार करोगे ‘राजीव’

कश्ती है साहिल मगर दिखता नहीं 

राजीव कुमार झा की अन्य किताबें

3
रचनाएँ
rkjha
0.0
मन के भावों को शब्दों में ढालने की छोटी सी कोशिश
1

इंसां मगर दिखता नहीं

3 अगस्त 2016
0
0
0

शहर में चेहरे तो लाखोंहैं, इंसां मगर दिखता नहीं शीशे का मकां न है, पत्थरहाथ में कोई रखता नहीं  आदमी आदमी का में जबसे भेदहोने लगा है  हाथ मिलता है दिल मगर मिलतानहीं  दोस्त कौन है और कौन हैदुश्मन जानते सब हैं कोई मगर कहतानहीं  जुनूने इश्क के रंग भी अजीबहैं दर्द तो देता है दवा मगरदेता नहीं  खरीदने बिकन

2

तनहा सफ़र

5 अगस्त 2016
0
2
0

तनहा कटगया जिंदगी का सफ़र कई साल काचंद अल्फाज कह भी डालिए अजी मेरे हाल पर<!--[if !supportLineBreakNewLine]--><!--[endif]-->मौसम हैबादलों की बरसात हो ही जाएगीहंस पड़ी धूप तभी इस ख्याल पर फिरकहाँ मिलेंगे मरने के बाद हमसोचतेही रहे सब इस सवाल पर<!--[if !supportLineBreakNewLine]--><!--[endif]--> शायद इनर

3

मिलेगी मंजिल मुझे

6 अगस्त 2016
0
0
0

मखमूर देहलवी ने खूबकहा है.....एक न एक दिन अपनीमंजिल पर पहुँच लेंगे जरूर जो कदम उठाते हैंआसानी से मुश्किल की तरफ कदम तो मंजिल की तरफ सभीउठा लेते हैं लेकिन मंजिल तक पहुंचने का सब में माद्दा नहीं होता.मंजिल तक पहुंचनेमें कई बाधाएं आती हैं लेकिन जो डटे रहते हैं वे जरूर पहुँचते हैं.सफलता आसानी सेनहीं मिल

---

किताब पढ़िए