मैं उस मिट्टी में पला हूं
जिस मिट्टी को गांव कहते हैं
घनघोर बादल जब छा जाते
छोटे बच्चे उसे शाम कहते हैं
बारिश में बनाकर कागज का खिलौना
जिसे हम नदी की नाव कहते हैं!!
हम बड़े हुवे वो मिट्टी छूट गई
कागज की वो नाव सदियों पहले टूट गई।
जिसे हम शाम कहते थे
वो बादल रोज डराने लगे
बचपन के जिगरी दोस्त मेरे
आज एक मोड़ पर याद आने लगे
कैसे भूल गए वो बचपन की बातें जो हमें राजा बनाती थी
नजर ना लग जाए मेरे राजा को मा टीका लगाती थी।
वो नीम के पेड़ पर झूला लगाना
वो कच्चे आम पर नमक लगाना
वो मेरा कभी कभी रूठ जाना
मुझ पर ही कसम चढ़ाना
कभी मेले से खिलौने लाना।
ये सब बचपन मेे होता है
ये दोस्तों का मेला याद आता है।
वो नानी का घर
वो मा की ममता
वो बहन कि राखी
वो भाई सा साथी।
वो मित्रो का मेल
वो बचपन का खेल।
दादी मा का दुलार
वो बाबा का प्यार
वो चाचा की डांट
वो ताऊ की आहट।
जाने कहा खो गई
बचपन की ममता।
सरफिरा लेखक सनातनी ✍️
बचपन में सो गई