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मिट्टी को गांव कहते है

3 अगस्त 2022

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मैं उस मिट्टी में पला हूं 
जिस मिट्टी को गांव कहते हैं
घनघोर बादल जब छा जाते
छोटे बच्चे उसे शाम कहते हैं
बारिश में बनाकर कागज का खिलौना
जिसे हम नदी की नाव कहते हैं!!

हम बड़े हुवे वो मिट्टी छूट गई
कागज की वो नाव सदियों पहले टूट गई। 

जिसे हम शाम कहते थे
वो बादल रोज डराने लगे
बचपन के जिगरी दोस्त मेरे
आज एक मोड़ पर याद आने लगे

कैसे भूल गए वो बचपन की बातें जो हमें राजा बनाती थी
नजर ना लग जाए मेरे राजा को मा टीका लगाती थी। 

वो नीम के पेड़ पर झूला लगाना
वो कच्चे आम पर नमक लगाना
वो मेरा कभी कभी रूठ जाना 
मुझ पर ही कसम चढ़ाना
कभी मेले से खिलौने लाना। 

 ये सब बचपन मेे होता है
ये दोस्तों का मेला याद आता है।

वो नानी का घर 
वो मा की ममता
वो बहन कि राखी
वो भाई सा साथी। 
वो मित्रो का मेल
वो बचपन का खेल। 
दादी मा का दुलार
वो बाबा का प्यार
वो चाचा की डांट
वो ताऊ की आहट। 

जाने कहा खो गई
बचपन की ममता। 

सरफिरा लेखक सनातनी ✍️
बचपन में सो गई

सरफिरा लेखक सनातनी की अन्य किताबें

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रचनाएँ
सरफिरा लेखक सनातनी
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नमस्कार,, यहां एक पुस्तक केवल शब्दो को दर्शाती। किन्तु हमे ये देखना है कि पुस्तक के अंदर है क्या और समझना है हर एक कविता को। सच तो ये है हमारे जीवन को आधा बदल देती हैं ये किताब। जैसे धर्म के लिए शस्त्र उठना चाहिए वैसे ही इतिहास और रिश्तों को जानने के लिए अच्छी अच्छी किताब पढ़नी चाहिए। मैने किताब मेे लिखा है जो अपनी मां को छोड़ देते हैं जो पिता से नाता तोड देते है वे कौन होते है वे कौन होते है। एक एक कविता के अंदर मां होगी पिता होगा सच मानो तो हमारे समझ आएगा मात पिता एक अनमोल खजाना है। इतिहास से जुड़ी बाते आप को पढ़ने के लिए मिलेगी। जिस को हम भूल रहे हैं चाहे वो इतिहास हो या परिवार वो हमारे लिए अपराध के लायक है। जिन महान पुरषों ने अपना बलिदान दिया जिन को जेलों मेे मार दिया गया आज हम भूल चुके हैं वो इतिहास वो बाते मेरी किताब आप सब को ये बताएगी। धन्य है वे माए जिन के बेटो ने बलिदान दिया धन्य है वे पिता जिस ने अपने दोनो कंधों को सीमा पर भेज दिया। ये सरफिरा लेखक सनातनी केवल नाम ही नहीं है ये एक सत्य की और लेे जाने वाली पुस्तक है। सरफिरा लेखक सनातनी ✍️🙏
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