जिंदगी यूं ही कम सी लगी मुझे
मां के बिना थम सी लगी मुझे।
जिंदगी में अकेला नहीं था कभी
मां बिन जिंदगी गम सी लगी मुझे।
लगी मुझे जिंदगी डूबते तिनके की तरह
मेरे सर का सहारा रूठ गया मुझ से।
कर्ज से बनाया मा ने आशियाना अपना
बंटवारे के कारण ही टूट गया मुझ से।
टूट गया मुझ से वो ही
आशियाना जो पावन था।
मा ने प्यार दिया राम बनाया
ना समझ सका मै तो रावण था।
रावण था मै जालिम था मै
था मा के आंगन का हत्यारा।
कीमत कोई चुका नहीं सकता मा की
मा से सृष्टि मां से दृष्टि मा से है उज्यारा।
सृष्टि मा से है , है पावन धाम तू
गीतों का साज बसंत का राग तू।
तू रात दिन सुबह शाम आसमान तू
तू ही काशी वृंदावन हरिद्वार नाम तू।
नाम तेरा पवित्र है गंगा के झरनों से
अब मा का बेटा होना चाहता हूं जन्मों से
मैं पापी डूब गया अपने ही कर्मो से
जीवन भर लेलु आशीर्वाद मा के चरणों से
डूब गया हूं मै उस लालच के पानी में
मैने ही घर से निकाला मा को जवानी मेे।
सुरू से अंत तक दर्द भरा है मा की कहानी में
दो पल के जीवन एक पल की रवानी मेे।
की जीवन भर मा से दूर रहा हूं
वो रोती तड़फती रही मेरी याद में।
मैं भी मा को मा ना समझ सका कभी
अब मेरे भी आने लगी मा ख्वाब में।
आने लगी ख्वाब में एक सूरत बन कर
यूं लगा कि जन्म फिर से हुआ मेरा।
आकर मुझे फिर से चूम दे जरा सा
धन्य होगा ये जन्म फिर से मेरा
मैं किस लालच में दूर हूं अब तक
क्यों मा की ममता जान ना पाया हूं।
आज समझ गया प्यार तेरा मेरी मा
मैं बच्चा बन के फिर से तेरे पास आया हूं।
आया हूं तेरे आंगन घर का तारा बन के
मा आजा सीने से लगा मुझे जी भर के।
तेरे बुढ़ापे के ये हाथ सर पे मेरे रख दे
दे फिर से आशीर्वाद मुझे झोली भर के।
भर दे झोली जो बरसो से खाली थी
ना जाने वो बात बहुत रुलाती है
बचपन में कर के दुलार जो तू पाली थी।
पाली थी तू सब भाईयो को
तुझे कोई ना पाल सके।
नौ महीने तक रखा गर्भ में तूने
हम एक महीने भी घर ना रख सके।
ना हम रख सके तुझे तेरे ही आशियाने मेे
जो तूने कोड़ी कोड़ी जोड़ बनाया था।
मैं पापी तेरा हाथ पकड़ कर तुझे
वृद्ध आश्रम छोड़ ही आया था।
छोड़ आया था नजरो से दूर तुझे
घर से मा ही शब्द गायब हो गया।
बिन मा के सोया नहीं बचपन मेे
मा की लोरी बीन ही सवेरा हो गया।
*सरफिरा लेखक सनातनी*
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