एक बार की बात है कि राजा जनक ने पंचशिख मुनि से वृद्धावस्था एवं मृत्यु से बचने का उपाय पूछा। तब मुनि पंचशिख ने राजा जनक से कहा-‘ कोई भी शरीरधारी जीव जरा और मृत्यु से नहीं बच सकता ।
यह जान लो कि काल रूपी सागर जरा व मृत्यु रूपी जलचरों से भरा हुआ है और अज्ञानी मनुष्य इसमें
बिना नाव के डूबते-उतराते रहते हैं। इन्हें कोई नहीं बचा सकता है। वैसे भी संसार में कोई किसी का नहीं है।
जिस प्रकार राह चलते हुए यात्रियों से भेंट हो जाती है उसी प्रकार स्त्री-पुरुष व भाई-बन्धुओं को भी ऐसे ही
समझना चाहिए। जिस प्रकार हवा बादलों को उड़ाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है उसी प्रकार
संसार में विचरते जीव भी काल से प्रभावित होकर मरते-जन्मते रहते हैं। जरा और मृत्यु किसी को नहीं छोड़ती
सभी को खा जाती है। इसीलिए मृत्यु से बचना असम्भव है। यह सार्वभौमिक सत्य है और कभी असत्य सिद्ध
नहीं हो सकता है।’
राजा जनक मुनि की बात सुनकर बोले-‘सच में मुनिवर आप ठीक कहते हैं! भला ताे तब है जब हम सुकर्म
करते हुए ईश्वर का सुमिरन करें जिससे मोक्षवश उनकी यानि प्रभु की शरण मिले।’-ज्ञानेश्वर