परिवर्तन
पंख लगा समय उड़ा।मैं यूं ही रहा खड़ा। दे गये अपने दगा।मैं भी था गया ठगा। सब कुछ बदला सा लगा, कौन किसी का है सगा। जीवन धारा नित बही। और यन्त्रणा भी सही।सत् भी मन्दा कर दिया। लोभ ने अन्धा कर दिया। झूठ पनपता जा रहा। नित नव रंग दिखा रहा। दुख ही दुख अ