एक बार की बात है कि शत्रु की बड़ी सेना से लड़ने के लिए सेनानायक ने थोडे से सैनिकों की टुकड़ी का मनोबल बढ़ाने हेतु एक रीति निकाली।
सेनानायक ने देव मंदिर में सेना के टुकडी को ले जाकर उनसे कहा-‘मैं एक सिक्का उछालूंगा यदि चित्त पडे तो जीत, पट्ट पड़े तो हार समझना।’
सिक्का तीन बार उछाला गया तो तीनों बार ही चित्त पड़ा।
सभी सैनिक हर्ष से नाचते हुए चिल्लाने लगे-जीत! जीत!! जीत!!!
लड़ाई लड़ी गई चार गुनी बड़ी शत्रु सेना को हराकर छोटी सैनिको की टुकड़ी जीत गई।
सेनानायक ने सैनिकों की नहीं उनके मनोबल की जीत बताते हुए भेद खोलते हुए सिक्के को दिखाते हुए कहा-‘इस सिक्के के दोनों ओर चित्त अंकित है। जितनी बार भी उछालते चित्त ही आता।'
यह जानकर सभी सैनिक समझ गये कि सच है-आत्मबल से बड़ी कोई शक्ति नहीं, यह असम्भव को भी सम्भव कर दिखाती है।