एक दर्द भरी दास्तां। गरीबी इंसान को ना जाने क्या-क्या करने पर विवश कर देती है? बेसहाराओं के लिए समाज का कुत्सित रूप
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यथार्थ को शब्दों के माध्यम से पृष्ठों पर उकरने के लिए ना जाने इस बार मैंने कितनी ही कोशिशें की, पर शायद मंतव्य मेरा पूर्ण नहीं हो पाया।मैं एक साहित्यकार हूं कहना गलत होगा, पर एक मनमौजी हूॅं मेरा यही प
ग्राहक की आशा में खड़ी उस लड़की को जब कुछ और देर इंतजार करने के बाद भी कोई ग्राहक नहीं मिला तो वह दूर खड़ी मेरी गाड़ी को देख इसी तरफ बढ़ने लगी।मेरी गाड़ी के दाहिने तरफ आकर उसने खिड़की को खटखटाया। उसे
ग्राहक की आशा में खड़ी उस लड़की को जब कुछ और देर इंतजार करने के बाद भी कोई ग्राहक नहीं मिला तो वह दूर खड़ी मेरी गाड़ी को देख इसी तरफ बढ़ने लगी।मेरी गाड़ी के दाहिने तरफ आकर उसने खिड़की को खटखटाया।उस सम
वो चेहरा और उसके पीछे की कहानी जाने के लिए मेरा मन उकताने लगा। ना जाने क्यों उसके चेहरे के पीछे मुझे एक अनजाना सा दर्द महसूस होने लगा था।तय किया मुझे उससे मिलना ही पड़ेगा। फिर मेरे कागज़, कलम भी तो कि
अपुन भी पढ़ लिखकर कुछ बनना चाहती थी। पर यह जो है ना पापी पेट(थोड़ा रुक कर) अपने पेट पर हाथ रखते हुए बोली ना जाने क्या-क्या काम करवाता है।पेट के लिए जरूरी तो नहीं हर कोई यही काम करें? करने को और भी तो
वहां पार्क में बेंच पर बैठी बैठी मैं बहुत देर तक सोचती रही। जीवन, कैसे मोड़ पर उसे ले आया है।कितनी ही तरह की बातों को सोचते हुए मेरे मन में विचारों का आवेग होने से बहुत देर तक उसे नींद नहीं आई। पार्क
उसी हालत में वह मुझे छोड़ कर पौ फटने से पहले ही भाग गया। मॉर्निंग वॉक के लिए आने वाली आंखें मुझे घूर घूर कर देखने लगीं।शायद किसी को मुझ पर तरस आ गया होगा तो वह भला मानुष कुछ लोग की मदद से मुझे उठा, ऑट
मृगनयनी! बहुत अच्छा नाम है। देखो मृगनयनी सभी को सुधरने की कोशिश करनी चाहिए। हमें यह जीवन भगवान की तरफ से एक बार ही मिला है।तुम कल सुबह मुझे यहीं पर मतलब जहां शाम को खड़ी होती हो उसी जगह 9-10 बजे मिलना
कई बार दिल ना जाने बिना कारण ही क्यों बहुत उतावला हो जाता है। मेरा भी शायद दिल कुछ ज्यादा ही तेजी से धड़कने लगा था।किसी के लिए एक नई शुरुआत मेरे द्वारा संभव हो सके तो कहना ही क्या? किसी के जीवन म
मन बेचैन था। ऐसा क्या हुआ, जो वह मुझसे आज मिलने नहीं आई कुछ ऐसा वैसा तो...आशंका में मन न जाने कितना कुछ सोचने लगा। सोचते हुए ना जाने मैं कब नींद के आगोश में चला गया, पता ही नहीं चला।सुबह 5:00 बजे के अ
मैं सब कुछ देख पा रही थी। मेरे शरीर में उसके द्वारा पिलाएं जाने वाले शरबत के कारण कुछ ऐसा नशा हो गया था कि मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा था।वह मेरे पास आ बैठा। उसने मेरे बंधे बालों को खोल दिए और बोला
बिस्तर पर बिछाने के लिए लालायित रहने वाला समाज कभी भी हमें अपनाने को तैयार नहीं होता।मृगनयनी की ये बातें मेरे जेहन में बार बार घूम रही थी। अच्छी खासी ही तो थी उसकी जिंदगी। पर मेरे कारण उसकी इच्छा के व