बुढ़िया बैठी सोच रही
देखे निसचल आकाश
चित प्रसन्न धन्य तन मन
फिर क्यों सोचे दिन रात .?
उसकी कुटी सबसे बढ़िया
जिसमे वो भी जी लेती है
गर वो सोता नीलगगन तो
वो भी तो सो ही लेती है /
वो हँसते हँसते जीता तो
रो रो के भी वो जीती है ,
खाए पू मलीदा वो तो ,
सुखी रोटी उसकी क्या कम है .?
बिना दबा के सो नहीं पiता ,
जीता हरदम संशय मन से ,
शांत दिखावा मन संसय हो
यह जीवन भी क्या जीवन है .?
वो सोता गर धन के बल पर
मेरी नीद क्या उससे कम है .?
फिर सोचूं क्यों मुझको कुछ नहीं
मेरे पास तो अकुत स्वधन है i
मैं हूँ सबसे धनी विश्व का
ईश्वर ने दी
वो क्या .....
कम है ......?.