आतंकवादियों से लड़ते समय शहीद हुए सैनिक के शव का जैसे ही गाँव के पास पहुँचने का सन्देश मिला, तो पूरे परिवार के सब्र का बाँध टूट गया। उसकी माँ और पत्नी कर क्रंदन हृदय विदारक था।
जब से उसकी शहादत का पता चला था, उसी समय से उसकी पत्नी उसकी तस्वीर को लेकर केवल रो ही रही थी। अपनी उस तस्वीर पर शहीद सैनिक ने अपने ही हाथ से लिखा था - 'मैं' ।
उस विलाप में एक दूसरी महिला बिलखती हुई बोली, "इतनी सी उम्र में देश पर कुरबान हो गया, अभी तो ज़िन्दगी देखी ही कितनी थी..."
एक अन्य महिला ने उसकी पत्नी को देखते हुए कहा, "कोई बेटा भी नहीं है, किस आसरे से जियेगी ये?"
उसी समय उस शहीद सैनिक की बेटी वहां आई, और अपनी माँ का चेहरा अपने दोनों में हाथों में ले लिया। आंसूओं से भरी थकी हुई आँखों से माँ ने अपनी बेटी को देखा तो आँखें नहीं हटा पायी।
उसकी बेटी एक सैनिक की वेशभूषा में थी, ठीक उसी तरह जिस तरह शहीद सैनिक रहता था। उसकी बेटी ने रूंधे गले से कहा, "माँ, पापा देश के लिए शहीद हुए हैं... मुझे गर्व है उन पर... लेकिन जिन लोगों ने उनको... पापा जैसी बनकर मैं उनसे बदला लूंगी..."
कहते-कहते बेटी की आँखें लाल होने लगीं थी। उसने माँ के हाथ में रखी तस्वीर को एक सैनिक की तरह जोश के साथ सैल्यूट किया, वहीँ पास रखी सिन्दूर की डिबिया उठाई, उसमें से सिन्दूर निकाल कर अपनी अंगुली पर लिया, और तस्वीर में लिखे ‘मैं' के आगे लिख दिया - ‘हूँ’।
- डॉ. चंद्रेश कुमार छ्तलानी