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वैध बूचड़खाना (लघुकथा)

25 अप्रैल 2018

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सड़क पर एक लड़के को रोटी हाथ में लेकर आते देख अलग-अलग तरफ खड़ीं वे दोनों उसकी तरफ भागीं। दोनों ही समझ रही थीं कि भोजन उनके लिए आया है। कम उम्र का वह लड़का उन्हें भागते हुए आते देख घबरा गया और रोटी उन दोनों में से गाय की तरफ फैंक कर लौट गया। दूसरी तरफ से भागती आ रही भैंस तीव्र स्वर में रंभाई, “अकेले मत खाना इसमें मेरा भी हिस्सा है।”


गाय ने उत्तर दिया, “यह तेरे लिए नहीं है... सवेरे की पहली रोटी मुझे ही मिलती है।”


“लेकिन क्यूँ?” भैंस ने उसके पास पहुँच कर प्रश्न दागा।


“क्योंकि यह बात धर्म कहता है... मुझे ये लोग माँ की तरह मानते हैं।” गाय जुगाली करते हुए रंभाई।


“अच्छा! लेकिन माँ की तरह दूध तो मेरा भी पीते हैं, फिर तुम्हें अकेले ही को...” भैंस आश्चर्यचकित थी।


गाय ने बात काटते हुए दार्शनिक स्वर में प्रत्युत्तर दिया, “मेरा दूध न केवल बेहतर है, बल्कि और भी कई कारण हैं। यह बातें पुराने ग्रन्थों में लिखी हैं।”


“चलो छोडो इस प्रवचन को, कहीं और चलते हैं मुझे भूख लगी है...” भूख के कारण भैंस को गाय की बातें उसके सामने बजती हुई बीन के अलावा कुछ और प्रतीत नहीं हो रहीं थीं।


“हाँ! भूखे भजन न होय गोपाला पेट तो मेरा भी नहीं भरा। ये लोग भी सड़कों पर घूमती कितनी गायों को भरपेट खिलाएंगे?” गाय ने भी सहमती भरी।


और वे दोनों वहां से साथ-साथ चलती हुईं गली के बाहर रखे कचरे के एक बड़े से डिब्बे के पास पहुंची, सफाई के अभाव में कुछ कचरा उस डिब्बे से बाहर भी गिरा हुआ था|


दोनों एक-दूसरे से कुछ कहे बिना वहां गिरी हुईं प्लास्टिक की थैलियों में मुंह मारने लगीं।

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मृत्युंजय (लघुकथा)

13 जनवरी 2018
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आतंकवादियों से लड़ते समय शहीद हुए सैनिक के शव का जैसे ही गाँव के पास पहुँचने का सन्देश मिला, तो पूरे परिवार के सब्र का बाँध टूट गया। उसकी माँ और पत्नी कर क्रंदन हृदय विदारक था।जब से उसकी शहादत का पता चला था, उसी समय से उसकी पत्नी उसकी तस

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बुनियादी कमाई (लघुकथा)

25 अप्रैल 2018
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जवानीमें बिछड़े दो दोस्त बुढ़ापे में एक खेल के मैदान में मिले। गले मिलते हुए सीढ़ियों पर फिसल गये। वहीँबैठे-बैठे एक ने पूछा, "तूने कितना धन कमाया है?""ज्यादानहीं बस गुजारा हो जाता है।""इसकामतलब जिंदगी ईमानदारी में गुजार दी। कमाने के लिये कहीं न कहीं बेईमानी कीबुनियाद रखनी भी ज़रूरी होती है" पहला हँसते ह

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मैं पानी हूँ (लघुकथा)

25 अप्रैल 2018
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"क्या... समझ रखा है... मुझे? मर्द हूँ... इसलिए नीट पीता हूँ... मरद हूँ... मुरद...आ"ऐसे ही बड़बड़ाते हुए वह सो गया. रोज़ की तरह ही घरवालों के समझाने के बावजूद भी वह बिना पानी मिलाये बहुत शराब पी गया था.कुछ देर तक यूं ही पड़ा रहने के बाद वह उठा. नशे के बावजूद वह स्वयं को बह

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शह की संतान (लघुकथा)

25 अप्रैल 2018
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तेज़ चाल से चलते हुए काउंसलर और डॉक्टर दोनों ही लगभग एक साथ बाल सुधारगृह के कमरे में पहुंचे। वहां एक कोने में अकेला खड़ा वह लड़का दीवार थामे कांप रहा था। डॉक्टर ने उस लड़के के पास जाकर उसकी नब्ज़ जाँची, फिर ठीक है की मुद्रा में सिर हिलाकर काउंसलर से कहा, "शायद बहुत ज़्यादा

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वैध बूचड़खाना (लघुकथा)

25 अप्रैल 2018
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एक गिलास पानी (लघुकथा)

25 अप्रैल 2018
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उस सरकारी कार्यालय में लंबी लाइन लगी हुई थी। खिड़की पर जो क्लर्क बैठा हुआ था, वह तल्ख़ मिजाज़ का था और सभी से तेज़ स्वर में बात कर रहा था। उस समय भी एक महिला को डांटते हुए वह कह रहा था, "आपको ज़रा भी पता नहीं चलता, यह फॉर्म भर कर लायीं हैं, कुछ भी सही नहीं। सरकार ने फॉर्म फ्री कर रखा है तो कुछ भी भर दो,

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सब्ज़ी मेकर (लघुकथा)

25 अप्रैल 2018
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