मेरे हाथों में मास्क के कुछ पैकेट बचे थे, मैंने उन बच्चों को दिया; फिर बगल में खड़ी कुछ बुजुर्ग महिलाओं को भी 'मास्क' दे दिया, उनमें एक बुजुर्ग महिला ने कहा- "बेटा 'मास्क' के बदले 'कंबल' दे देते, तो ठंडी में राहत मिलती।" मैं उन्हें इतना ही कह सका- "दादी, चादर जितनी बड़ी है, मैं उतना ही पैर फैला सकता हूँ न !"....... लेकिन आपके लिए कल मैं कंबल लेते आऊँगा ! यह बात जैसे मैंने कही, अन्य महिलाएँ मुझे देखने लगी और उनकी आँखें मानो यह कह रही है- 'हमें भी चाहिए !'
मैं दादी की दर्दों को समझ सकता हूँ, लेकिन मेरी भी एक लिमिटेशन है। मैं उनके चेहरों को पढ़ते-पढ़ते यह भूल ही गया कि मैं किसी लड़की के पीछे हूँ, फिर मैंने उस लड़की को ढूंढ़ना शुरू किया। वह बहुत दूर नहीं निकली थी, बल्कि विधायक जी के घर के बगल की पगडंडी पर चली जा रही थी ! मुझे लगा वह विधायक जी के रिश्तेदार होंगी या फिर स्लम एरिया में ही रहती होंगी, परन्तु इतनी मॉडर्न लड़की और ऐसी एरिया में ?
हाँ, पर मेरा यह सोचना गलत था, क्योंकि वह वहाँ रुकी नहीं, आगे बढ़ती चली जा रही थी। अभी तक मैं उसके पीछे चल अपना कीमती एक घंटा गँवा चुका था, वहीं मुझे बगल के गाँव जाना था 'मास्क' वितरित करने। वह लड़की फिर आगे बढ़ी, मैं भी साथ हो लिया। वह चलती चली जा रही थी, बिना रुके-थके अनवरत चली जा रही थी, किन्तु मुझे थकाए जा रही थी ! काफी घंटे हो गए थे, मास्क लगाए हुए; मन खिन्न-सा हो गया था।
...किन्तु मैंने भी सोच लिया था कि इस मॉडर्न लड़की का घर देखकर रहूँगा अवश्य ही ! वह अब ऐसी एरिया में रुकी, जहाँ लोग पानी के लिए झगड़ रहे हैं, उन्हें कोरोना की नहीं पानी की चिंता हो रही थी; गर्मी का मौसम अपने कदम बढ़ाये जा रहे थे, वैसे इस भरी गर्मी में प्यास का लगना आम बात है, जहाँ दूकानदार 15 रुपये की पानी के बोतल को 20 रुपये में बेचते हैं, तो वहीं विक्रेता लोग चापाकल का पानी को बोतल में डालकर खुद से सील करके कमाई करते है ! जब उनसे बहस किया जाय तो वे उस मुद्दे को गौण कर कहते हैं कि 'ठंडा' करने का चार्ज कौन देगा ? तब प्यास बुझाने की जद्दोजहद रहती है, फिर उन सबों से बहस करना आफत मोल लेना भी है ! भूमिगत जल के सौ फीट नीचे चले जाने कारण गाँव में चापाकल से पानी आना जहाँ मुश्किल है, वहीं शहरी क्षेत्रों में सप्लाई वाटर भी नियमित नहीं है । प्रशासन को सार्वजनिक क्षेत्रों के लिए प्रत्येक मुहल्ले या वार्ड में कम से कम 2 सरकारी चापाकल अवश्य गड़वाने चाहिए, ताकि प्यासों के प्यास शांत हो !
मैं लड़की के पीछे-पीछे बढ़ रहा था, वह अब एक जगह रुकी, जहाँ पर दो ऑटोवाले लड़ रहे थे, लड़ने का कारण मालूम करने पर पता चला कि रोड पर दोनों ऑटोवाल आगे-पीछेे जा रहे थे कि अचानक दूसरे ऑटोवाले पहले के पास से क्रॉस किए और ऑटोवाले ने मुँह में बने थूक को ऑटो से बाहर मुँह निकालकर फेंक दिए, पर इस थूक के छींटे पहले ऑटोवाले के ऑटो में पड़ गया, चूँकि थूक सामान्य न होकर पानमसाला टाइप थी, तो पहले ऑटोवाले ने अपनी स्पीड को बढ़ाकर दूसरे ऑटो को रोका और फिर 2-4 थप्पड़ दूसरे ऑटोवाले को रसीद कर दिए, जिस कारण बात और बढ़ने लगी। कुछ देर में झगड़े भीड़ की शक्ल अख्तियार कर ली। कुछ लोगों ने सामने आकर दोनों के झगड़े को शांत किया,पर भीड़ में मैंने नोटिस किया अधिकांश लोगों ने 'मास्क' नहीं लगा रखा था, कुछ लोगों ने मास्क पहन जरूर रखे थे; परन्तु उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि वह कोरोना के डर से नहीं, अपितु मुँह में आए पिम्पल्स को छुपाने के लिए मास्क लगा रखे हैं, क्योंकि अधिकतर के नाक मास्क से कवर नहीं थे। मैं उस ओर से दिमाग हटाकर पुनः लड़की पर फोकस हुआ...
मैं उस ओर से दिमाग हटाकर पुनः लड़की पर फोकस हुआ। वह लड़की भीड़ से निकलते हुए गाँधी पथ की ओर मुड़ी ! पथ के बगल में गाँव... जहाँ पर काफी महिलाएं एक-दूसरे-तीसरे से बातचीत कर रही थी, पर किसी ने 'मास्क' नहीं लगाए थे, उस लड़की ने उस ओर देखा। मुझे लगा 'सोशल वर्कर' होगी, इसलिए इस एरिया में आ रुकी है, पर वह किसी से भी बात नहीं कर रही थी, बस आगे बढ़े जा रही थी। हालात को देखते हुए मैं भी बढ़ा चला जा रहा था... अब वो ऐसी जगह से जा रही थी, जहाँ के सड़क का सिचुएशन 'जर्जर' था, वह कुछ देर के लिए वहाँ रुकी और फिर आगे बढ़ी, मैं भी बढ़ा उनकी पदचापों के मौन-सहारे।
अब वह लड़की एक अस्पताल के पास जा रुकी, मैं उसके पीछे ही था। वह अस्पताल में कुछ देख रही थी, मैं भी देख रहा था कि एक औरत अपने पति के लिए ऑक्सीजन की मांग कर रही थी, किन्तु हॉस्पिटल में डॉक्टरों का अता-पता नहीं था ! हाँ, कुछ लोग मोबाइल निकालकर उस महिला की दर्द का विडियो जरूर बना रहे थे। वह मॉडर्न लड़की, यह सब देखते हुए भी वहाँ नहीं रुकी और आगे बढ़ गयी, किन्तु मैं उसके पीछे चलते-चलते अस्पताल के एक डॉक्टर को फ़ोन लगाकर वहाँ का जायजा बता दिया, हाँ; वह डॉक्टर मेरे मित्र है और तुरंत आकर उसने अपना फर्ज निभा भी दिए। इन सबों के बीच मेरी नजर उस लड़की पर ही टिकी हुई थी, मैं अब भी उसके पीछे लगा हुआ था; पता नहीं क्या बात थी उसमें, मैं उससे दूर नहीं जा पा रहा था ?
किन्तु अब मुझमें इसतरह से पीछा करने की शक्ति शेष नहीं रह गया, क्योंकि मैं पिछले 4 घंटे से उस लड़की का पीछा किये जा रहा था और वह भी पैदल, मेरे हाथों में पड़ी 'मास्क' की पैकेट खत्म हो गयी थी। मैं उस लड़की के पीछे चलते हुए 100 पैकेट मास्क जरूरतमंद लोगों को बाँट चुका था और यह भी देख चुका था कि कई लोग आवश्यकता के नामपर 1 से अधिक 'मास्क' मांगकर दुकान में बेच दे रहे हैं; कारण जानने पर मालूम चला कि- "वे बीमारी के बचाव से नहीं 'पेट' की भूख से मर रहे हैं..." मैं उनके हालातों के बारे में सोचते हुए उस सुंदर युवती का पीछा किये जा रहा था।
फिर वह गली की ATM में गयी, पर 'रुपया नहीं है' लिखा का बोर्ड टंगा; उसे जैसे ही दिखाई दी, वह मुड़ी और आगे बढ़ चली। मेरा धैर्य जवाब दे गया और मैंने प्रश्नोत्तर का निश्चय करके उसे टोक ही दिया-
'ऐ सुनो ?'
पर वो ना सुनी, ना ही रुकी, क्योंकि शाम के 7 की घन्टी कुछ देर पहले एक एरिया में सुनाई दे चुकी थी। उसने यह सोचा होगा कि कहीं उनके साथ कुछ घटित न हो जाय, इसलिए वो नहीं रुकी ।
फिर हिम्मत करके मैंने पुनः टोका-- 'ऐ सुनो ? आपसे ही कह रहा हूँ !'
अबकी वो रुकी, ठहरी और बोली-- 'क्या है ?'
मैं अनिश्चय की स्थिति से निकलते हुए मास्क उतारकर अपने दिल की जुबान को स्वमेव चला दी-
'मैं पिछले 4 घंटे से आपका पीछा कर रहा हूँ, पर आप ऐसी-ऐसी स्लम जगहों पर से निकल रहे हैं कि मेरा मन उबकी करने का कर रहा है।'
मैंने यह बात एक ही सुर-ताल में कह डाला।
इसपर उसने मास्क उतारी, मुझे देखी और हँस पड़ी। मुझे अटपटा लगा, परन्तु उसकी हँसी और चेहरे की कोमलता मेरी दिल में समा गई।
मैंने पूछा- 'क्यों हँस रही हैं आप ?'
उनके जवाब ने मेरे 4 घंटे की मेहनत को चार-चाँद लगा दिया ।
उसने कहा- 'मैं तुम्हें जान-बूझकर ऐसी एरिया और ऐसी जगह से लाई हूँ ?'
उस परी-सी लड़की की जवाब ने मेरे जवां दिल को और भी बच्चा बना दी।
मैंने कहा- 'आपने मुझे नहीं लाया, अपितु मैं तो खुद-ब-खुद आपके पीछे आया हूँ !' अगर लाया, तो 'कैसे ?'
'कैसे मत पूछो ?
मैं तो बस तुम्हें हालात दिखा रही थी- 'उदय भारत की ?'
मैंने कहा- 'ऐसा भारत ! जहाँ इतनी गरीबी, भूखमरी, पानी का संकट है, अस्पताल है; पर सेवा नहीं... पर आप हैं कौन और मुझे ये सब क्यों दिखा रही हैं ?'
उसने कहा- 'मैं तुम्हारी माँ हूँ !मैं पागल-सा हो गया।
मैंने कहा- 'मेरी माँ तो घर पर है और आप अभी लगती हैं मात्र 25 की और मेरा भी इतना ही उम्र है, फिर बताएँगी आप किस तरह से मेरी माँ हैं ?'उसके जवाब ने मुझे और भी शॉक्ड कर दिया- 'मैं पूरे भारत की माँ हूँ।'
प्रत्युत्तर में मैंने कहा- 'अब आप मुझे इर्रिटेड मत कीजिए !'
वो बोली-- 'पगले ! मैं भारतमाँ हूँ।'
मुझे लगा कि आज किसी लड़की को 'पागल' बनने की मन हो आई है ?
ओह्ह ! मैंने क्यों पीछा ही किया ?
मैं भी क्वेश्चन पर क्वेश्चन दागे जा रहा था- 'भारत माँ, इतनी मॉडर्न और मास्क के साथ।'उस कथित 'भारत माता' से उत्तर सुनने से पहले ही 'अलार्म' की घंटी बजी और मैं जग गया । आँख खुली तो पाया कि आज 'स्वतंत्रता दिवस' अपने 75 वें वर्ष में प्रवेश कर गया है और मैं आँख मलते ही कह उठा-- 'भारत माता की जय। कोरोना हो पराजय।'