shabd-logo

निजीकरण

17 दिसम्बर 2024

1 बार देखा गया 1

आदेशों के पालन में अवरोध नहीं बन सकता हूँ

मैं सेना का नायक हूँ विद्रोह नहीं कर सकता हूँ।

हे जनमानस हे जगपालक, हे सत्ता के दृढ़ निर्वाचक

आंखे खोलो जागो देखो क्या परिवेश नजर आता है

भूख गरीबी और कपट में लिपटा देश नजर आता है

तुम जैसी हुंकार गर्जना घोर नहीं कर सकता हूँ

मैं सेना का नायक हूँ विद्रोह नहीं कर सकता हूँ।

बेच रहें हैं घर के मालिक अपने घर की चौखट को

पानी के रखवाले जैसे रौंद रहे हैं पनघट को

बात शांति की करते हैं लेकिन लाते दहशत को

संरक्षक बन सत्ता का प्रतिरोध नहीं कर सकता हूँ

मैं सेना का नायक हूँ विद्रोह नहीं कर सकता हूँ।

सेवा करना परम धर्म है बचपन से सिखलाया है

पर ना जाने सेवा को क्यूँ अब व्यापार बनाया है

नैतिकता के प्रांगण में परचम तम का लहराया है

फिर भी दीपक बन कर सकल अजोर नहीं कर सकता हूँ

मैं सेना का नायक हूँ विद्रोह नहीं कर सकता हूँ।

मजदूरों का काम छिन रहा, नहीं फसल का दाम मिल रहा
कृषक सोच में व्याकुल बैठे नहीं कहीं आराम मिल रहा

नौकरियों पर आफत आई ये कैसा अभियान चल रहा

ऐसे अभियानों पर गहरी चोट नहीं कर सकता हूँ

मैं सेना का नायक हूँ विद्रोह नहीं कर सकता हूँ।

निजीकरन में निजता का कोई सम्मान नहीं होगा

मानवता की प्रभुता का कोई प्रतिमान नहीं होगा

एक धर्म सौदे बाजी का दूजा काम नहीं होगा

समझो मेरी बातों को कुछ और नहीं कह सकता हूँ

मैं सेना का नायक हूँ विद्रोह नहीं कर सकता हूँ।

1

तत त्वम् असि

21 जनवरी 2017
2
4
2

तत त्वं असि रोज की तरह सब काम काज समेट ऑफिस से घर पहुचा कि चलो भाई इस व्यस्त भागदौड़ की जिंदगी का एक और दिन गुजर गया,अब श्रीमती जी के साथ एक कप चाय हो जाये तो जिंदगी और श्रीमती जी दोनों पर एहसान हो जाये।खैर ख्यालों से बाहर भी नही आ पाया था कि श्रीमती जी का मधुर स्वर अचानक

2

राष्ट्र भक्त - बाल कविता

6 फरवरी 2017
0
1
0

जब मै छोटा सा था,तो मेरी यह अभिलाषा थी,हँसता हुआ देखूँ,भारत को मन मे छोटी सी एक आशा थी।मन की पावन आँखों ने,कुछ देखे ख्वाब सुनहरे थे;उन सारे ख्वाबों की अपनीपहचानी सी भाषा थी।अपने कोमल ख्वाबों मे,मै भारत को एक

3

साक्षात्कार

1 मार्च 2017
0
1
1

रात्रि का प्रथम पहर टिमटिमाते प्रकाश पुंजों से आलोकित अंबर, मानो भागीरथी की लहरों पे, असंख्य दीपों का समूह, पवन वेग से संघर्ष कर रहा हो। दिन भर की थकान गहन निद्रा मे परिणत हो स्वप्न लोक की सैर करा रही थी, और नव कल्पित आम्र-फूलों की सुगंध लिए हवा धीमे धीमे गा रही थी । कुछ

4

पीड़ा(अपराजिता)

29 मार्च 2018
0
2
2

टूट चुका है कोना कोना खंड हृदय के जोड़ सकूं ना अरसा बीता सुख को छोड़े मुस्कानों ने नाते तोड़े सुबह बुझी सी बोझिल बेमन निशा विषैली चीखे उर नम पर तुम क्या ठुकराओगी नही पीड़ा क्या तुम जाओगी नही!! युग युग से हो साक्षी मन की तुम हृदयों की पाती त

5

अपराजिता

30 मार्च 2018
0
4
5

उस रोज तुम्हे टोका नही तुम जा रहे थे मैंने तुम्हें रोका नही सुबह तुम्हारे सुरों की लालच में अक्सर देर से आती थी खिड़कियों से झांकती धूप मुस्कुराती थी । मै नींद का दामन थामे सपनो की पगडंडियों पर, जब भी चलने की कोशिश करता तुम्हारा तीव्र स्वर उलाहना देता.. मैं जागी हूँ

6

गुरु दक्षिणा

27 जुलाई 2018
1
0
2

जीवन है एक कठिन सफ़रतुम पथ की शीतल छाया होअज्ञान के अंधकार मेज्ञान की उज्जवल काया हो,तुम कृपादृष्टि फेरो जिसपेवह अर्जुन सा बन जाता है ।जो पूर्ण समर्पित हो तुममेवह एकलव्य कहलाता है।जब ज्ञान बीज के हृदय ज्योति सेकोई पुष्प चमन मे खिलता है,मत पूछो उस उपवन कोतब कितना सुख मिलता है ।हर सुमन खिल उठे जीवन काय

7

गई तू कहाँ छोड़ के

26 अगस्त 2018
0
1
0

सावन सूना पनघट सूनासूना घर का अंगना । बहना गई तू कहाँ छोड़ के।। दिन चुभते हैं काटों जैसेआग लगाए रैना। बहना गई तू कहाँ छोड़ के।। बचपन के सब खेल खिलौने यादों की फुलवारीखुशियों की छोटी साइकिलपर करती थी तू सवारी । विरह,पीर के पलछिन देकरहमें रुलाए बिधना । बहना गई तू कहाँ छोड़

8

बात छोटी सी

18 अप्रैल 2021
1
1
1

रात छोटी सीप्रियतम के संगबात छोटी सी।बड़ी हो गईरिवाजों की दीवारखड़ी हो गई।बात छोटी सीकलह की वजहजात छोटी सी।हरी हो गईउन्माद की फसलघात होती सी।कड़ी हो गईबदलाव की नईमात छोटी सी।बरी हो गईरोक तिमिर- रथप्रात छोटी सी।

9

कोरी गप्प बन्डलबाजी

18 जून 2023
0
0
0

गाँव गिराव में जून की दोपहरी में आम के पेड़ के नीचे संकठा, दामोदर और बिरजू बैठे गप्प हांक रहे हैं। गजोधर भईया का आगमन होता है-ए संकठा कईसा है मतलब एकदम दुपहरी में गर्मी का पूरा आनंद लई रहे हो और

10

प्रेम दिवस

14 फरवरी 2024
1
2
1

"प्रेम दिवस" काव्य संग्रह "प्रतीक्षा" से इज़हार-ए-मोहब्बत का होनाउस दिन शायद मुमकिन था,वैलेंटाइन डे अर्थातप्रेम दिवस का दिन था,कई वर्षों की मेहनत का फल। एक कन्या मित्र हमारी थी,जैसे सावन को ब

11

तुम लिखते रहना

24 फरवरी 2024
0
0
0

तुम लिखते रहनाउनके मुताबिकउनके लिएजिन्हें पसंद हैतुम्हें पढ़ना तुम्हें सुनना।तुम लिखना जरूरअपने लिए भीऔर अपने अंतर्मन सेउपजी कविताओं का एक बाग लगानाजिसमें बैठ तुम मिल सकोपढ़ सको खुद कोगा सको अ

12

शिक्षक

5 सितम्बर 2024
0
0
0

जो राह दिखाने वाला हैवह शिक्षक है तुम जानो तो,जो भाव जगाने वाला हैवह शिक्षक है पहचानो तो।युगों-युगों टिक सकता हैवह पर्वत भी हो सकता है,ग़म की नदियाँ पी सकता हैवह सागर भी हो सकता है।सबसे निचले हिस्से मे

13

मां जगदम्बे

3 अक्टूबर 2024
0
0
0

हे माँ शक्ति माँ जगदम्बेपार करो भवसागर अम्बे।मुझमें असुर महिष से लाखोंदुष्ट दलन कर मुझे प्रतापो।ज्योतिर्मय हो निर्मल पावनअंतर्मन में आके बिराजो।शक्ति मुझे दो शक्ति बनूँ मैंमात तुम्हारी भक्ति करूँ मैंद

14

निजीकरण

17 दिसम्बर 2024
0
0
0

आदेशों के पालन में अवरोध नहीं बन सकता हूँ मैं सेना का नायक हूँ विद्रोह नहीं कर सकता हूँ। हे जनमानस हे जगपालक, हे सत्ता के दृढ़ निर्वाचक आंखे खोलो जागो देखो क्या परिवेश नजर आता है भूख गरीबी और कपट म

---

किताब पढ़िए