एकाकीपन
वो शहर के नुक्कड़ का बड़ा मकान
और उसका छोटा सा कमरा,
स्मृतियों के पार कहीं भूला कहीं बिसरा।
असफलताओं से निराश,
मुझे देख उदास,
मुझसे लिपट गया और बोला,
चल मेरी सूनी पड़ी दीवारों को फिर सजाते हैं,
और कुछ नए स्लोगन आदि यहाँ चिपकाते हैं।
भूल गया कैसे अपने हर इम्तिहान से पहले