ज़िन्दगी में कई लोग सिर्फ इसलिए दोस्त नहीं रहे क्योंकि जब दोस्ती निभाने की एकाध मौके की दरकार आई तो उन्होंने किनारा कर लिया। हां, दुख हुआ। लेकिन सैकड़ों अजनबी अनजान लोग जो बिना किसी मतलब के पहाड़ की तरह साथ आकर खड़े हो गए। ये उस दुःख से कहीं ज्यादा सकून देने वाला रहा।
मैं उनको किनारे पर छोड़, बिना आवाज़ दिये, चुपचाप अपनी ज़िन्दगी संवारने में लग गया।
पीछे मुड़कर देखता हूं तो उनको अब भी जीवन के उसी छोर पर खड़े पाता हूं। उनके पास आगे बढ़ने के हज़ार मौके हैं पर वह किनारे के लोग हैं। वह जीवन के मध्य में उतारना नहीं जानते। बात कम होती है, नहीं के बराबर। पर वही व्यस्तताओं का रोना, समय की दुहाई, काम का बोझ। क्या ये सब इतनी बड़ी चीजें हैं जहां पर किसी का होना नहीं होना मायने नहीं रखता है?
रिश्तों में निष्पक्षता महज़ एक ढोंग है। हमें रिश्तों में निष्पक्ष होना नहीं बल्कि अपना अपना पक्ष चुनना होता है। खराब समय में साथ खड़े होना होता है चाहे आपका अपना गलत ही क्यों ना हो। एक खराब समय से निकलने के बाद इंसान इतना तो मजबूत हो ही जाता है कि अगले खराब समय का अकेले मुक़ाबला कर सके।
लेकिन ये नहीं समझ में आता कि वे लोग कौन थे जो पीछे छूट गए?
खराब तो नहीं कहेंगे क्योंकि वे लोग बुरे नहीं थे। हां, कभी अच्छा दोस्त नहीं बन पाए।
ऐसे लोग हर किसी की जिन्दगी में होते हैं, पर बात वही है जो सभी के लिए अच्छे होते हैं वह किसी के नहीं होते। अगर आपकी जिन्दगी में भी ऐसे लोग हों तो उन्हें सराहिये, उनको दुआएं दीजिये पर किनारों पर खड़े उन लोगों को कभी भी जीवन के केन्द्र में मत रखिये। कभी भी उन्हें अपने जीवन की केंद्रिय इकाई मत बनाइये।
ऐसे लोग कब किनारा कर लें कुछ पता नहीं होता।
© ईकराम 'साहिल'