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जीवन और अकेलापन

9 सितम्बर 2021

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खामोशियों में तुम्हारी एक शोर है। मैं तुम्हें सुनता हूं और सुनकर खामोश हो जाता हूं। कभी- कभी समझ में आता है कि इन्सान सबसे ज्यादा तब चीखता है जब वह खुदमें खुदको समेट बैठ जाता अथवा शान्त होता है। पर अफसोस कि आसपास उन खामोशियों को सुनने वाला कोई नहीं होता।

हमारे आसपास की चीजें तेजी से मर और खत्म हो रही हैं। हवाओं में एक चीख है, जो किसी को सुनाई नहीं देती। उदासी कह रही है कि कोई छूए और हमारा मौन टूटने का नाम ही नहीं ले रहा है।

हमें समझना होगा कि यह कोई दर्शन नहीं जीवन है। हमें अपने आसपास, पास पड़ोस, अपनी और दूसरों की छोटी-बड़ी जरूरतों को जाहिर करना और ख्याल रखना चाहिए। हमें समझना आना चाहिए कि हम इंसानों को सिर्फ दर्शन नहीं जीवन की आश्यकता है। अपनेपन, प्रेम और स्पर्श की जरूरत है।

...और इतने भर से ही इन्सान जी उठता है। पर इतना भी हर किसी के हिस्से में नहीं।

इसी छोटी सी हंसती खिलखिलाती दुनिया में एक बहुत बड़ी दुनिया उदास है पर उन उदासियों तक पहुंचने वाला कोई नहीं है। इसी हंसती खिलखिलाती दुनिया में एक बहुत बड़ी दुनिया बेचैन है पर उनकी बेचैनियों तक हमारे हाथ नहीं पहुंच पा रहे हैं।

कुछ छूट रहा है, कुछ अलग हो रहा है, कुछ था जो अब नहीं है। पर इसका मतलब यह नहीं कि हर कोई बेचैनियों का दामन थाम ले और उदासियों का हाथ पकड़ अपने ही घर के किसी अंधेरे कोने को तलाश बैठ जाए। तुम्हें पता है? जब आसपास कुछ भी नहीं होता तो बहुत कुछ होता है। एक खिड़की, एक झरोखा, एक दरवाजा।

मुझे चाहे कितना भी दुख क्यों हो मैं हमेशा खिड़की, दरवाजे या फिर खुली हुई जगह पर बैठता हूं। तुम्हें पता है? हवाओं में एक स्पर्श होता है, अपनी पसंद की जगहों में भी एक सम्मोहन और 'अपनापन' होता है। और यह छोटा सा प्रयास मेरे चेहरे पर मुस्कराहट लाता है।

देखा जाए तो मुस्कराहट इस दुनिया की सबसे बड़ी इनायत है। ब्रह्माण्ड की सारी खूबसूरत चीजें आपको हंसते हुए मिलेंगी। जैसे कि फूल, जैसे कि तितलियां, जैसे कि परिंदे, जैसे कि मछलियां। जैसे कि यह धरती, आकाश, पहाड़ और नदियां।

सच कहूं तो पूरी जिन्दगी पहाड़ की तरह है। अगला मोड़ आपको किधर और कहां लेकर जाएगा किसी को भी नहीं पता। बावजूद इसके ये पहाड़ जिन्दगी की ही तरह खूबसूरत हैं, इनमें बड़े से बड़े दुख को सह लेने की असीम शक्ति और सकून है।

अच्छा होगा कि अगर खिड़कियों, रौशनदानों और दरवाजों से सांस लेने जितनी पर्याप्त हवा नहीं आ पा रही हो तो घर में घुटने की बजाय पहाड़ चुनिए। यह पहाड़ हमें खुदको भूल जाने और जीने का हजारों अवसर देते हैं।

यहां संसाधन कम है, पर जिन्दगी ज्यादा है।

जिन्दगी उन भौतिक चीजों से हरगिज नहीं बनती जिन्हें हम सुख और समृद्धि का कारण समझते हैं।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।

खुश रहने के सबसे बड़े कारण फूल हैं, तुम एक छोटा सा गमला लो, उसमें मिट्टी डालो, बीज रोपो और उसके खिलने का इंतजार करो। देखना उसके खिलने तक तुम्हारी सारी उदासियां, सारी बेचैनिया खत्म हो जाएंगी।

बस थोड़े से वक़्त की जरूरत है, खुदको थोड़ा समय दो।

मन बहुत ही मासूम है, हृदय बहुत ही कोमल।

एक उम्मीद ही तो पालनी है? देखना तुम एक दिन फिर से एक नए जीवन में प्रवेश करोगे, देखना एक बार फिर से तुम हंसोगे।

© ईकराम 'साहिल'


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आंचल सोनी 'हिया'

आंचल सोनी 'हिया'

प्रिय एवं आदरणीय लेखक, शब्द पर प्रकाशित आपकी सारी रचनाएं पढ़ी है, मैंने। जाने क्यों ऐसा महसूस होता है, मानो मेरे ही विचार मेरी ही बात किसी और की स्याही से बह रहे हैं। यकीनन जिस तरह से आपने मूव ऑन करने के लिए लोगों को प्रेरित करने की कोशिश की है... बहुत सराहनीय है। खिड़की, झरोखे, दरवाज़े की बात तो सीधा बाईं ओर उतर आई। जिस तरह से ज़िंदगी के हर छोटे छोटे हिस्से को और छोटे छोटे समान से आपने जो लगाव की बात करी.... उसके लिए निः शब्द हूं। एक निजी बात बताती हूं... मुझे अपने कॉलेज बैग और टूथ ब्रस तक से इतना लगाव है, डैमेज होने के बावजूद फेकने में ऐसा महसूस होता मानो मेरी ऐसी वस्तु जिसने मेरा इतना साथ दिया, इतना काम आया... वो दूर क्यों होने पर आतुर है। एतबार करें... ये मेरी कंजूसी नहीं मेरा लगाव है। एक वक्त था जब प्रतिलिपि लेखक और पाठक मुझे मेरी लेखनी से कम और समीक्षा से ज्यादा जानते थे, लेकिन वह शुरुआती दौर था... तब मैं कर पाती थी। अब तो टाइप करते करते पहले ही अंगूठे की थकान देखी नहीं जाती, तो अब छोटी समीक्षाएं करती हूं, उन्हे आप कॉमेंट कहें तो बेहतर होगा, रिव्यू तो बहुत कम। लेकिन आज आपकी रचना ने मजबूर कर दिया पुनः पर्याप्त समीक्षा पेश करने को। रब से गुज़ारिश है, आप ता हयात यूं ही लिखते रहें। शुक्रिया अदा है।💐🙏🏻🌸

9 सितम्बर 2021

ईकराम पटेल 'साहिल'

ईकराम पटेल 'साहिल'

9 सितम्बर 2021

पेहले तो आपका अहसानमन्द हूँ इतनी बेहतर समीक्षा के लिये ओर विशेष लेख पसन्द आया इस बदल , आप पढ़ते रहे और विश्लेषण करते रहे ताकि लिखने की ऊर्जा पर्याप्त मात्रा में मिलती रहे ऐसी अपेक्षा है , बहोत बहोत शुक्रिया दुवा के लिये

Poonam kaparwan

Poonam kaparwan

स्वागत है आपका इकराम जी अपनी रचनाओं को जरूर लिखिऐ ।

9 सितम्बर 2021

ईकराम पटेल 'साहिल'

ईकराम पटेल 'साहिल'

9 सितम्बर 2021

आभार आपका पूनम जी , 5 september से यँहा हूँ , लिखना आदत है लिहाजा कुछ न कुछ जरूर लिखूंगा

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