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मैं हूँ न

12 सितम्बर 2021

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अपने व्यथित मन की पीड़ा को समझने का प्रयास करने वाला शख़्स सदैव इस भीड़ भरी दुनिया में अपनों के बीच भी यदि हो तो स्वयं को अकेला ही पाता है चाहे कितने भी लोग उसके आसपास अपनत्व का भ्रमजाल बनाए हुए हों! मन की स्थिरता असंभव कार्यप्रणाली है पर सकारात्मक ऊर्जा से उसे कहीं न कहीं कुछ पल को सुकून दिया जा सकता है पर कैसे? 

क्या करेगा वो व्यक्ति जो अपनो की भीड़ में स्वयं को अकेला घिरा हुआ पाता है? क्या करेगा वो विद्यार्थी जो परीक्षा की तैयारी पूरे मन से करता है और बाद में पता चलता कि परीक्षा निरस्त हो गई! क्या करेंगे वो माता पिता जिनकी संताने आधुनिकता की भाग दौड़ में प्रेम के भ्रम रूपी मोहपाश में स्वयं को झोंक खुद को किनारे कर लेते हैं? क्या करेंगे वो बच्चे जिनके माता पिता के पास उनके पास बैठकर चंद पल बात करने का वक्त नहीं है? ऐसे अनगिनत उदाहरण की पूरी श्रृंखला है जो आपके अपने जीवन में और आसपास के परिवेश में घटित होते रहते हैं पर आप इसे सामान्यतया समझ भूलकर आगे बढ़ जाते हैं! परन्तु ये छोटी छोटी नजरंदाजी एक दिन स्वयं को ही विषैले सर्प की भांति डंस लेती है ! 

अक्सर हम दूसरों से बेहद अपेक्षाएं रखते हैं पर स्वयं कुछ भी नहीं करना चाहते! आपका मन उदास होता है या आप किसी मानसिक पीड़ा से गुज़र रहे हों तब आप चाहते हैं काश! कोई आए और कहे परेशान मत हो "मैं हूँ न" और ये शब्द आपके लिए मानसिक बल की तरह काम करते हुए तनाव मुक्त कर देंगे! पर क्या आपने स्वयं भी किसी को तनाव मुक्त किया है? नहीं किया तो स्वयं को भी इतने आत्मविश्वास और मनोबल से भर दीजिये कि आप भी कभी किसी की मानसिक पीड़ा की स्थिति में उसे ये कह सकें कि चिंता मत करो " मैं हूँ न".. क्योंकि आधुनिक युग में किसी के भी मानसिक तनाव को दूर कर उसके व्यथित मन को चिंता मुक्त करना उसे नया जीवन देने के समान है!.. कर के देखिए.. अच्छा लगता है!

© ईकराम 'साहिल'

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Shivansh Shukla

Shivansh Shukla

सार्थक 👌👌🙏🙏

12 सितम्बर 2021

Shailesh singh

Shailesh singh

बहुत ही अच्छी और सार्थक बात सबके समक्ष रखी है आपने 👌👌

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