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पण्डित ....रामबिहारी

30 जुलाई 2022

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नोट:- पाठक गण से  अनुरोध है कि ये कहानी केवल आपको गुदगुदाने के लिये लिखी गयी है।

इसे किसी भी प्रकार का आछेप न समझते हुए कृपया केवल एक व्यंग्य की तरह मनोरंजन के लिये पढ़ें🙏🙏🙏


कहानी.....

पंडित राम बिहारी

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पंडित राम बिहारी यूँ तो अच्छे कद काठी के थे ऊपर से छरहरे गोरे थे। और उनकी जीवन की कमाई उनकी लंबी तोंद जो की उन्हें अति प्रिये थी उसे वो राह चलते भी सहलाते रहते थे।


उनकी पत्नी जिसे वो शुशीला कहते थे अपने सम्बोधन के बिल्कुल विपरीत काजल से थोड़ी गोरी और बेडोल शरीर  जब भी चलतीं थी तो ऐसा लगता था की कोई बड़ी सी गेंद लुढ़कते हुए चली आ रही हो।....तेज इतनी की अगर कोई पंडित जी के चंगुल से बच जाये तो इनसे बचना असंभव।


चूंकि आसपास के दस बारह गांव मुसहर और मल्लाहों का था जिसमे ये एकलौते पंडित थे तो वाजिब बात है की कहीं न कही अपने ज्ञान का बखान करते मिल जाते....हाथ की आड़ी टेढ़ी रेखाओं में पता नही कितने के राहु केतु शांत कर चुके थे पता नही कितनो के मृत माता-पिता इन के सपनो में आकर विशेष प्रकार का पुजन करवाने की बात कर चुके थे....


कितने ही घर से भूत-प्रेत को लंगोट में बाँध कर ले गये थे कितनो के लाइलाज बीमारी का इलाज अपने मंत्रशक्ति से करने का दावा कर चुके थे...


इनकी इसी प्रकार की विशेष महिमा का गान सुनकर पड़ोस के एक बनिया ने भोज पर बुलाया....


अब नये गांव में जाकर अपना धाक जमाना था सो नयी किनारी दार धोती राम नामी कुर्ता ऊपर से अचकन जो कभी इनके पिता जी की शोभा हुआ करती थी और सर पर केशरिया साफा और खुश्बूदार तेल बालों में मलकर घर से निकले...


लोगों को बताते जा रहे की मुझे मरने की फुर्सत नही अब बताओ मैंने कितना मना किया पर तेवारी पुर के सेठ जी अड़े हुए है की जबतक हम भोजन नही करेंगे तब तक कोई शुभ कार्य नही करेंगे। तीन बार मोटर गाड़ी भेज चुके है पर मैंने तो साफ मना कर दिया की हम विद्द्वान ब्राह्मण है किसी भी मोह में बन्धे नही है हम पैदल ही आएंगे...


करते कराते पंडित जी पहुंचे वहां सेठानी ने बढ़कर पांव छुवे उसके बाद बेटों ने और बहुओ ने भी आशीर्वाद लिया। पंडित जी मन ही मन पछता रहे की गांव का कोई आदमी साथ ले आये होते तो कमसे कम ये सेवा भक्ति चलकर गांव में बताता तो...खैर अब क्या कर सकते इस रामायण का पाठ मुझे स्वं करना पड़ेगा....


सेठ जी काफी सम्भ्रान्त थे व्यापार में काफी माल बना रखा था और काफी सारे खेत खलिहान भी थे ।

 पंडित जी के लिए जलपान आ गया कई तरह के मेवे और सुद्ध देशी घी की मिठाईयां जिसके सुगंध से ही पंडित जी अभिभूत हुए जा रहे थे।  सेठ जी ने आगे बढ़ कर जलपान का आग्रह किया कुछ मीठा उठाया उसके बाद कुछ मेवे .....


भोजन आतुर व्यक्ति जब अपने सन्मुख विशेष पकवान देखता है तो उसकी क्षुधा बड़ी तीव्र हो जाती है महाराज जी पहली बार यहां आये है पर इतनी स्वादिस्ट मिठाई छोड़ दी तो भी धिक्कार है।

कई बार पंडित जी ने छुधा से वसीभूत होकर तस्तरी के तरफ हाथ बढ़ाना चाहा पर लज्जा से रुक गये....


बड़ी देर तक मन मंथन करने के बाद पण्डित जी के मन में एक विचार आया और अपने आप पर गर्व करते हुये बोले......सेठ जी आपके पिता जी का स्वर्गवास हुये कितने दिन हो गये सेठ जी बोले महाराज करीब दस वर्ष.....

उनको मीठा पसंद था महाराज ने पूछा,

हाँ महात्मा आपको कैसे पता....

'तो खिलाया क्यों नही' पंडित जी ने कड़कती आवाज ने पूछा'

सेठ जी हाथ जोड़कर जमीन पर बैठ गये और कांपते हुए बोले "महाराज हम तो अनाड़ी हैं हम क्या जाने जन्म मरण की बाते आप तो त्रिकाल दर्शी है आप ही कोई उपाय बताइये"


पंडित जी अपने योजना में सफल होते हुए बोले ला ये तस्तरी अपने हाथों से अपने पिता को खिला मैं अपने ऊपर उन्हें बुलाता हूँ....


लगभग तीन पाव मीठा छकने के बाद महाराज ने मेवे की तरफ इशारा किया उसको भी समाप्त करके अपने दोनों हाथ सेठ जी की पीठ पर ठोकते हुये हंसकर बोले आज से तेरा उद्धार हुआ मुरारी  जो ऐसे संत के चरण तेरे घर में पड़े....


कुछ देर विश्राम के बाद रसोई से भोजन का सन्देश आया.. महाराज जी का भोजन घर के अन्य सदस्य से दुगना परोसा गया क्योंकि ये बात सबको पता होती है की ब्राह्मण भोजन ज्यादा करता है .....थोड़े ही समय में महाराज ने सब समाप्त कर दिया गृहणी ने पूछा और महाराज ने कहा हाँ ले आओ थोड़ा अब आज कल खा नही पा रहा हूँ.....


गृहणी ने तीन चार बार पूछा हर बार हाँ में जवाब होता साथ में आजकल ...

अब उसने पूछना बन्द कर दिया वो थाली में डालती जाती ये साफ करते जाते यहां तक कि जननियों के लिए रसोई बची ही नही....

छक कर भोजन करने के बाद महाराज उठे पूरे परिवार को आशीर्वाद दिये दक्षिणा लिए और चलने को तैयार हुये....


इनके भोजन का कौतुक देखकर सेठ जी का बड़ा लड़का कुछ खीझा हुआ था चलते-चलते उससे न सहा गया उसको लगा की महाराज जी ने इतना खा लिया है तो घर पहुंच नही पाएंगे तो छेड़ने के लिए बोला महाराज जी और कुछ सेवा करें कुछ मीठा....

मीठा का नाम सुनते महाराज वही पड़ी बेंच पर बैठ गये और बोले...

" बेटा ज्यादा तो खाया नही जायेगा पर अगर सुद्ध रबड़ी मिले तो आधा किलो ले लो खा लूं तब जायूँ नही तो कहोगे की पंडित जी ने मेरा मान नही रखा"


वो लड़का वहीं चक्कर खा कर गिर गया और महाराज रबड़ी के इंतजार में डंटे रहे.......


......राकेश पाण्डेय

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