चाहतीहूँ ,उकेरना ,औरत के समग्र रूपको, इस असीमित आकाश में !जिसके विशालहृदय में जज़्बातों का अथाह सागर,जैसे संपूर्ण सृष्टि कीभावनाओं का प्रतिबिंब !उसकेव्यक्तित्व कीगहराई में कुछ रंग बिखर गए हैं । कहींव्यथा है ,कहीं मानसिक यंत्रणा तो कहींआत्म हीनता की टीस लिए!सदियोंसे आज
मानसिक अनुभूतियों की एक संज्ञातम्यक व् सर्वमान्य परिभाषाये रचना भौतिक पदार्थो और उसकी क्रियावों की परिभाषों के बनाने जितना सरल नहीं लगता है, क्योकि भौतिक परिभाषाओ के लिए स्थायी परिमंडल निश्चित है और कम भी