मानसिक अनुभूतियों की एक संज्ञातम्यक व् सर्वमान्य परिभाषाये रचना भौतिक पदार्थो और उसकी क्रियावों की परिभाषों के बनाने जितना सरल नहीं लगता है, क्योकि भौतिक परिभाषाओ के लिए स्थायी परिमंडल निश्चित है और कम भी है , जैसे ताप, दाब, समय, लम्बाई, भार, द्रव्यमान , ज्योतितृवता आदि को स्थिर मानकर हम इन भौतिक या रासायनिक पदार्थो को आसानी से परिभाषित कर सकते है, जबकि -
1. मानसिक अनुभूति की स्पष्ट सार्वभौम परिभाषाएँ कुछ जटिल होती है क्योकि--
2. हर जीव की अपनी रासायनिक, भौगोलिक सामाजिक सँरचना है जिसका उसकी अनुभूति पर असर तो पड़ता ही है जिसे हम सामान्यतः बिना स्थिर किये परिभाषित करते है -
3. ?? क्या प्रेम प्रशन्नता की अनुभूति है ? ?
4. नहीं, कुछ लोग दुसरो को कष्ट देकर भी प्रशन्न होते है इसलिए ...
5. प्रेम नाभिकीय संलयन जैसा लगता है जिसमे प्रियतम से मिलने की कल्पना से शक्ति प्राप्त होती है ,-
6. अतः 'प्रेम' " प्रियतम से मिलने की अनुभूति (कल्पना ), उसके हित में कुछ करने हेतु रचनातमक / विनाशात्मक शक्ति या ऊर्जा का भावात्मक आभास उसके प्रति प्रेम है "
ये लेख मैंने ' quora' के एक प्रश्न के जवाब में प्रथम इसी शब्द नगरी साइट पर बहुत दिन बाद लिखा
बताइयेगा कैसा प्रयत्न किया
अमित
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