''जातियां ही चुनावी घडी हो गयी , उलझनें इसलिए खड़ी हो गयी , प्रजातंत्र ने दिया है ये सिला कुर्सियां इस देश से भी बड़ी हो गयी .'' केवल शेर नहीं है ये ,सच्चाई है जिसे हम अपने निजी जीवन में लगभग रोज ही अनुभव करते हैं.मेरठ बार एसोसिएशन के कल हुए चुनाव का समाचार देते हुए