लहरतारा यों तो एक मोहल्ले का नाम है - पर इसी नाम की किताब, जो विमल चंद्र पांडेय ने लिखी है और जो हिंद युग्म से प्रकाशित हुई है, पढ़ते हुए आप जानते हैं कि मोहल्ला जो व्यक्ति के होने में शामिल होता है, जहां एक उम्र गुजारी होती है, उसे उस एक व्यक्ति कैसे याद करता है?
यह सच है कि अवसाद, उदासी को समझने की नज़र अभी हमें नहीं मिली - हम सिरे से उसे खारिज़ कर देते हैं और इस तरह किसी की उदासी में कुछ और अँधेरा जोड़ देते हैं जबकि चाहिए यह कि हम किसी को उजास दे सकें या नहीं, कम से कम उस उदासी को चीन्ह तो लें। जब मैंने लहरतारा नाम की इस किताब को पढ़ना शुरू किया, तो इस किताब की शुरुआत में लेखक ने जो प्यार भेजा था, उसे पढ़कर आंखें गीली हुई थी, इमोशंस संभाल न सकने का दौर है यह ।
बहरहाल, किताब के शुरुआती कुछ अध्याय, पाठक कोदो पक्ष से लिखे जान पड़ते हैं और दोनों ही पक्ष अपनी लिखावट में बेहद जेनिविन लगते हैं- व्यवहार
बहरहाल, किताब के शुरुआती कुछ अध्याय, पाठक को दो पक्ष से लिखे जान पड़ते हैं और दोनों ही पक्ष अपनी लिखावट में बेहद जेनिविन लगते हैं - व्यवहार में आई तब्दीली, उन तब्दीलियों को नोटिस किया जाना, दवाइयों का दौर सब कुछ बेहद ज़रूरी लेख की तरह लगता है पढ़े जाने की इस यात्रा में।
इस किताब की यात्रा हर पाठक के लिए अलग होगी, हो सकती है, पर हर यात्रा जीवन को जानने की यात्रा होगी।
किताब का हर अध्याय अपने शीर्षक के साथ ही जीवन को समझने की खिड़की की तरह जान पड़ता है और उस अध्याय, उस खिड़की के भीतर जाते हुए आप अपने भीतर कुछ जुड़ता हुआ पाते हैं - अपने जीवन के किसी बीते पन्ने को समझने की नज़र पाते हैं तो कहीं आने वाले जीवन को जी सकने की सलाहियत!
लहरतारा की यह कहानी किताब के साथ खत्म नहीं होती; अपने सहयात्री पाठकों को जीवन के प्रति उम्मीद थमाते हुए जब यह किताब ख़त्म होती है तो कहानी के अगले हिस्सों को जानने का इंतज़ार रहता है क्योंकि यह कहानी जीवन की तरह ख़त्म नहीं लहरतारा की यह कहानी किताब के साथ खत्म नहीं होती; अपने सहयात्री पाठकों को जीवन के प्रति उम्मीद थमाते हुए जब यह किताब ख़त्म होती है तो कहानी के अगले हिस्सों को जानने का इंतज़ार रहता है क्योंकि यह कहानी जीवन की तरह ख़त्म नहीं होती।