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पुस्तक के प्रमुख अंश

28 मार्च 2023

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‘सबै रसायन हम किया, प्रेम समान ना कोय

रंचक तन में संचरै, सब तन कंचन होय... कबीरा सब तन कंचन होय...’“समझे?” 

उन्होंने मुस्कुराते हुए चतुर से पूछा और चतुर ने नहीं में सिर हिलाया। उन्होंने भुना हुआ बैगन थाली में निकालकर एक साथी को दिया और चतुर का हाथ पकड़कर उठ गए। दोनों तालाब के पास जाकर टहलने लगे। चतुर इंतज़ार कर रहा था कि बिसारिया काका कुछ बोलें। बिसारिया काका ने थोड़ी देर टहलने के बाद उसकी ओर देखा।

“दो लोगों के बीच में जो प्रेम होता है वो सिर्फ़ उन दो लोगों का होता है। उसमें देवता, दानव, गंधर्व, यक्ष, किन्नर किसी को भी कुछ बोलने का अधिकार नहीं है तो मनुष्य की तो बिसात ही क्या। एक स्त्री और पुरुष जब अपने एकांत के क्षणों में एक-दूसरे से प्रेम कर रहे होते हैं तो वे उतने ही केंद्रित और निर्दोष होते हैं जितना एक गर्भस्थ शिशु, जैसे हम उसके लिए वात्सल्य के भाव से भरे होते हैं वैसे ही हमें उन दो प्रेम करने वालों के लिए भी होना चाहिए। उनके एकांत में अतिक्रमण करना जघन्य पाप है।” 


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रचनाएँ
लहरतारा
5.0
बनारस के एक छोटे से मोहल्ले में बड़ा होता एक लड़का घर के माहौल से ऊब कर संतों की संगति में बैठने लगता है और दुनिया देखने का उसका नज़रिया बदलने लगता है। वो बड़ा होकर लेखक बनना चाहता है और इस सपने को जीते हुए वह बचपन की दोस्तियों और जवानी के प्यार से रूबरू होता है। बनारस की बिंदास दोस्ती और मोहल्ले का प्रेम उसकी ज़िन्दगी में आकर कैसे उसे बदलता है और वो कैसे आज के समय के सबसे बड़े हादसे से गुज़रता है यानी भीड़ से घिरे होने के बावजूद अकेला पड़ जाना, इसी की कहानी है लहरतारा। चुटीली भाषा में बनारसी छौंक के साथ अपने समय का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण इसको ख़ास बनाता है।

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