मैं हूं एक पवन का झोंका,
अपनी मस्ती की धुन में खोया...
मुसाफिर हूं मैं मस्त मौला,
घूमता रहता हूं डाल डाल पर...
फूलों की पत्तियों को छु कर,
गली मोहल्लों में द्वार-द्वार...
धूल,तिनके,उष्मा,आर्द्रता,शीतलता,
समाहित कर खुद में,
सभी दिशाओं में अनवरत बहता....
बिना किसी फिकर ,
बड़ा ही निडर....
ना इच्छा किसी की,
ना आशा किसी की...
झूमता चलता हुँ,
शाखाओं पर झूलता चलता हुँ...
गेहूं की बालियों पर लहराता,
बादलों को अपने साथ बहाता...
सरसों के खेतों से गुजरता,
पेड़ों के फलों को छूता...
कानों को गुदगुदाता,
राही को आराम देता...
बरसों से, युगों से,
कभी जीवन देता...
कभी आंधी बनकर
वृक्षों को उखाड़ता...
मदमस्त हाथी सा रौंदकर,
कभी शांत हुँ कभी रौद्र बनकर...
समीर, वात,अनिल, मारुत,
पवमान, प्रभंजन, प्रवात,
अनेक नाम मेरे...
आंधी तूफान चक्रवात
अनेक रूप मेरे...
बिना किसी परवाह के...
मैं बेपरवाह मुसाफिर घूमता रहता हूं....
मैं हूं एक पवन का झोंका...
मैं हूं एक पवन का झोंका....
𝕎𝕣𝕚𝕥𝕥𝕖𝕟 𝕒𝕟𝕕 𝕔𝕠𝕡𝕪𝕣𝕚𝕘𝕙𝕥
𝕓𝕪 𝕧𝕚𝕕𝕦𝕤𝕙𝕚 𝕄𝕒𝕝𝕡𝕒𝕟𝕚
𝕂𝕙𝕒𝕟𝕕𝕨𝕒 𝕞𝕡 ❤