शहर में कहीं..
एक फ्लैट के ड्राइंगरूम में,
सोफे पर एक अधेड़ औरत बेहोश पड़ी थी। उसी के बगल में चेयर से बँधी एक बाईस वर्षीय लड़की बैठी थी जिसके मुँह में कपड़ा ठुंसा था।
वो 'गूँ..गूँ' की आवाज करती, अपना पैर पटक रही थी।
सामने दो आदमी खड़े थे जिनमें से नाटे कद के आदमी को वह लड़की बीच-बीच में हिकारत से देख रही थी।
तभी नाटे के बगल में खड़ा आदमी उस लड़की के बालों को जोर से खींचते हुए पूछा,
"आखरी बार पूछ रहा हूँ, बता दे, वरना इस घर के साथ तुझे भी जिंदा जला दूँगा।"
जवाब में वो लड़की 'गूँ...गूँ..' करती खुद को छुड़ाने का प्रयास करती रही। नाटे कद के आदमी ने उसे ईशारा किया वो एक गहरी साँस लेते हुए उसका बाल छोड़ दिया और पीछे हट गया।
"देख कंचन, प्लीज़ बता दे कि विजेंद्र कहाँ है। उसके पास उन सब की जानकारी है, अगर अभी साथ नहीं गया तो वो जहाँ मिलेगा, उसे गोली मार देंगे। ..तू नहीं जानती, ..वो बड़े खतरनाक लोग हैं। विजेंद्र मेरे बचपन का दोस्त है, तू उसका पता बता दे, मैं वादा करता हूँ कि उसे कुछ नहीं होगा।"
नाटा शांत लहजे में बोला और उसके मुँह से कपड़ा निकाल दिया।
मुँह खुलते ही लड़की उसे गंदी-गंदी गालियाँ देती हुई बोली,
"तू बचाएगा उसे, तू.. साला कुत्ता, ..., ..., जिस थाली में खाया उसी में छेद किया। उसी के पैसे से रोज दारू पीता था और आज उसी के पीछे गन ले के आया। ..मैं अगर जानती भी रहती तब भी तुझे नहीं बताती। ..क्या मैं नहीं जानती कि तुम लोग उसे मारने आए हो।"
"..नहीं कंचन, हम उसे मारने नहीं, सिर्फ वहाँ ले जाने आए हैं। अगर वो उनके पास चला गया तो वो उसे कुछ नहीं करेंगे, हाँ ..अगर वो नहीं गया तो उसे कहीं से भी खोज कर मार डालेंगे। ...मेरी बात सुनो, बता दो कि वो कहाँ है। तुम लोग उसे कहीं भी छुपा नहीं सकते, वो पकड़ा जाएगा, मारा जाएगा और उसके साथ हमारा पूरा गैंग मारा जाएगा।"
"..ओह, तो ये बोल न कि तू उसे उनके हवाले करके अपना और अपने गैंग का जान बचाने आया है। ..एहसानफरामोश ..., ...."
लड़की फिर से उसे गाली देने लगी।
नाटा झल्लाकर फिर से उसके मुँह में कपड़ा ठूँस दिया और उठकर वहाँ से हट गया।
"तू ऐसे नहीं मानेगी.."
कहते हुए दूसरा आदमी सोफे पर बेहोश पड़ी औरत के कनपटी पर गन तान दिया,
"अभी तो इसे सिर्फ बेहोश किया है, अगर नहीं बताई तो सोंच ले, गोली मार दूँगा इसे.."
वो गुर्राया।
धमकी असरदार रहा, लड़की विचलित होती हुई और अपना सिर हिलाने लगी।
वो आदमी पास आया और,
"..इस बार फालतू बकवास की तो सोंच लेना, वो बुढ़िया जान से जाएगी।"
कहते हुए उसके मुँह से कपड़ा हटाया।
"..भैया, पाँच बजे के आस पास घर आए थे और दस मिनट बाद ही फिर से चले गये। ..लेकिन वो कहाँ गये, मुझे कुछ नहीं मालूम..."
लड़की की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि एक झन्नाटेदार तमाचा उसके गाल पर पडा।
लड़की बिलबिला कर रह गयी। वो उसके बालों को खींचते हुए बोला,
"साली, ..कहानी सुना रही है। तुझे मालूम है कि वो कहाँ गया है। ...सीधाई से बताती है कि.."
"कर्रा.."
नाटा आदमी चिल्लाया,
"छोड़ दे लड़की को, ..उसे जितना मालूम है बता रही है।"
"..ये झूठ बोल रही है। इसे सब मालूम है तेरे कहने पर अभी तक इससे इज्जत से पूछ रहा था। ..पर अब बहुत हुआ। ..तू देख, मैं कैसे इससे उगलवाता हूँ। ..ये अभी अपना मुँह खोलेगी।"
वो आदमी लड़की के बाल पकड़ कर खींचता, उसके सर को बेदर्दी से घुमाते हुए बोला।
नाटा आदमी के चेहरे का भाव बदलने लगा। उसे देखने से ऐसा लग रहा था जैसे लड़की से ज्यादा दर्द उसे हो रहा हो।
वो गुस्से से चिल्लाया।
"मैंने कहा न लड़की को छोड़ दे।"
दूसरा आदमी नाटे आदमी को गौर से देखते हुए व्यंग्य से मुस्कुराया,
"ओह.., बाल इधर खींच रहा हूँ और दर्द उधर हो रहा है। लगता है तेरी पुरानी आशिकी फिर से जाग उठी। ...अगर बॉस को बता दिया न, तो तेरी खैर नहीं।"
वो आदमी वैसे ही लड़की के बाल पकड़ कर उसे हिलाता रहा।
अचानक नाटा गुस्से से भर गया।
"बॉस की ऐसी की तैसी, ..छोड़ लड़की को।"
वो उसके ओर अपना गन तानते हुए बोला,
"..बहुत हुआ, अब अगर इसे हाथ भी लगाया तो गोली मार दूँगा।"
दूसरा आदमी सकपकाया।
"ये क्या कर रहा है तू.."
कहते हुए वो लड़की को छोड़ कर खड़ा हो गया।
गन उसके भी बाएं हाथ में था पर वो इस स्थिति के लिए तैयार नहीं था।
"पागल हो गया है ...तू इस लड़की के लिए, ...मुझ पर गोली चलाएगा।"
"..हाँ, और जरूरत पड़ी तो बॉस को भी नहीं छोडूँगा। कर्रा, अगर जान की सलामती चाहता है तो चुपचाप चला जा यहाँ से।"
नाटा गन ताने हुए गुर्राया।
दूसरा आदमी सावधानी से एक ओर हटते हुए,
"देख, ..तू ये ठीक नहीं कर रहा। ..तू हमसे दुश्मनी करके बचेगा नहीं।"
कहते हुए चालाकी से अपना गन वाला हाथ धीरे से उठाने लगा। पर इससे पहले कि उसका हाथ उपर उठे, नाटा ने ट्रिगर दबा दिया।
गोली उसके सीने में लगी और वो वहीं ढेर हो गया। लड़की फ़टी आँखों से उसे देखती रही।
नाटे ने जल्दी से लड़की के मुँह से कपड़ा हटाया और उसके हाथ पैर खोलने लगा।
"ये क्या किया तूने, ..अब ये लोग तुम्हारे साथ-साथ हमें भी जिंदा नहीं छोड़ेंगे।"
लड़की घबराते हुए बोली।
"हूँह.." नाटा व्यंग्य से हँसा।
"तुझे क्या लगता है, तू बच जाती... बॉस ने हमें तुम लोगों से जानकारी लेने के बाद गोली मार देने को कहा था।"
"..लेकिन ये लोग अब तुम्हें भी जिंदा नहीं छोड़ेंगे। हमारे लिए तूने अपनी जान क्यों दाँव पर लगा दिया..?"
कंचन उसे देखते हुए बोली।
"समस्या तो यही है कंचन, ..तुम्हें अब भी मेरे प्यार पर यकीन नहीं।"
नाटा बुझी आँखों से उसे देखते हुए बोला।
कंचन उसे पल भर देखी फिर अपनी आँखें फेर ली। वो किचन से पानी ला कर सोफे पर पड़ी औरत पर छिड़कने लगी।
"अब हम यहाँ सुरक्षित नहीं, ...चलो, हमें तुरंत यहाँ से निकलना होगा।"
नाटा उस मरे हुए आदमी का गन और उसके जेब से पर्स निकाल कर रखते हुए बोला।
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उसी समय एरोडेन में,
एक स्टॉफ के स्क्रीन पर वाटरफ्रंट रिसॉर्ट के पार्किंग, लॉबी, सुइट के बाहर, गैलरी, कॉरिडोर, जैसे विभिन्न स्थानों का सीसीटीवी फुटेज दिखाई दे रहा था।
उसी में से होटल के मेनगेट के फुटेज में नेपाली पुलिस के जवान आते हुए दिखाई दिए। वो स्टॉफ अपने इयरपीस को अपने बाएँ हाथ के तर्जनी उँगली से छुवा।
इधर सुइट के अंदर, टेबल में एक डिवाइस से आवाज आई।
"वाइपर टीम.., होटल में लोकल पुलिस आ रही है। मेनगेट से, ..एक टू स्टार और दस जवान, ..हथियारों से लैस। जवानों के पास इंसास, टू स्टार के पास पिस्टल।"
"हूँ.., ये तो होना ही था। ओके एरोडेन, ..हम रूम छोड़ रहे हैं।"
विक्रांत बोला।
तीनों फुर्ती से उठकर समान समेटने लगे।
समान सिर्फ इतना था कि एक एयरबेग में आ गया। पर्सी उस बेग को अपने पीठ पर लटका लिया। ईशा ने अपनी लहराती बरगंडी जुल्फों को जुड़े में समेटा, तीनों ने अपने-अपने कानों में इयरपीस लगाया, अपने नाइन एमएम पिस्टल में साइलेंसर लगाया और उसे कमर में खोंच कर दरवाजे की ओर बढ़े।
तभी पर्सी ने एक स्प्रे निकाला और उसे सम्भावित स्थानों पर छिड़कता गया। ये वो स्प्रे था जिससे उस कमरे में कोई फिंगरप्रिंट, निशान या कोई गन्ध न छूटे।
तीनों कमरे से बाहर निकल गये।
एरोडेन में वो स्टॉफ कीबोर्ड पर उँगलियाँ नचाने लगा।
उधर होटल के सिक्योरटी रूम में एक आदमी स्क्रीन के सामने बैठा अपने मोबाईल पर कुछ देखते हुए मुस्कुरा रहा था। अचानक उसके सामने के कुछ स्क्रीन पर चल रहे विजुअल दोबारा चलने लगे... वो लाइव वीडियो के बजाय पुराने वीडियो रिपीट करने लगा।
पर गार्ड इन बातों से अंजान अपने मोबाईल में ही व्यस्त था।
"लेफ्ट साइड, ..कॉरिडोर के लास्ट में एक सीढ़ी है।"
स्क्रीन पर नजर गड़ाए एरोडेन में बैठा वो स्टॉफ बोला।
तीनों उस ओर बढ़े।
वहाँ सीढ़ी से पहले एक लोहे का जालीदार दरवाजा था जिस पर ताला लगा था। पर्सी ने ताले पर गोली चलाई।
साइलेंसर लगे पिस्टल से 'पिट' की आवाज़ आई और ताला खुलकर लटक गया। तीनों दरवाजा खोलकर सीढ़ियों से नीचे उतरने लगे। सीढ़ी नीचे ग्राऊंडफ्लोर तक आई थी।
अब तीनों ग्राऊंडफ्लोर के कॉरिडोर में थे।
"जस्ट सामने का रूम.."
उन्हें सुनाई दिया।
सामने के उस रूम में भी ताला लगा था। पर्सी फिर अपना पिस्टल निकाला और ताला तोड़कर वो अंदर घुस गये। वो एक स्टोर रूम था जिसमें टूटे फर्नीचर वगैरह पड़े थे, वो उनके बीच से निकलते हुए दूसरे तरफ के दरवाजे पर पहुँचे। दरवाजे पर सिर्फ सिटकनी लगी थी जिसे खोलकर वो बाहर निकले।
ये होटल का पिछला हिस्सा था।
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उधर,
पोस्टमार्टम और जाँच के बाद पोखरा पुलिस ने भी कन्फर्म कर दिया था कि सातवाँ लाश, मंत्री जी के बेटे विनोद झा की है।
मीडिया को खबर दे दी गयी थी।
न्यूज़ चैनलों में, 'अपने छः दोस्तों के साथ पिकनिक के लिए गये, मंत्री जी के बेटे विनोद झा का उनके गेस्ट हाउस में दिन दहाड़े हत्या' जैसे टाइटल से ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी। ये बात सबसे छुपा कर रखा गया था कि वो मरने वाले छः लोग टेरेरिस्ट थे। मंत्री जी को भी सूचना दे दी गयी थी और वो सपरिवार स्पेशल प्लेन से काठमांडू से निकल चुके थे। ..लेकिन उससे पहले संभावित इंडियन एजेंसिस से निपटने के लिए सेना के विमान से बीस स्पेशल फोर्स के कमांडो और नेपाल मिलिट्री इंटेलिजेंस का एक टीम पोखरा पहुँच चुकी थी।
उस समय टीम का मुखिया मेजर शेखर शर्मा, अपने विशेषज्ञों के साथ लाशों का मुआयना कर रहा था। कमरे में वो इंस्पेक्टर भी मौजूद था जो अब तक उस केस की छानबीन कर रहा था।
मेजर शेखर शर्मा लगभग पैंतीस वर्षीय, हट्टा-कट्टा, ऊँचे कद का एक शातिर एजेंट था। मित्रता के दिनों में उसने भारत के ही इंडियन डिफेंस एकेडमी से ट्रेंनिंग लिया था और उसके बाद इंडियन मिलिट्री इंटेलिजेंस ने ही उसे खुफिया दाँव पेंच सिखाए थे।
"..क्या लगता है महरा, किसका काम हो सकता है..?"
वो लाश से निकले गोलियों को देखते हुए बोला।
"श्योर है सर, किसी ट्रेंड टीम का ही ये काम है। लाश जिस तरह से चिपकी हुई है, लगता है पहले इनके हाथ-पैर बाँधे गये थे फिर गोली मारी गयी है। ..और इसे दूर से गोली मारी गयी है, एंगल से लगता है जैसे किसी ऊँचे स्थान से ..यानी किसी स्नाइपर ने इसे मारा है। ..मतलब साफ है सर।"
"मतलब तुम भी मानते हो कि ये किसी हमारे बिरादरी के लोगों का काम है.. क्यों ?"
"बिल्कुल सर, ..और ये काम किसी का नहीं बल्कि हंड्रेड परसेंट इंडियन एजेंसी का काम है।"
"हूँ.., सुनो क्या नाम है तुम्हारा ?"
शेखर उस इंस्पेक्टर की ओर देखा।
"जी, अष्टविजय अभ्यंकर सर।"
इंस्पेक्टर पास आते हुए बोला।
"..क्या भयंकर ?"
"..अभ्यंकर सर, ...अष्टविजय अभ्यंकर। ..आप मुझे विजय कह सकते हैं सर।"
"हूँ, तो विजय, ..तुम्हें कैसे मालूम कि ये छः लोग टेरेरिस्ट थे..?"
वो इंस्पेक्टर को गौर से देखते हुए बोला।
इंस्पेक्टर उसे 'मुस्तकीम' वाली बात फिर से बताने लगा।
"ओह..। ओके, ..तो चलो फिर, पहले उसका दर्शन कराओ फिर इनके हत्यारों का पूजा-पाठ शुरू करेंगे।"
शेखर शातिराना अंदाज में बोला।
क्रमशः...
S-1 part 5