बार के बेसमेंट में टूटे-फूटे कबाड़ और धूल-गंदगी से भरा वो एक बड़ा सा कमरा था।
उस कमरे के एक कोने में थोड़ी सफाई की गयी थी जहाँ दो जर्जर टेबलों को जोड़ कर एक बेड बनाया गया था। पास ही एक टूटी सी कुर्सी, पानी के तीन चार बॉटल और खाने के पैकेट रखे थे।
वहाँ मैनेजर सिर्फ अंडरवियर में, ..बँधा हुआ, कराहता फर्श पर पड़ा हुआ था और विजेंद्र यादव बगल में घुटनों के बल बैठा था।
विजेंद्र के शरीर में भी सिर्फ अंडरवियर था और उसके चेहरे के भूगोल से लग रहा था कि अभी-अभी उसकी अच्छी खातिरदारी की गई है।
वो एकांश और रूही के सामने गिड़गिड़ा रहा था,
"मैं समझ गया हूँ कि आप लोग कौन हैं और यहाँ क्यों आए हैं। ...मैं ये भी समझ गया हूँ कि आप लोग मुझे किसी भी हालत में जिंदा नहीं छोड़ेंगे। ..पर प्लीज़, ..प्लीज़ मेरी माँ और बहन को बचा लीजिए, ..प्लीज़। ..वो लोग उन्हें जिंदा नहीं छोड़ेंगे। ..मैं हाथ जोड़ता हूँ, ..मैं पैर पड़ता हूँ प्लीज़। ..मैं आप लोगों को सब कुछ, सच-सच बता दूँगा पर मेरी माँ और बहन को कुछ नहीं होना चाहिए। देखिए, मैं जानता हूँ इंडियन एजेंसी के लोग कितने खतरनाक होते हैं पर फिर भी आप लोगों में मानवता आज भी जिंदा है आप लोग उनके जैसे निर्दोष और लाचार लोगों को नहीं मारते, ..प्लीज़।"
"ठीक है। ..हम तुम्हारे फैमिली को कुछ नहीं होने देंगे। ..पर याद रखना अगर तुम्हारी एक भी इंफॉर्मेशन गलत निकली तो तू ये भी जानता होगा कि हमारे लिए देश से उपर कुछ भी नहीं, ..न दया, न धर्म, न मानवता। ...हम तेरे फैमिली को गोली नहीं मारेंगे बल्कि ऐसी मौत देंगे कि दोजख में बैठा तेरा रूह काँप जाएगा।"
रूही उसे धमकाते हुए बोली।
"नहीं, नहीं.., मैं सब सच बताऊँगा, जो कुछ भी मुझे मालूम है ..पूरा सच। ..पर मेरी माँ और बहन को कुछ नहीं होना चाहिए।"
"कुछ नहीं होगा उन्हें, ..मैं वादा करती हूँ, कोई उनको छू भी नहीं सकता।"
कहते हुए रूही एकांश को देखी।
एकांश अपना इयरपीस जेब से निकाल कर कान में लगाया और बोला,
"..एरोडेन, विजेंद्र के फैमिली के सिक्योरिटी के लिए किसी को अरेंज करो, तुरंत। ..उन्हें कुछ नहीं होना चाहिए, वो अब हमारी जिम्मेदारी है।"
"..लो, अब वो सेफ हैं, ...बोलो"
रूही बोली।
"..हमारे गैंग का काम उनको खाना-पीना और दैनिक जरूरत की चीजें मुहैया कराना था। ..मेरे नीचे तीन लोग और थे, पर वो सिर्फ सामान उठाने ले जाने के लिए थे।वो लोग या तो बॉस से बात करते थे या मुझसे। ..आज सुबह भी हम लोग वहाँ कुछ जरूरी समान लेकर गये थे। ..आप लोगों ने जिन सात लोगों को मारा है उसमें से एक विनोद झा, मंत्री जी का बेटा है। वो उनके लिए नकली इंडियन आईडी लेकर आया था। ..आज सुबह उनसे मिलने एक और आदमी आया था। वो अभी यहीं है पर कल सुबह, दुबई के लिए निकल जाएगा। मुझे वो उन लोगों का मुखिया जैसा लगा। उसे वो लोग बहुत इज्जत दे रहे थे और उसे हाजी बाबा, हाजी बाबा कह रहे थे।"
"..हाजी बाबा...!"
रूही चौंकते हुए एकांश को देखी।
"...देखने में कैसा था।"
"एक दम ऊँचा, लंबे कद का, सफेद दाढ़ी, मोटे फ्रेम का चश्मा, उम्र सत्तर से ऊपर होगी पर फिर भी एकदम तगड़ा शरीर.. सिर पर उपर से नीचे एक चौखाने छाप के गमछे को ऐसे बाँधा हुआ था जैसे ठंड में हम मफलर लगाते हैं।"
विजेंद्र बोला।
एकांश ने अपने मोबाईल में एक तस्वीर निकाला और उसे दिखाते हुए बोला,
"इसे देखो, ..कहीं वो ये तो नहीं।"
"हाँ.. हाँ यही है।"
"माय गॉड.., सुल्तान काजी"
एकांश चौंकते हुए बोला।
उसी समय उसके जेहन में एक दृश्य उभरी,
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पाकिस्तान बार्डर एरिया का एक कस्बा जहाँ सैकड़ों आतंकवादियों को ट्रेनिंग दी जा रही है....
उन्हें सुल्तान काजी अपने जहरीले भाषण से भारत के खिलाफ भड़का रहा है...
'नारा-ए-तकबीर, अल्लाहु अकबर' और 'जेहाद' के कर्णभेदी आवाज से घाटी दहल रही है...
सुल्तान काजी शहर के गलियों में खुले आम घूम रहा है, लोग उसे सलाम कर रहे हैं, उसके हाथ को अपनी आँखों से लगा रहे हैं...
बड़े-बड़े हुक्मरानों के साथ जलसों में वो शिरकत कर रहा है....
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" ..ये अभी कहाँ मिलेगा ?"
"मैं नहीं जानता, ..पर मेरे शर्ट में मेरे मोबाईल का मेमोरी कार्ड है, मैंने अपना मोबाईल ट्रेस होने के डर से फेंक दिया है लेकिन उसे मैं रख लिया था। ..उसमें उन के सारे फोन नम्बर्स और उन ठिकानों के लोकेशंस हैं, जहाँ-जहाँ हम सामान पहुँचाया करते थे, ...शायद उन्हीं में से किसी जगह हो। ..इसके अलावा हमारे पास उनकी कोई जानकारी नहीं है। हम लोग बस उनका ये काम करते थे और बदले में हर महीने वो बॉस को पेमेंट करते थे।"
विजेंद्र बोला।
उसके चेहरे से लग रहा था कि वो सच बोल रहा है।
रूही पास पड़े उसका शर्ट उसे थमाई, वो उसके नीचे भाग के सिलाई से एक मेमोरी कार्ड निकाल कर दिया।
रूही अपने हाथ में वो कार्ड लेकर बोली,
"...और कोई जानकारी ?"
"नहीं, ..इसके अलावा मैं कुछ नहीं जानता।"
"हूँ.., ओके, ..तेरी फैमिली सेफ रहेगी। ..तूने हमें इतनी बड़ी जानकारी दी है इसलिए हम उनके आगे के रहने खाने का भी अरेंज कर देंगे। ..पर तुझे अब उपर जाना होगा।"
जवाब में विजेंद्र मुस्कुराया। उसके चेहरे पर उस समय एक सुकून सा दिखाई दे रहा था।
एकांश ने अपने साइलेंसर लगे पिस्टल से उसे सिर में गोली मार दिया। वो पल भर में शांत हो गया।
फिर वो मैनेजर के पास गया,
वो डर से काँप रहा था।
एकांश बोला,
"..देख तूने इतना भी बड़ा कोई अपराध नहीं किया है इसलिए हम तुम्हें जिंदा छोड़ देंगे, ..बशर्ते। ...बशर्ते कि तू हमें यहाँ से निकलने का कोई सेफ रास्ता बता दे। ..क्योंकि अब तक यहाँ तेरे चचा जान के लोग आ गये होंगे।"
काँपते मैनेजर के मन में आस जगी, वो बोला
"हाँ.. हाँ मुझे छोड़ दीजिए प्लीज़। ..मैं रास्ता बताता हूँ, ...यहाँ से उपर जाते ही दायाँ, ..कोने में एक दरवाजा है जो बाहर, एक गली में खुलता है।"
"थैंकयू.."
एकांश खतरनाक ढंग से मुस्कुराया और उसे गोली मार दिया।
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शहर का एक पुलिस स्टेशन,
लॉकअप में एक आदमी सीमेंट के बेंच में बैठा हुआ था। उसके फटे हुए कपड़े और चेहरे का भूगोल इस बात की गवाही दे रही थी कि इंस्पेक्टर विजय ने उसे अच्छे से रगड़ा था।
वो मुस्तकीम था।
विजय के इशारे पर हवलदार उसके सामने एक कुर्सी रख आया और उसके निकलते ही शेखर वहाँ प्रवेश किया।
अंदर जा कर शेखर, पहले खड़े-खड़े कुछ देर उसे देखता रहा फिर कुर्सी खींच कर बिल्कुल उसके सामने बैठ गया।
उसके वहाँ बैठते ही मुस्तकीम के मुँह से एक हृदयविदारक चीख निकली। लॉकअप के बाहर खड़ा विजय समझ नही पाया कि आखिर एक ही पल में ऐसा क्या हो गया। ..लेकिन उसी एक पल में शेखर के हाथ में एक छोटा किन्तु तेज चाकू प्रकट हुआ था जो मुस्तकीम के कलाई का नस काट दिया था।
खून की धारा बह निकली थी जिसे रोकने के लिए मुस्तकीम दर्द से बिलबिलाते हुए अपने दूसरे हाथ से उसे दबाने लगा।
"पहले हाथ के बहते खून को तो तू किसी तरह दूसरे हाथ से रोकते हुए कुछ मिनट जी जाएगा, ....पर अगर मैं तेरे दूसरे हाथ की कलाई भी काट दूँ तो..?"
शेखर वहशियाना तरीके से उसे घूरते हुए बोला।
मुस्तकीम कराहते हुए, उसे असहाय नजरों से देखने लगा।
"तू ये तो इंस्पेक्टर को बता चुका है कि तूने उनके लिए गाड़ी हायर किया था। ...अब आगे की कहानी बक।"
"...जनाब, मुझे इसके अलावा कुछ नहीं पता। ..मेरा काम, यहाँ जो भी आए उनके लिए सिर्फ गाड़ी का इंतजाम करना होता है। ...बाकी मैं कुछ नहीं जानता। ..मैं सच कह रहा हूँ जनाब। ..मुझे जल्दी से हॉस्पिटल ले जाइए, ..मैं मर जाऊँगा।"
मुस्तकीम कराहते हुए बोला। उसके हाथ से दबाए रखने के बाद भी कलाई से खून बहता ही जा रहा था।
"..वही तो मैं भी कह रहा हूँ। ..तू जितनी देरी करेगा, उतना ही तेरी मौत के चांसेस बढ़ेंगे। ..तू सोंच ले।"
शेखर इत्मीनान से बोला।
"..जनाब, मेरा यकीन कीजिए, मैं सच बोल रहा हूँ। ..हम बहुत छोटे प्यादे हैं हमें ज्यादा कुछ नहीं बताया जाता। ..मुझे कुछ नहीं मालूम जनाब। ..मुझे जल्दी हॉस्पिटल पहुँचाइए।"
जवाब में इस बार शेखर के चेहरे पर वहशीपन झलकने लगा। वो अपने हाथ से उसका दूसरा हाथ पकड़ते हुए बोला,
"साले, ...., तू ऐसे नहीं मानेगा।"
"..नहीं जनाब, ..नहीं। सेरन..."
वो जल्दी से कुछ याद करते हुए बोला।
शेखर रुक गया, पर उसका हाथ पकड़े हुए ही बोला,
"..आगे बोल।"
"..जनाब, ..सेरन, ...सेरन मार्को। ..ये उनके लिए खाने-पीने का इंतजाम करता है। ..उसे उनके बारे से पता होगा। ..जनाब मैं सच कह रहा हूँ, मुझे और कुछ नहीं मालूम।"
"..ये कौन है ?"
"..लोकल, ..लोकल गुंडा है जनाब।"
मुस्तकीम दर्द से तड़पते हुए बोला।
शेखर को लगा कि वो सच बोल रहा है। ..उसे शायद आगे कुछ नहीं मालूम था।
वो कुर्सी से उठा और अपने मुक्के का एक जोरदार प्रहार उसके जबड़े पर किया।
बंदा अपने पैदा करने वाले को याद करने लगा।
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कार्टोसैट,
शार्पेस्ट आई के नाम से मशहूर, अत्याधुनिक तकनीक और हाई रेजुलेशन कैमरों से लैस, शक्तिशाली भारतीय उपग्रहों की एक श्रृंखला, जिससे ऐसी तस्वीरें प्राप्त की जा सकती है कि सड़क पर चल रहे लोगों के हाथ में रखे मोबाईल का ब्रांड भी दिख जाए। भारत द्वारा इस तरह के नौ उपग्रह कक्षा में स्थापित किए जा चुके थे जो क्रमशः और अधिक उन्नत होता गया था ..और अभी दो वर्ष पहले ही कार्टोसैट-टेन का प्रक्षेपण किया गया था।
कार्टोसैट-टेन सैटेलाइट को स्पेशली चीन, नेपाल, भूटान और तिब्बत जैसे देशों और उससे लगे सीमा की निगरानी के लिए भेजा गया था जो लाइव हाई रेजुलेशन वीडियो दिखाने में सक्षम था।
..और उस समय,
वह सैटेलाइट अपनी पैनी नजरों से पोखरा शहर की निगरानी कर रहा था। उसकी अत्यंत सक्षम आँखें, वहाँ के चप्पे-चप्पे की खबर एरोडेन को दे रही थी।
विक्रांत, ईशा और पर्सी, होटल से निकल कर लगभग सौ मीटर पैदल आ गये थे कि इयरपीस पर आवाज आई,
"आपके राइट साइड, व्हाइट फोर्ड एंडेवर, ग्रीन नम्बर प्लेट, व्हाइट लेटर्स में नम्बर.."
और गाड़ी का नम्बर बताया गया।
वो तीनों गाड़ी में बैठ गये।
ड्राइविंग सीट पर विक्रांत बैठा हुआ था। गाड़ी चाइनीज एलईडी बल्ब से चमचमाती सड़क पर दौड़ने लगी।
उस समय पोखरा के हर चौंक-चैराहे पर पुलिस मुस्तैद खड़ी थी। हर एक गाड़ी की अच्छी तरह जाँच की जा रही थी और किसी को भी बिना आईडी या कड़ी पूछताछ के बिना जाने नहीं दिया जा रहा था। पुलिस को स्पष्ट निर्देश थे कि वो अपना ज्यादा ध्यान भारतीयों पर फोकस रखे और उनसे विशेष पूछताछ करे। साथ ही हर भारतीय को उस कैमरे के सामने लाया जाए जो सीधा शहर के पुलिस मुख्यालय से जुड़ी हुई थी ताकि उनकी सही पहचान की जा सके।
उनकी गाड़ी उन चेकिंग पॉइंट से बचते हुए सावधानी से आगे बढ़ रही थी। वो एरोडेन के निर्देशानुसार पुलिस की चेकिंग वाली जगह से पहले ही शहर की गलियों में घुस जाते थे और फिर आगे उसी सड़क पर निकल आते थे। इस तरह वो पुलिस से बचते हुए जा रहे थे। इसी क्रम में वो आगे आने वाले चौंक से पहले, मुख्य सड़क से उतर कर एक पतली सड़क में घुसे।
सड़क पर वहाँ पहले से एक ब्लैक डस्टर खड़ी थी। गाड़ी में पाँच लोग बैठे थे, सब के सब जवान और हट्टे-कट्टे थे।
उनकी नजर एंडेवर पर पड़ी।
"वही हैं.., गाड़ी घुमाओ.. गो गो गो।"
सामने बैठा आदमी ड्राइवर से बोला।
डस्टर तेजी से मुड़कर उनके पीछे दौड़ने लगी और उसमें बैठे लोग अपना गन ठीक करने लगे।
पीछे बैठे तीनों लोग एके फोर्टी सेवन से लैस थे जबकि सामने बैठे शख्स के पास नाइन एम एम पिस्टल था।
करीब मिनट भर बाद,
वाइपर टीम को इयरपीस पर सुनाई दिया,
"वाइपर टीम, एक ब्लैक एसयूवी पीछे है। ..दूरी सौ मीटर, जो कम होती जा रही है।"
"ओह.., आ गये कौवे। ....गेट रेडी फ्रेंड्स, आखिर कौवों से मुलाकात हो ही गयी।"
विक्रांत जोश से बोला और उसी समय उसके चेहरे की कठोरता बढ़ती चली गयी। ईशा और पर्सी के चेहरे में भी उस समय अलग ही फुर्ती और उत्साह दिखाई देने लगा था।
"एरोडेन, अपनी गाड़ी में कुछ है..?"
पर्सी, इयरपीस में बोला।
"..गाड़ी में पीछे तीन स्पेरो, एक पिजन और कुछ बिस्किट्स हैं।"
एरोडेन से आवाज आई।
पर्सी ने मुड़ते हुए पीछे हाथ बढ़ाया।
अब उसके और ईशा के हाथ में एक-एक एम फोर कार्बाइन था।
विक्रांत का दिमाग उस समय तेजी से योजना बना रहा था। वो बोला,
"एरोडेन, सड़क में आगे कोई खुली जगह, ...कोई मैदान..?"
"तीन सौ मीटर में, ...खुला मैदान है।"
आवाज आई।
"ओके, ...मार्क करो।"
विक्रांत बोला।
"..डन, ..रेड डॉट।"
एरोडेन से आवाज आई।
एंडेवर के स्क्रीन में दिख रहे मैप पर लाल बिंदु दिखने लगा।
"पर्सी, इनसे उलझने की जरूरत नहीं। ..टाइम नहीं है, लॉन्चर निकालो।"
विक्रांत बोला।
पर्सी ने राइफल रखकर, पीछे से ग्रेनेड लॉन्चर निकाल लिया और उसे लोड करने लगा।
तभी पीछे की गाड़ी से दना दन फायरिंग होने लगी। ईशा और पर्सी नीचे झुक गये।
विक्रांत मैप के लाल बिंदु को कनखियों से देखा और तेजी से मोड़ते हुए गाड़ी एक गली में घुसा दिया। डस्टर जो अब भी पचास-साठ मीटर पीछे थी, जैसे ही वहाँ पहुँची वो भी उनके पीछे उसी गली में मुड़ गयी ..पर उसके उस गली में घुसने के कुछ सेकंड बाद ही एंडेवर फिर से, एक और गली में घुस गयी।
अब एंडेवर, डस्टर के आँखों से ओझल थी। ..पर ये सोंचना लाजमी था कि वो आगे जिस गली में मुड़ी है उसी में आगे बढ़ रही होगी इसलिए डस्टर भी आगे बढ़ते हुए उस गली में मुड़ी।
...पर उसे आगे एंडेवर नजर नहीं आई।
क्योंकि,
उस गली में मुड़ते ही विक्रांत ने दोनों को रेडी रहने को कहा था और गाड़ी को टॉप गेयर में डाल कर फुल स्पीड में बढ़ाते हुए आगे ले जाकर रोक दिया था। वो तीनों फुर्ती से गाड़ी से कूद कर मैदान के विपरीत दिशा के एक मकान के ओट में छिप गये थे।
योजना ये थी कि डस्टर के दिखते ही उसे ग्रेनेड लॉन्चर से उड़ा दिया जाएगा।
..और इसके लिए लॉन्चर लेकर पर्सी पोजीशन पर तैयार भी था पर ठीक उसी समय उधर बार के बेसमेंट से निकलते हुए एकांश अपने इयरपीस में बोला।
इधर इयरपीस पर एकांश की आवाज सुनाई दी,
"विक्रांत, सब्जेक्ट से बड़ी खबर मिली है। ....सुल्तान काजी, ..सुल्तान काजी पोखरा में है।"
"..व्हाट? ....पर्सी रुक जाओ।"
विक्रांत बोला।
"...हाँ विक्रांत, सब्जेक्ट ने यहाँ सुल्तान काजी को देखा था।"
"चलो, ..इनको छोड़ो। ..पीछे गली की ओर।"
विक्रांत एक सेकंड में सौ सेकंड की बात सोंच कर त्वरित निर्णय लेते हुए पर्सी और ईशा से बोला।
तीनों डस्टर को उसके हाल में छोड़ कर गली की ओर भागने लगे।
इधर डस्टर सड़क पर कुछ आगे आई ।
..आगे एक मैदान के बाद उसे एंडेवर सड़क किनारे खड़ी हुई दिख गयी।
वो उस गाड़ी से बीस मीटर दूर ही रुक गये और पीछे से तीनों आदमी एक ही तरफ उतरते हुए, अपनी गाड़ी की ओट से उस पर ताबड़तोड़ फायरिंग करने लगे।
तीन एके फोर्टी सेवन के लगातार फायरिंग से एंडेवर छलनी हो गया पर उधर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।
कुछ पल रुककर वो सामने बैठे आदमी की ओर देखे। उसने उँगली से कुछ ईशारा।
एक आदमी सतर्कता से गाड़ी की ओर बढ़ने लगा, बाकी दोनों उसे वहीं से कवर दिए हुए थे।
आगे गया आदमी पास पहुँच कर गाड़ी के अंदर देखा, अंदर कोई नहीं था। वो सावधानी से चारों ओर देखते हुए गाड़ी का एक चक्कर लगाया,
....पर वहाँ कोई भी नहीं था।
डस्टर में,
सामने बैठा आदमी उनको गायब पाकर 'सिट्ट' कहते हुए अपना मोबाईल निकाला और किसी को कॉल किया,
"जावेद, ..मेरे लोकेशन पर एक टीम भेजो, ..क्विक।"
फिर मोबाईल रखकर बड़बड़ाया,
"...भागो जहाँ तक भाग सकते हो, ..आज तुम लोगों की खैर नहीं।"
उसके बाद वो सब वापस गाड़ी में बैठ गये और गाड़ी मोड़ने लगे।
क्रमशः...
S- 1 Part- 6
पाठकों से,
Dear readers,
आशा है आपको कहानी पसंद आ रही होगी।
आप सब से निवेदन है कि कहानी में अगर कोई कमी महसूस होती है तो उस ओर मेरा ध्यान अवश्य आकृष्ट कराइए, ताकि मैं सुधार कर सकूँ और आपको बेहतर से बेहतर दे सकूँ। 🙏🙏🙏
"Thank-you"
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वैधानिक सूचना:-
कहानी के सभी पात्र, स्थान, एवं घटनाएँ काल्पनिक है और इसका उद्देश्य मनोरंजन मात्र है। यदि इस कहानी में वर्णित किसी भी घटना, परिस्थिति, स्थान या पात्र का किसी व्यक्ति, स्थान या संगठन से समानता होती है तो इसे महज एक संयोग माना जाएगा। कहानी के शब्द, वाक्यांश, वाक्य या संवाद की रचना कहानी की आवश्यकता के अनुरूप की गयी है और इसका उद्देश्य किसी भी व्यक्ति के भावनाओं को चोंट पहुँचाना कदापि नहीं है।
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