कहानी शुरू करने से पहले मैं चाहता हूँ कि आप सब को इस कहानी के पृष्ठभूमि से अवगत करा दूँ ताकि आप को इसके परिस्थितियों को समझने में सुगमता हो।
हमारे देश द्वारा भारत-चीन सीमा पर अपनाए गये आक्रामक रूख से चीन बौखलाया हुआ था। इधर कोरोना महामारी के लिए उसे दोषी ठहराए जाने के कारण वह विश्व में अलग थलग भी पड़ गया था। इसलिए उसने प्रत्यक्ष के बजाए भारत से अप्रत्यक्ष युद्ध करने का निर्णय लिया और भारत के पड़ोसी देशों के साथ साजिश रच कर हमें आतंकवाद और तस्करी के जरिए अंदर से खोखला करना चाहा।
पाकिस्तान तो पहले से भारत का दुश्मन था ही किन्तु अब इसके लिए उसने नेपाल को भी अपने साजिश में शामिल कर लिया है और इसका बहाना बना एक छोटा सा सीमा विवाद...
नेपाल, भारत का एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी है दोनों देशों के बीच 1850 किलोमीटर से अधिक लंबी साझा सीमा है, जिससे भारत के पाँच राज्य--सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड जुड़े हैं। वैसे भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर कोई बड़ा विवाद नहीं था। लगभग 98% प्रतिशत सीमा की पहचान व उसके नक्शे पर सहमति थी, केवल कुछ क्षेत्रों को लेकर विवाद था जिसे बातचीत के माध्यम से सुलझाने की प्रक्रिया चल रही थी।
इसीबीच,
भारत ने कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिये उत्तराखंड के धारचूला (Dharchula) को लिपुलेख दर्रे (Lipulekh Pass) से जोड़ती हुई एक सड़क बनाना शुरू किया, जिसमें नेपाल ने आपत्ति किया। नेपाल का दावा था कि कालापानी के पास पड़ने वाला यह क्षेत्र नेपाल का हिस्सा है और भारत ने नेपाल से वार्ता किये बिना इस क्षेत्र में सड़क निर्माण का कार्य किया है। नेपाल द्वारा आधिकारिक रूप से नेपाल का नवीन मानचित्र जारी किया गया, जो उत्तराखंड के कालापानी (Kalapani) लिंपियाधुरा (Limpiyadhura) और लिपुलेख (Lipulekh) को अपने संप्रभु क्षेत्र का हिस्सा मानता था।
भारत इसे बातचीत के जरिए हल करना चाहता था पर चीन के बहकावे में आकर नेपाल इस मुद्दे को खींचता रहा, उसे बढ़ाता रहा और अब उसे खुश करने के लिए पाकिस्तानी आतंकवादियों को अपने देश में पनाह देता है। स्थिति ये है कि जहाँ पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के एजेंट वहाँ के सड़कों पर बेरोकटोक घूमते हैं, उन्हें वहाँ के सुरक्षा एजेंसियाँ सहयोग करती हैं वहीं भारत के नागरिकों तक के ऊपर निगरानी रखी जाती है। चीन आतंकवादियों को वहाँ ट्रेंड करती है, उन्हें आधुनिक साजो समान से लैस करती है और भारत नेपाल के बीच मुक्त आवागमन का फायदा उठा कर उन्हें भारत भेजती है। जब भारत इन बातों पर आपत्ति करता है तो नेपाल की ओर से उसे कोई सहयोग नहीं दिया जाता और न ही जाँच एजेंसियों को वहाँ आधिकारिक रूप से आने दिया जाता है।
ऐसे में भारत भी अब आधिकारिक जाँच के बजाए खुफिया एजेंसियों के द्वारा सीधे उन पर हमले करती है और गुप्त रूप से वहाँ घुस कर उन्हें नेस्तनाबुद करती है।
कहानी की पृष्ठभूमि ये है कि विश्व की नजरों में भले ही आज भी भारत और नेपाल के बीच मित्रता है पर वास्तव में नेपाल पाकिस्तान के समान ही एक दुश्मन पड़ोसी देश बन चुका है। अब नेपाल के सीमा पर भी भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को रात दिन चौकसी करनी पड़ती है और जवान सिविल ड्रेस में हजारों के तादाद में वहाँ तैनात रहते हैं। भारत जब भी आवश्यकता होती है वहाँ घुस कर अपने दुश्मनों का सफाया करती है।
ये कहानी है, भारत के एक खूँखार सीक्रेट इंटेलिजेंस यूनिट 'एरो' का जिसके सिर्फ नाम से ही दुश्मनों के पसीने छूट जाते हैं। नाम से ही इसलिए क्योंकि सब इस यूनिट का सिर्फ नाम जानते हैं, जिसने भी इसके एजेंटों को पहचान लिया वो चाहे निर्दोष ही क्यों न हो.., मार दिया जाता है।
इसके एजेंट कब कहाँ रहते हैं, क्या करते हैं, इसका मुखिया कौन है, इसका मुख्यालय कहाँ है ये औरों को तो क्या भारतीय खुफिया विभाग को भी मालूम नहीं है। इसके एजेंटों को भारत के सभी खुफिया एजेंसियों की सदस्यता प्राप्त होती है, ये देश के किसी भी एजेंसी के सूचनाओं, सुविधाओं और संसाधनों का जब चाहे उपयोग कर सकते हैं पर खुद किसी को कोई जवाब देने को बाध्य नहीं। इनके पास अत्याधुनिक हथियारों, सुरक्षा उपकरणों और टेक्निकल सपोर्टिंग स्टाफ की भरमार है। इसके एक एजेंट के पीछे तीन टेक्निकल स्टॉफ चौबीसों घण्टे सपोर्ट के लिए काम करते रहते हैं जो इनके हर सिचुएशन, एक्शन, लोकेशन, यहाँ तक की इनके शरीर के टेम्परेचर, ब्लडप्रेसर, पल्सरेट तक की निगरानी करते रहते हैं। इन्हें विश्व में कहीं भी, किसी भी स्थान को तबाह करने और किसी को भी जान से मार देने की खुली छूट दी गयी है और ये देश के पीएम के अलावा किसी के भी प्रति जवाब देह नहीं।
इसतरह
ये खूँखार हैं, दुर्दांत हैं, निर्दयी हैं, ये किसी को भी मारने से पहले पल भर भी नहीं सोंचते।