प्रदीप सिंह रावत -खुदेड़
मेरा जन्म पौड़ी गढ़वाल में पट्टी गगवाड़ स्यूं घाटी के अंतर्गत पड़ने वाले तमलाग गाव में एक साधारण परिवार में हुआ, पांच बहिनो में मै अकेला भाई था, जब मै मात्र १२ या १३ साल का था तभी मेरे पिता का स्वर्गवाश हो गया हमारे पास जमीन तो बहुत थी पर हाल चलने वाला कोई नहीं था मेरे मामा जी दूसरे गाव से हमारा हल लगाने आया करते थे, अकसर गाव में यह धारणा है चाए आप के पास खेती कितनी ही क्यों नहीं हो पर अगर आपके घर में नौकरी करने वाला कोई नहीं है तो आपको गरीब मान लिया जाता है हमारे साथ भी यही स्थिति थी खेती होने के बाबजूद हम गरीब माने जाते थे, मै पढ़ाई में काफी आच्छा था पर अंग्रेजी मेरे लिए किसी पहाड़ से कम नहीं थी मेरे और बिषयों में अच्छे नंबर आते थे वही अंग्रेजी में मै गिरते पड़ते पास नम्बर ही ला पाता था, यही हाल मेरा अभी भी है, मैंने हमेशा अंग्रेजी को कठिन समझा,मुझे याद है जब मै सातवीं में पढता तो मेरी पतलून घुटनों में फटी हुयी थी और मै शर्म के मारे अपनी कक्षा से बहार नहीं आता था, मैंने अपनी स्कूल कि ज़िन्दगी में बहुत कम दोस्त बनाये पर गाव में मेरे काफी दोस्त थे, और अभी भी है मुझे अपनी स्कूल से हमारे एक गुरूजी D. S. RAWAT उजेफा दिया करते थे जिससे मै अपनी स्कूल की फ़ीस भरा करता था, कोफ़ी किताब खरदने के लिए मेरे गाव के एक चाचा श्री जगमोहन सिंह सजवाण मेरी मदद किया करते थे,मुझे क्रिकेट खेलना बहुत अच्छा आता था और फुटवॉल में मै गोलकीपर भी बहुत अच्छा था, पांच बहिन होने के कारण मुझे घर का काम कम करना पड़ा, इस लिए लोगो मुझे आळशी भी कहा करते थे, पर मै अलसी था नहीं बिजली का सारा काम मुझे आता था और गाव वाले मुझे अपनी बिजली ठीक करने के लिए बुलाते थे,अगर मै अपने लेखन की बात करूँ तो मैंने सबसे पहले सातवीं कक्षा में मोरी मेला के ऊपर गाने लिखे थे पर अब मुझे याद नहीं है की मैंने क्या शब्द उन गानो के लिए पिरोये थे,