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सपनो में

5 नवम्बर 2016

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तुमसे मिले ही कहाँ है,

फिर भी लगाव रखते है।

तुमने माँगा कुछ भी नहीं,

फिर भी तुमारे लिए ज़िन्दगी का दाव रखते है।

इज़हार कभी किया नहीं,

फिर भी इकरार का अहसास हो गया।

दूर हो तुम मगर,

तुम संग बिताया पल खास हो गया।

तुम्हे छुआ कभी नहीं,

फिर भी छूने की हद तक गुजर गए।

हाथ पकड़ा नहीं कभी,

फिर भी तुमारी बाँहों में मर गयॆ।

डूबने से डरता हूँ,

फिर भी तुम्हारी आँखों में डूबने की चाह रखता हूँ।

ज़िदगी लम्बी जीने का इरादा था,

पर तुम्हारे लिए आपनी जां रखता हूँ।।

प्रदीप सिंह रावत -खुदेड़ की अन्य किताबें

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मंज़िल पर ही मिलूंगा

20 जनवरी 2016
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ज़िन्दगी में हर मोड़ पर मै टूटा हूँ, सब के साथ चला मंज़िल के और, फिर भी पीछे छूटा हूँ। जब- जब भी मैंने आशाओं के किनारों को जोड़ा है, तब-तब मुझे निराशाओं की दीवारों ने तोड़ा है।  मै फिर उठूँगा,फिर मंज़िल की और चलूँगा, तुम चलो दोस्तों !मै धीरे- धीरे आकर तुम्हें मंज़िल पर ही मिलूंगा। खुदेड़20 .05 .2015

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गर प्रकृति को निहारना है

20 जनवरी 2016
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गर प्रकृति को निहारना है तो,चले आना मेरे पहाड़ |गर प्रकृति को बिचरना है तो,चले आना मेरे पहाड़ |कुछ कायेद, कुछ कानून के साथ,मौन होकरचले आना मेरे पहाड़,बिना नशा किये हुए,क्योंकि यहाँ आने के बाद,खूबसूरत नज़रों का नशा तुम पर छा जाएगा |गर प्रकृति के साथ जीना है तो,चले आना मेरे पहाड़ |गर शुद्ध जल पीना है तोचल

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सुदूर पहाड़ की थाती पर है मेरा गाँव

20 जनवरी 2016
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सुदूर पहाड़ की थाती पर है मेरा गाँवसुदूर गगवाड़स्यूं घाटी पर है मेरा गाँवकुंजेठा गुमाई पड़ता है इसके पश्चिम में गंगोटी पड़ता है मेरे गाँव के दक्षिण में पूर्व दिशा में पड़ती है पाबै की धार उत्तर दिशा मे पड़ती है पुन्डोरी की सार सुदूर पहाड़ की थाती पर है मेरा गाँवसुदूर गगवाड़स्यूं घाटी पर है मेरा गाँवहर बारह

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मशाल

20 जनवरी 2016
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मैंने या तूने,किसी ने तो मशाल जलानी ही थीचिंगारी मन में जो जल रही थीउसे आग तो बनानी ही थीमैंने या तूने,किसी ने तो मशाल जलानी ही थीमरना तुझे भी हैमरना मुझे भी हैयूं कब तक तटष्ट रहता तूयूं कब तक अस्पष्ट रहता तूफिर किस काम की तेरी ये जवानी थीमैंने या तूने,किसी ने तो मशाल जलानी ही थीरो रही धारा हैवक्त त

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याद आते है गाँव

20 जनवरी 2016
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न जाने क्यों याद आते है गाँवजिस चीज के लिए मैंने गाँव छोड़ावह मुझे मिल तो गयीफिर क्यों याद आता है गाँवसब कुछ तो पाया है मैंनेफिर भी लगता हैकुछ तो खोया है मैंनेबोझ तो मै यहाँ भी उठता फिर रहा हूँगाँव में मिलकर उठाने वाले कई थेयहां अकेले गिर रहा हूँरोटी मिल तो रही है मुझेफिर क्यों बेचैन हूँ गाँव की रोटी

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मनु

20 जनवरी 2016
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कल-कल छल- छल कर,संगीत सुनती थी जो नदी कभी। आज उसके स्वर मैले- मैले से क्यों है ?उसकी एक झंकार से नाच उठता था मनु !आज उसके कान बैरे- बैरे से क्यों है ? सप्तक जैसी मछली तैरती थी,जिसके आँगन में,आज उसकी गति गन्दी और मंदी क्यों है ?किनारे उसके बैठकर,लिलिमा को निहारता था मनु!आज उसकी निगाहें अंधी- अंधी सी

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माँ

20 जनवरी 2016
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माँ अकसर जब भूखी होती थी तो मिर्च खा लेती थी लोग समझते थे माँ खाना का के आई है प्रदीप रावत ''खुदेड़''

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मेरी देवप्रयाग यात्रा

20 जनवरी 2016
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12 साल बाद लगने वाले मौरी मेले में मुझे पांडव के साथ देवप्रयाग गंगा स्नान जाने का मौका मिला, मैंने 7 दिसम्बर मेले के उद्घाटन दिन ही तय कर दिया था कि जब पांच पांडव १३ अप्रैल को बिखोती मे गंगा स्नान को देवप्रयाग संगम में जायेंगे तो मै भी पैदल यात्रा कर के उनके साथ स्नान के जाऊंगा।दिसम्बर के बाद वक

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कब जय हिन्द होगा मेरा भारत

22 जनवरी 2016
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कब जय हिन्द  होगा मेरा भारत ?जब देश गरीबी भुखमरी से मुफ़्त होगा,जब मेरे देश से भ्रष्टाचार लुप्त होगा तब मेरा भारत जय हिन्द  होगा ।तब मेरा भारत जय हिन्द  होगा ।।जब देश अवसरवादी नेताओं से छुटकारा पायेगा ।जब कानून के डर से अपराधी खौफ़ खायेगा ।जब सरकारी प्रसाशन से जन गण संतुष्टि पायेगा।जब सच्चे मायने में

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मत करो धरती का सौदा

30 जनवरी 2016
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बेच दी है मातृ भूमि तुमने, तुम्हे जहनुम भी नसीब नहीं होगा। जब दफना रहे होंगे तुम्हे,तब कोई अपना तुम्हारे करीब नहीं होगा।कोई अपना ही बेच दे इस धरा को,ऐसा तो तेरे अपनों का ख्वाब नहीं होगा। उनकी आँखों में आँसू होंगे,तब तेरे पास कोई जवाब नहीं होगा।प्रदीप सिंह रावत ''खुदेड़''

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सब्र रख

4 फरवरी 2016
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 तूफानों के गुजरने तक सब्र रख,ज़िंदा अगर है तो, पड़ोस की खबर रख |  कई ऐसा न हो, तूफानों के साथ ज़िन्दगी तेरी, मौत के मुँह में गुजर जाएगी,घर पड़ोस का टूटेगा, नीब तेरी भी उजड़ जाएगी |

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आर्थिक सयोग दे

6 फरवरी 2016
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दोस्तों हम पिछलेकई सालों सेपहाड़ में चकबंदीकी मांग कररहे है , पिछलेसाल से हमराआंदोलन गरीब क्रान्ति अभियान उत्तराखण्ड काफी तेजहुआ है कई लोगहमारे साथ जुड़ेक्योंकि लोगो कोभी लगने लगा किअगर पहाड़ पलायनसे खली होगए तो प्रकृतिकसंतुलन बिगड़ जाएगाऔर हिमालय केसाथ-साथ पुरेभारत में इसकाप्रभाव पडेगा, इस बारका आंदोलन

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उठो चलो बढ़ो तुम !

19 फरवरी 2016
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उठो चलो बढ़ोतुम !क्यों बिखर रहेहो ?अब एक जुटहो चलो तुम!क्यों कट रहेहो ?अपनीजड़ों से जड़ोंतुम ! कदमो की थापसे धारा हिलनीचाहिए,हुंकारों की भापसे वर्फ पिघलनीचाहिए। सूरज रात कोभी निकलने परमजबूर हो जाये,क्रांतिकी लहर ऐसीचलनी चहिये।अन्धेरों का अबउजालों से द्वन्दहोगा,तुफानो का अबमशालों से द्वन्दहोगा। जीत तय ह

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ब्वारि इन चयेणी मेंतै

7 अप्रैल 2016
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 प्रदीप रावत खुदेड की ओरिजनल  वायरल कविता, जरूर सुने मेरीवारयल कविताब्वारि इन चयेणी मेंतै https://www.youtube.com/watch?v=EjTyGlY4tfghttps://www.youtube.com/watch?v=EjTyGlY4tfghttps://www.youtube.com/watch?v=EjTyGlY4tfg

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माँ

11 मई 2016
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आज इस शाम को और सुहानी होने दो,गजल जो माँ पर लिखी है मैने!उसे अभी और रूहानी होने दो,जब से अपने पंखों पर उड़ा हूँ असमा मे,ंआज बडे़ सालों बाद लौटा हूँ माँ के जहां में।बहुत दिनों बाद माँ ने पुराना आँचल,नये बक्से से निकाला है,आज मुझे उस आँचल में सोने दो।बहुत तड़फी है माँ मेरी याद में,आज माँ के साथ मुझे खू

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PARDEEP SINGH RAWAT KHUDED.com खुदेड़ : MORI MELA माहौरू लगाण जगार

18 मई 2016
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MOURI MELA PARDEEP SINGH RAWAT KHUDED.com खुदेड़ : MORI MELA माहौरू लगाण जगार

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पहाड़ी फूल

28 मई 2016
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कुछ बनने की चाह में,निकल पड़ा शहर की तरफ एक पहाड़ी फूल।इस शहर की गर्मी में झुलस गया वह,जो था पहाड़ के अनुकूल।।वह तो घाटियों में खेलता था,शहर में कहाँ टिक पाता।वह तो गंगा सा स्वच्छ और निर्मल था,शहर में उसका इमान कैसे विक पाता।।जिस बाग से निकला वह,वह उसके विना लगता है खाली।शहर से बाग में लौटने की चाह में

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कुछ तो बोलो

5 नवम्बर 2016
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<p>तुम्हारी मीठी मीठी कोयल सी आवाज, </p> <p>कहती है तुम्हारे दिल का राज। </p> <p><br></p>

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सपनो में

5 नवम्बर 2016
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<p>तुमसे मिले ही कहाँ है,</p> <p>फिर भी लगाव रखते है।</p> <p>तुमने माँगा कुछ भी नहीं,</p> <p>फिर भी

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मासूमियत

23 दिसम्बर 2016
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https://himsahitya80.blogspot.in/2016/12/blog-post_22.html?m=1

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मासूमियत

23 दिसम्बर 2016
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https://himsahitya80.blogspot.in/2016/12/blog-post_22.html?m=1

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क्यों डूबना चाहते हो मेरे शहर मेरे गाँव को

2 दिसम्बर 2017
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क्यों डूबना चाहते हो मेरे शहर मेरे गाँव कोक्यों मिटना चाहते हो सर से पेड़ की छावं को।क्यों अँधेरे में धकेलते हो शहर के उजाले के लिएक्यों माटी से खदेड़ते हो शहर के निवाले के लिए।मेरी पीढ़ियों ने इस पिथौरागढ़ को बनते देखा हैदो देशो की संस्कृति के

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