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प्रबोध कुमार गोविल की डायरी

प्रबोध कुमार गोविल

7 अध्याय
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prbodh kumaar govil kii ddaayrii

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पुस्तक के भाग

1

काश वो ऐसी वैसी होती।

3 अगस्त 2022
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समय बदल गया। कोई सबूत, सनद या मिसाल मांगे तो शुभम दे सकता है। चालीस साल पहले एक दिन उसकी नई- नवेली दुल्हन ने उसकी ताज़ा खरीद कर लाई गई पत्रिका अपनी सहेली रीना को पढ़ने के लिए दे दी थी, तो वह खासा नारा

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अधूरी रात

3 अगस्त 2022
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आज वो कुछ अलग सा दिख रहा था। वो लंबा है, ये तो दिखता ही है, मगर उसके बाजू मछलियों से चिकने और गदराए हुए होंगे ये कभी ध्यान ही नहीं गया। जाता भी कैसे, रोज़ तो वो फॉर्मल शर्ट पहने हुए होता है। डार्क कलर

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हड़बड़ी में उगा सूरज

3 अगस्त 2022
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क्रिस्टीना से मेरी पहचान कब से है ? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके बहुत सारे उत्तर हो जाएंगे, और ताज़्जुब मुझे बहुत सारे उत्तर हो जाने का नहीं होगा,बल्कि इस बात का होगा कि उन सारे उत्तरों में से कोई भी ग़ल

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चपरकनाती

3 अगस्त 2022
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दूरबीन से इधर- उधर देखता हुआ वो सैलानी अपनी छोटी सी मोटरबोट को किनारे ले आया। उसे कुछ मछुआरे दिखे थे। उन्हीं से बात होने लगी। टोकरी से कुछ छोटी मछलियों को चुनकर अलग करते हुए लड़के से उसने पूछा- इन्हें

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उत्तराधिकर्मी

3 अगस्त 2022
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आज खाना फ़िर नहीं बना। दोनों अलग - अलग कमरे में हाथ की कोहनी से माथा ढके सरेशाम सोते रहे। सोना तो क्या था, स्थितियों के प्रति अपनी अवज्ञा जताने का एक शिगूफ़ा था। घर की लाइटें तक नहीं जलाई गई थीं। कभी

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सांझा

3 अगस्त 2022
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- सेव क्या भाव हैं? मैंने एक सेव हाथ में उठाकर उसे मसलते हुए लड़के की ओर देखते हुए पूछा। - साठ रुपए किलो! कह कर उसने आंखें झुका लीं। मैं चौंक गया, क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले मैंने टीवी पर सुना था कि क

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वक्त महल

3 अगस्त 2022
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भयंकर गर्मी के कारण बाहर धूप में किसी परिंदे के भी पर मारने की आवाज़ नहीं आ रही थी। महल की ऊपरी मंज़िल पर कुछ लड़के दीवारों की घिसाई के लिए बड़े कक्ष में इधर उधर काम में लगे दिखाई देते थे। दीवारों से

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