shabd-logo

प्रबोध कुमार गोविल के बारे में

स्वतंत्र लेखन। पूर्व प्रोफ़ेसर (पत्रकारिता व जनसंचार) एवं निदेशक ( विश्वविद्यालय)

पुरस्कार और सम्मान

prize-icon
साप्ताहिक लेखन प्रतियोगिता2022-07-31

प्रबोध कुमार गोविल की पुस्तकें

आ जा, मर गया तू?

आ जा, मर गया तू?

यह किताब बारह भाषाओं में प्रकाशित बहुचर्चित उपन्यास "जल तू जलाल तू" के दो पात्रों के मानस संचार पर आधारित है जो मां बेटा हैं। कथानक में मां बेटे को बचाने की कोशिश में दिवंगत हो जाती है। फिर कालांतर में बेटे की मृत्यु होने पर वह उसे एक पत्र लिख कर सार

5 पाठक
16 रचनाएँ

निःशुल्क

आ जा, मर गया तू?

आ जा, मर गया तू?

यह किताब बारह भाषाओं में प्रकाशित बहुचर्चित उपन्यास "जल तू जलाल तू" के दो पात्रों के मानस संचार पर आधारित है जो मां बेटा हैं। कथानक में मां बेटे को बचाने की कोशिश में दिवंगत हो जाती है। फिर कालांतर में बेटे की मृत्यु होने पर वह उसे एक पत्र लिख कर सार

5 पाठक
16 रचनाएँ

निःशुल्क

हंसता क्यों है पागल

हंसता क्यों है पागल

ये किताब एक ऐसे व्यक्ति की कहानी कहती है जो अपने जीवन में सभी कुछ दायित्व पूरे करके निवृत्त हो चुका है। बदले ज़माने के साथ उसे अपने तौर तरीके पुराने लगते हैं किंतु वह अपनी सोच को पुराना नहीं होने देता। रोचक कहानी।

निःशुल्क

हंसता क्यों है पागल

हंसता क्यों है पागल

ये किताब एक ऐसे व्यक्ति की कहानी कहती है जो अपने जीवन में सभी कुछ दायित्व पूरे करके निवृत्त हो चुका है। बदले ज़माने के साथ उसे अपने तौर तरीके पुराने लगते हैं किंतु वह अपनी सोच को पुराना नहीं होने देता। रोचक कहानी।

निःशुल्क

प्रबोध कुमार गोविल की लघुकथाएं

प्रबोध कुमार गोविल की लघुकथाएं

इस पुस्तक में प्रबोध कुमार गोविल की चुनिंदा लघुकथाएं शामिल की गई हैं। सभी लघुकथाओं में जीवन के लिए बेहतरी की कल्पना के साथ सहज स्वाभाविक मानवीय मूल्यों का समावेश है।

2 पाठक
59 रचनाएँ

निःशुल्क

प्रबोध कुमार गोविल की लघुकथाएं

प्रबोध कुमार गोविल की लघुकथाएं

इस पुस्तक में प्रबोध कुमार गोविल की चुनिंदा लघुकथाएं शामिल की गई हैं। सभी लघुकथाओं में जीवन के लिए बेहतरी की कल्पना के साथ सहज स्वाभाविक मानवीय मूल्यों का समावेश है।

2 पाठक
59 रचनाएँ

निःशुल्क

सेज गगन में चांद की

सेज गगन में चांद की

ये कहानी तीन बातें कहती है - 1. शारीरिक आकर्षण रिश्ते बनाने में सक्षम है 2. माता पिता की जिंदगी की धूप छांव बच्चों की ज़िंदगी पर असर डालती है 3. युवावस्था वो साहस काल है जिसमें वही करने में मज़ा आता है जिसके लिए मना किया जाए।

2 पाठक
1 रचनाएँ

निःशुल्क

सेज गगन में चांद की

सेज गगन में चांद की

ये कहानी तीन बातें कहती है - 1. शारीरिक आकर्षण रिश्ते बनाने में सक्षम है 2. माता पिता की जिंदगी की धूप छांव बच्चों की ज़िंदगी पर असर डालती है 3. युवावस्था वो साहस काल है जिसमें वही करने में मज़ा आता है जिसके लिए मना किया जाए।

2 पाठक
1 रचनाएँ

निःशुल्क

राय साहब की चौथी बेटी

राय साहब की चौथी बेटी

ये किताब एक ऐसी नारी की कहानी कहती है जो अपने मानस और सलाहियत की पतवार लेकर जीवन भंवर में उतर जाती है और फिर शुरू होता है आसमान में घूमते नक्षत्रों की चाल के साथ उसका केटवॉक। एक संपन्न परिवार में कई भाई बहनों के बीच जन्म लेकर भी उसे अपने साथ नक्षत्रो

0 पाठक
0 रचनाएँ

निःशुल्क

राय साहब की चौथी बेटी

राय साहब की चौथी बेटी

ये किताब एक ऐसी नारी की कहानी कहती है जो अपने मानस और सलाहियत की पतवार लेकर जीवन भंवर में उतर जाती है और फिर शुरू होता है आसमान में घूमते नक्षत्रों की चाल के साथ उसका केटवॉक। एक संपन्न परिवार में कई भाई बहनों के बीच जन्म लेकर भी उसे अपने साथ नक्षत्रो

0 पाठक
0 रचनाएँ

निःशुल्क

ज़बाने यार मन तुर्की (अभिनेत्री साधना की कहानी)

ज़बाने यार मन तुर्की (अभिनेत्री साधना की कहानी)

पाकिस्तान से भारत आकर फिल्मी दुनिया में प्रवेश करने के संघर्ष को चित्रित करती ऐसी कहानी जिसने फिल्मी दुनिया में सफलता का नया इतिहास रचा। ऐसी लड़की की दास्तान जो अपने दम पर फिल्म उद्योग की अपने समय की सर्वाधिक मेहनताना पाने वाली लोकप्रिय अभिनेत्री बनी

निःशुल्क

ज़बाने यार मन तुर्की (अभिनेत्री साधना की कहानी)

ज़बाने यार मन तुर्की (अभिनेत्री साधना की कहानी)

पाकिस्तान से भारत आकर फिल्मी दुनिया में प्रवेश करने के संघर्ष को चित्रित करती ऐसी कहानी जिसने फिल्मी दुनिया में सफलता का नया इतिहास रचा। ऐसी लड़की की दास्तान जो अपने दम पर फिल्म उद्योग की अपने समय की सर्वाधिक मेहनताना पाने वाली लोकप्रिय अभिनेत्री बनी

निःशुल्क

धुस - कुटुस

धुस - कुटुस

इस किताब में प्रबोध कुमार गोविल की चुनिंदा इक्कीस कहानियां संकलित हैं जो हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर पर्याप्त चर्चित हैं। उल्लेखनीय है कि सभी में मुख्य सरोकार के रूप में आधुनिक मानवीय मूल्यों का ही समावेश है।

0 पाठक
21 रचनाएँ

निःशुल्क

धुस - कुटुस

धुस - कुटुस

इस किताब में प्रबोध कुमार गोविल की चुनिंदा इक्कीस कहानियां संकलित हैं जो हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर पर्याप्त चर्चित हैं। उल्लेखनीय है कि सभी में मुख्य सरोकार के रूप में आधुनिक मानवीय मूल्यों का ही समावेश है।

0 पाठक
21 रचनाएँ

निःशुल्क

प्रबोध कुमार गोविल के लेख

सेज गगन में चांद की

8 अगस्त 2022
0
0

सेज गगन में चाँद की [ 1 ] "धरा ... ओ धरा... बेटी धरा...." माँ ने गले की तलहटी से जैसे पूरा ज़ोर लगा कर बेटी को आवाज़ लगाई।सपाट सा चेहरा लिए धरा सामने आ खड़ी हुई।बेटी के चेहरे पर अबूझा डोल देख

आ जा मर गया तू?

6 अगस्त 2022
0
0

चल बेटा, अब बंद करती हूं। मैं ये तो नहीं कहूंगी कि तू मेरी ज़िंदगी से कोई सीख ले, पर ये ज़रूर कहूंगी कि मेरी ज़िंदगी ने ख़ुद मुझे बहुत सिखाया। वैसे भी, ये बेकार की बातें हैं कि दूसरों के जीवन से हम बह

आ जा मर गया तू?

6 अगस्त 2022
0
0

अब ये बात बहुत पीछे छूट गई कि मैं तुझे जान पर खेलकर नायग्रा झरना पार करने से रोक पाऊंगी। मैं हार गई थी। तू अपनी नाव पर किसी रसायन का लेप लगवाने के लिए न्यूयॉर्क जाकर आया था। हडसन में तेरे काफ़िले को ह

आ जा मर गया तू?

6 अगस्त 2022
0
0

नहीं। मेरी बात नहीं मानी उस लड़की ने। वो तो उल्टे मुझे ही समझाने बैठ गई। बोली- आंटी, मैं उसके मिशन में उसका साथ देने के लिए उसकी मित्र बनी हूं, उसे रोकने के लिए नहीं। वो बोली- "मुझे आपके बेटे का यही स

आ जा मर गया तू?

6 अगस्त 2022
0
0

अब जो हो गया सो तो हो गया। उसे तो मैं बदल नहीं सकती थी। विधाता मुझे जो सज़ा देगा वो तो भुगतूंगी ही। अपराध तो था ही। कहते हैं कि दुनिया में सबसे बड़ा दुःख है अपनी औलाद का मरा मुंह देखना। पर बेटा, दुनिय

आ जा मर गया तू?

6 अगस्त 2022
0
0

छी- छी... हे भगवान! ये मैंने क्या किया? हे मेरे परमात्मा, तू ही कोई पर्दा डाल देता मेरी आंखों पर। ऐसा मंजर तो न देखती मैं! पर तुझे क्या कहूं, ग़लती तो मेरी ही थी सारी। मैं क्या करूं, मैं खुद भी अपने ब

आ जा मर गया तू?

6 अगस्त 2022
0
0

किंजान! बेटा बुढ़ापे को तो सब बेकार समझते हैं। है न! युवा लोग तो बूढ़े होना ही नहीं चाहते। उन्हें लगता है कि ये भी क्या कोई ज़िन्दगी है? बाल उड़ जाएं, दांत झड़ जाएं। हाथ कांपें, पैर लड़खड़ाएं। शायद इस

आ जा मर गया तू?

6 अगस्त 2022
0
0

बेटा फ़िर एक दिन मैंने सोचा कि तूने तो अपने पिता को भी ढंग से नहीं देखा। तू तो छोटा सा ही था कि वो अचानक हम सब को छोड़ कर इस दुनिया से ही चले गए। तू भी तो मन ही मन उन्हें मिस करता होगा। अपने दूसरे दोस

आ जा मर गया तू?

6 अगस्त 2022
0
0

कभी - कभी मुझे तुझ पर जबरदस्त गुस्सा आ जाता था। मैं सोचती, आख़िर तेरी मां हूं। तुझसे इतना क्यों डरूं? एक ज़ोर का थप्पड़ रसीद करूं तेरे गाल पर, और कहूं- खबरदार जो ऐसी उल्टी- सीधी बातों में टाइम खराब कि

आ जा मर गया तू?

6 अगस्त 2022
0
0

मैं सतर्क हो गई। मैंने मन में ठान लिया कि तुझे इस नासमझी से रोकना ही है। अब मैं तेरी हर छोटी से छोटी बात पर नज़र रखने लगी। तुझे पता न चले, इस बात का ख्याल रखते हुए भी मैं तुझ पर निगाह गढ़ाए रहने लगी।

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए