ये किताब एक ऐसे व्यक्ति की कहानी कहती है जो अपने जीवन में सभी कुछ दायित्व पूरे करके निवृत्त हो चुका है। बदले ज़माने के साथ उसे अपने तौर तरीके पुराने लगते हैं किंतु वह अपनी सोच को पुराना नहीं होने देता। रोचक कहानी।
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कुछ दिन पहले शाम को पार्क में अपने साथी सीनियर सिटीजंस के साथ टहल कर गप्पें लड़ाते समय पड़ौस में रहने वाले एक साथी ने बताया कि आज तो उनका सारा दिन बहुत आराम से बीत गया। उनका गीज़र खराब हो गया था। जब उ
गीज़र का मैकेनिक जिस दुकान से आया था, वहां से अगले दिन सुबह फ़ोन आया कि जिस दुकान से आपके गीज़र का पुर्जा आना था वो आज बंद है इसलिए वो काम आज नहीं हो सकेगा। मैंने उसे सूचना दे देने के लिए धन्यवाद देने
इस बार बात कुछ खुल कर हुई। मुझे भी पता चला कि लड़का बार- बार बिना किसी काम के फ़ोन क्यों कर रहा है। असल में कुछ ही दिनों बाद उसकी फ़िर एक परीक्षा यहां थी। वो परीक्षा देने आ रहा था और मेरे पास ठहरना चा
मैं सुबह उठते ही चाय पीने के साथ साथ अख़बार देख रहा था तब मेरा ध्यान रह रह कर घड़ी पर भी जा रहा था। मैंने तय कर लिया था कि दस बजे के बाद मैं गीज़र मैकेनिक को फ़ोन करूंगा और यदि आज भी उसने कोई बहाना कि
मैं बाहर घूम - घाम कर घर लौटा तो कुछ बेचैनी सी थी। खाना खाकर बैठने के बाद भी ऐसा लगता रहा जैसे बदन में कोई धुआं सा फ़ैल रहा है। मैं कुछ देर शीशे के सामने भी खड़ा रहा। मैं कपड़े बदल लेने के बाद मन ही म
वैसे तो समीर का फ़ोन पिछले कई दिनों से ही आ रहा था, पर आज नई बात ये थी कि उसने पहली बार मुझसे वीडियो कॉल पर बात करने का अनुरोध किया। समीर से आप समझ गए होंगे कि मेरा वही छात्र जो कुछ दिन पहले मेरे पास
दोपहर को मैं अचानक बैठे - बैठे समीर के उठाए हुए उस मुद्दे के बाबत सोचने लगा कि आख़िर उसे एकाएक लड़कियों की गिरफ़्तारी और रिहाई में इस तरह की दिलचस्पी क्यों पैदा हो गई? वह इस सारे मामले से किस तरह जुड़
लगभग एक सप्ताह बाद समीर का फ़ोन आया कि वह अगले दिन आ रहा है। उसने बताया कि वह रात तक पहुंचेगा और अगली सुबह उसकी एक परीक्षा है।उसके आने पर रात को खाने खाने के बाद जब हम बैठे तो वह अचानक स्वर को कुछ धीम
उस दिन हम दोनों रात को साढ़े तीन बजे सोए।असल में जब वो आता था तो मैं यह सोचकर उसे अलग कमरे में ठहराता था कि अगले दिन उसका इम्तहान है और वो न जाने रात को कितनी देर तक पढ़ना चाहे, फ़िर उसे कोई डिस्टर्बे
सुबह जागते ही मोबाइल हाथ में उठाया तो अकस्मात ज़ोर से हंसी आ गई। अब अपने ही मोबाइल को देख कर हंसना.. भला ये कोई बात हुई? लेकिन अपना मोबाइल भी अपने नाम की ही तरह है। इसे हम ख़ुद नहीं, बल्कि दूसरे लोग क